यह दिन तंबाकू के सेवन से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों और अन्य खतरों को उजागर करने के साथ-साथ तंबाकू की खपत को घटाने के लिए प्रभावी नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इसका उद्देश्य लोगों को तंबाकू के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक करना है, साथ ही धूम्रपान करने वालों को यह आदत छोड़ने के लिए प्रेरित करना और धूम्रपान न करने वालों को सेकेंड हैंड धुएं से सुरक्षित रखना भी इसके केंद्र में है।
इस अवसर पर आयोजित होने वाले विभिन्न अभियान और गतिविधियाँ तंबाकू निषेध संबंधी नीतियों को बढ़ावा देती हैं, इससे जुड़ी सेवाओं तक लोगों की पहुँच को बेहतर बनाती हैं, और साथ ही तंबाकू उद्योग की भ्रामक रणनीतियों को उजागर कर जनजागरण का कार्य करती हैं।
विश्व तंबाकू निषेध दिवस की शुरुआत 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों द्वारा की गई थी, ताकि तंबाकू के कारण होने वाली महामारी और उससे जुड़ी रोकी जा सकने वाली मृत्यु एवं बीमारियों पर वैश्विक ध्यान केंद्रित किया जा सके। पहली बार यह दिवस 7 अप्रैल 1988 को WHO की 40वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया गया था, लेकिन इसके बाद तय किया गया कि हर वर्ष 31 मई को इसे नियमित रूप से मनाया जाएगा।
तंबाकू का सेवन और धूम्रपान स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव डालते हैं। यह कई प्रकार की जानलेवा बीमारियों का कारण बन सकता है, जिनमें पाचन तंत्र का कैंसर जैसे गैस्ट्रोईसोफेजियल रिफ्लक्स डिज़ीज़ (GERD), अचलासिया कार्डिया, अग्न्याशय, पेट, मुंह, यकृत, मलाशय, बृहदान्त्र और ग्रासनली के कैंसर शामिल हैं।
इसके अलावा, तंबाकू न्यूरोवैस्कुलर जटिलताओं और तंत्रिका संबंधी विकारों को जन्म दे सकता है, जैसे स्ट्रोक, मस्तिष्क की छोटी रक्त वाहिकाओं से जुड़ी इस्केमिक बीमारी (SVID), संवहनी मनोभ्रंश, दिल की बीमारियाँ, फेफड़ों की समस्याएँ, मधुमेह, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज़ (COPD), तपेदिक और कुछ नेत्र विकार भी इसके प्रभाव में आते हैं।
इन सभी स्वास्थ्य खतरों को देखते हुए यह दिन वैश्विक स्तर पर जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अवसर बन चुका है, जिससे यह संदेश प्रसारित किया जाता है कि तंबाकू का कोई भी रूप घातक है और इससे बचाव ही सर्वोत्तम उपाय है।