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सबका स्वागत करता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

Date : 06-Jun-2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सबके लिए खुला संगठन है। इसके दरवाजे किसी के लिए बंद नहीं हैं। नागपुर में आयोजित संघ शिक्षावर्ग 'कार्यकर्ता विकास वर्ग-2' के समापन समारोह में जनजाति वर्ग के कद्दावर नेता अरविंद नेताम का शामिल होना कइयों को खल गया। कुछ ने वितंडावाद भी खड़ा किया। इस वितंडावाद की हवा स्वयं जनजातीय नेता नेताम ने यह कहकर निकाल दी, ''वनवासी समाज की समस्‍याओं और चुनौतियों को संघ कार्यक्रम के माध्‍यम से रखने का सुअवसर मुझे मिला है।'' उन्होंने संघ के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी की, ''इस संगठन में चिंतन-मंथन की गहरी परंपरा है। भविष्य में जनजातीय समाज के सामने जो चुनौतियां आनेवाली हैं, उसमें आदिवासी समाज को जो संभालनेवाले और मदद करनेवाले लोग/संगठन हैं, उनमें हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मानते हैं।''। नेताम इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संघ के कार्यक्रमों में महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर और जयप्रकाश नारायण से लेकर इंदिरा गांधी एवं प्रणब मुखर्जी तक शामिल हो चुके हैं। संघ ने कभी किसी से परहेज नहीं किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संवाद में गहरा विश्वास है। वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कहते हैं, ''अगर हम विचारों को एक किला बनाकर उसके अंदर अपने आपको बंद कर लेंगे, तो यह व्यावहारिक नहीं होगा''। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से कांग्रेस, समाजवादी एवं कम्युनिस्ट नेताओं के साथ गहरा परिचय था। वो संघ के दर्शन से अवगत कराने के लिए विभिन्न विचारों के विद्वान व्यक्तियों एवं सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं से मिलते थे और उन्हें संघ कार्यक्रमों में आमंत्रित करते थे।

संघ के वर्तमान अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर अपनी पुस्तक 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र' में लिखते हैं, ''किसी विषय पर विभिन्न मत हो सकते हैं, किंतु जब हम समाज के प्रत्येक वर्ग से मिलते हैं, संवाद करते हैं, तो अवश्य ही समाधान निकलता है।'' संघ 1930 के दशक से ही समाज जीवन में सक्रिय लोगों को अपने कार्यक्रमों में बुलाता रहा है। दरअसल, एक और महत्वपूर्ण बात है यह कि संघ को विश्वास है कि जब तक कोई संघ से दूर है, तब तक ही वह संघ का विरोधी हो सकता है। लेकिन जैसे ही वह संघ के निकट आता है और संघ को जानने-समझने लगता है, तब वह संघ का विरोधी हो ही नहीं सकता। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो इस बात को सिद्ध करते हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी संघ के आमंत्रण पर आ चुके हैं।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का प्रारंभ में संघ को लेकर नजरिया आलोचनात्मक था। जब उन्होंने संघ को नजदीक से देखा तब उनके विचार पूरी तरह बदल गए। उन्होंने यहां तक कह दिया, ''यदि आरएसएस फासीवादी संगठन है तो जेपी भी फासीवादी है।''। प्रख्यात समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया और संघ के पदाधिकारियों के साथ मित्रतापूर्ण संवाद रहा है। आचार्य विनोबा भावे ने कहा है, ''मैं संघ का विधिवत सदस्य नहीं हूं, फिर भी स्वभाव से, परिकल्पना से मैं स्वयंसेवक हूं। '' परम पावन दलाई लामा संघ के अनेक कार्यक्रमों में शामिल होते रहे हैं, उनका भी कहना है, ''मैं संघ का समर्थक हूं। अनुशासन, देशभक्ति और समाज सेवा के लिए यह संगठन जाना जाता है।''।

वर्ष 1977 में आंध्र प्रदेश में आए चक्रवात के समय स्वयंसेवकों के सेवा कार्यों को देखकर वहां के सर्वोदयी नेता प्रभाकर राव ने तो संघ को नया नाम ही दे दिया था। उनके अनुसार आरएसएस अर्थात रेडी फॉर सेल्फलेस सर्विस। संघ के कार्यक्रम में जब भी कोई अन्य विचार का व्यक्ति आया है, तब संघ के कार्यकर्ताओं की ओर से कभी उनका विरोध नहीं हुआ। बल्कि स्वयं को अधिक प्रगतिशील एवं लोकतांत्रिक बतानेवाले लोगों ने ही आमंत्रित महानुभावों को रोकने के लिए भरसक प्रयास किए हैं। याद हो, वर्ष 2018 में नागपुर के रेशमबाग में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष के समापन समारोह में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के शामिल होने का समाचार सामने आया, तब कितना हो-हल्ला मचाया गया। प्रणब दा को रोकने के लिए पत्र लिखे गए, आह्वान किए गए। आखिर में प्रणब दा समारोह में पहुंचे और अपना उद्बोधन दिया। इस अवसर पर प्रणब दा न केवल आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के घर (संग्रहालय) गए, बल्कि वहां उन्होंने विजिटर बुक में लिखा, ''मैं आज भारत मां के महान सपूत डॉ. केबी हेडगेवार के प्रति सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं।''

