नीलम संजीव रेड्डी भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी और देश के छठवें राष्ट्रपति थे। वे भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति भी रहे और 1977 से 1982 तक इस पद पर कार्य किया। बचपन से ही वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे और भारत की आज़ादी से पहले और बाद में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दी।
रेड्डी भारत के एकमात्र ऐसे निर्विरोध निर्वाचित राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने आपातकाल के बाद संसदीय लोकतंत्र और उसके मूल्यों के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता के जरिए सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन इससे उनका देशभक्ति और दृढ़ संकल्प कम नहीं हुआ।
उनका जन्म 19 मई 1913 को मद्रास प्रेसीडेंसी के इल्लूर गांव (वर्तमान आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले) में एक तेलुगु हिंदू परिवार में हुआ था। 1929 में महात्मा गांधी की अनंतपुर यात्रा ने उनके जीवन को नया मोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और विदेशी कपड़ों का त्याग कर खादी पहनना शुरू किया। उन्होंने मद्रास के थियोसोफिकल हाई स्कूल से शिक्षा ग्रहण की और बाद में मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, अनंतपुर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1958 में श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति ने उन्हें मानद डॉक्टर ऑफ लॉ से सम्मानित किया।
1946 में वे कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में मद्रास विधान सभा के सदस्य चुने गए और कांग्रेस विधायक दल के सचिव बने। वे भारतीय संविधान सभा के भी सदस्य रहे। अप्रैल 1949 से अप्रैल 1951 तक वे मद्रास राज्य के निषेध, आवास और वन मंत्री रहे। 1951 में वे मद्रास विधानसभा चुनाव में हार गए।
1960 से 1962 तक वे बैंगलोर, भावनगर और पटना अधिवेशनों में तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1962 में गोवा में कांग्रेस अधिवेशन में अपने भाषण में उन्होंने चीन के कब्जे के खिलाफ भारत के दृढ़ संकल्प और गोवा की मुक्ति की अपरिवर्तनीयता पर जोर दिया, जिसे बड़ी उत्सुकता से स्वीकार किया गया।
वे तीन बार राज्य सभा के सदस्य चुने गए। जून 1964 से लाल बहादुर शास्त्री सरकार में केंद्रीय इस्पात और खान मंत्री के रूप में कार्य किया। जनवरी 1966 से मार्च 1967 तक इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय परिवहन, नागरिक उड्डयन, जहाजरानी और पर्यटन मंत्री भी रहे।
1956 में आंध्र प्रदेश के गठन के बाद वे इसके पहले मुख्यमंत्री बने। 1959 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और 1959 से 1962 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 1962 में फिर से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए। 1964 में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।
1969 के राष्ट्रपति चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके खिलाफ थीं और वे वी.वी. गिरी से हार गए। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अनंतपुर में खेती करने लगे।
1975 में आपातकाल के बाद बने जनता पार्टी में उन्होंने भाग लिया और 1977 के राष्ट्रपति चुनाव में निर्विरोध चुने गए। उस समय उनकी उम्र 64 वर्ष थी और वे भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति बने। वे अब भी एकमात्र ऐसे भारतीय राष्ट्रपति हैं जिन्हें निर्विरोध चुना गया।
राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने मोरारजी देसाई, चरण सिंह और इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। 1982 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अनंतपुर वापस चले गए। अपने विदाई भाषण में उन्होंने मजबूत विपक्ष की आवश्यकता और सरकारों की जनता के हितों की अनदेखी पर जोर दिया।
उनके बाद ज्ञानी जैल सिंह ने राष्ट्रपति पद संभाला। राष्ट्रपति पद पूरा करने के बाद, कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने उन्हें बैंगलोर में बसने का निमंत्रण दिया, लेकिन उन्होंने अनंतपुर में अपने फार्म पर रहने का निर्णय लिया।
1996 में 83 वर्ष की आयु में निमोनिया से उनकी मृत्यु बंगलौर में हुई। उनकी समाधि बंगलौर के कलपल्ली कब्रिस्तान में है। 11 जून 1996 को संसद ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया और उनके योगदान को याद किया।