एक बार ईरान जाते समय शहंशाह हुमायूँ को रास्ते में बड़े जोर की भूख लगी। राह में भोजन करने का अवसर नहीं मिला। रात के समय पड़ाव डालने पर उन्हें पता चला कि उनके सौतेले भाई कामरान और उसकी माँ रायबेगम का पड़ाव भी निकट ही है। हुमायूँ ने अपने नौकर को भेजकर कुछ भोजन मँगवाया। भोजन में मांस और सब्जी थी। जब थाल परसा गया, तो मांस देखकर हुमायूँ को शंका हुई कि कहीं यह गोमांस तो नहीं है और जब उन्होंने पूछताछ की, तो वह शंका सही मालूम हुई। इस पर हुमायूँ उद्विग्न होकर बोल उठे, "हाय रे कामरान ! पेट भरने का तेरा क्या यही रास्ता है ? हमारे पिता की कब्र की सफाई करने वाले नौकरों के लिए भी गोमांस खाना वर्जित है और तू अपनी पवित्र माँ को यही गोमांस खिलाता है! पिताजी ने जिस तरह अपने परिवार का गुजर किया, उसी तरह क्या हम चारों पुत्र नहीं कर सकते ?"