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से संबद्ध और दलित नेता दादासाहेब रामकृष्ण सूर्यभान गवई और कम्युनिस्ट विचारों वाले जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर भी संघ के कार्यक्रमों में आ चुके हैं। मीनाक्षीपुरम में कुछ हिंदुओं द्वारा धर्म परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार किए जाने की घटना के बाद गवई ने स्वयं संघ के कार्यक्रम में आने की इच्छा व्यक्त की थी और अपने विचार रखे थे। केरल की पहली कम्युनिस्ट सरकार में मंत्री रहे जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने स्थानीय विरोधों के बावजूद तत्कालीन सरसंघचालक से संपर्क किया और बाद में पत्रकारों के सामने अपने विचार रखे थे।

हाल के वर्षों में देखें तो नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, डीआरडीओ के पूर्व डायरेक्टर जनरल विजय सारस्वत, एचसीएल के प्रमुख शिव नाडर, नेपाल के पूर्व सैन्य प्रमुख रुकमंगुड कटवाल जैसे व्यक्तित्व संघ के विजयादशमी उत्सव में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हो चुके हैं। पिछले एक दशक में नागपुर में आयोजित होनेवाले संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में आए प्रमुख महानुभावों में दैनिक पंजाब केसरी के संचालक एवं संपादक अश्वनी कुमार, आदिचुनचुनगिरी मठ (कर्नाटक) के प्रधान पुजारी श्री निर्मलानंदनाथ महास्वामी, आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर, धर्मस्थल कर्नाटक के धर्माधिकारी पद्मविभूषण डॉ. विरेन्द्र हेगडे, साप्ताहिक ‘वर्तमान’ (कोलकाता) के संपादक रंतिदेव सेनगुप्त, श्रीरामचंद्र मिशन (हैदराबाद) के अध्यक्ष दाजी उपाख्य कमलेश पटेल, श्री काशी महापीठ (वाराणसी) के 1008 जगद्गुरु डॉ. मल्लिकार्जुन विश्वाराध्य शिवाचार्य महास्वामी, श्री सिद्धगिरी संस्थान मठ (कोल्हापुर) के अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामी और श्री क्षेत्र गोदावरी धाम बेट सराला के पीठीधीश श्री रामगिरी जी महाराज प्रमुख हैं।

जनरल करिअप्पा कर चुके हैं संघ कार्य की प्रशंसा

वर्ष 1959 में पूर्व जनरल फील्ड मार्शल करियप्पा मंगलोर में संघ की एक शाखा के कार्यक्रम में गए थे। वहां उन्होंने कहा था कि संघ कार्य मुझे अपने हृदय से प्रिय कार्यों में से है। अगर कोई मुस्लिम इस्लाम की प्रशंसा कर सकता है, तो संघ के हिंदुत्व का अभिमान रखने में गलत क्या है? प्रिय युवा मित्रों, आप किसी भी गलत प्रचार से हतोत्साहित न होते हुए कार्य करो। डॉ. हेडगेवार ने आपके सामने एक स्वार्थरहित कार्य का पवित्र आदर्श रखा है। उसी पर आगे बढ़ो। भारत को आज आप जैसे सेवाभावी कार्यकर्ताओं की ही आवश्यकता है।

वर्धा की शाखा में महात्मा गांधी

वर्ष 1934 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शीत शिविर वर्धा में महात्मा गांधी के आश्रम के पास ही लगा था। गांधीजी ने शिविर को देखने इच्छा प्रकट की। वर्धा के संघचालक अप्पाजी जोशी ने शिविर में उनका स्वागत किया। महात्मा गांधी ने बड़ी बारीकी से शिविर का निरीक्षण किया। उन्होंने अप्पाजी से पूछा कि इस शिविर में कितने हरिजन हैं? अप्पाजी ने जवाब दिया, ''यह बताना कठिन है, क्योंकि हम सभी को हिंदू के रूप में ही देखते हैं। इतना हमारे लिए पर्याप्त है।'' बाद में उनकी भेंट संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के साथ हुई। संघ शिक्षा वर्ग में जाने की यह बात स्वयं महात्मा गांधी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कही। 16 सितंबर, 1947 की सुबह दिल्ली में संघ की शाखा पर जाकर महात्मा गांधी ने स्वयंसेवकों से संवाद किया। उन्होंने कहा, ''बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था। संघ एक सुसंगठित, अनुशासित संस्था है।''

संघ शिक्षा वर्ग में डॉ. भीमराव आंबेडकर

समाज को समरसता के सूत्र में पिरोकर उसे संगठित और सशक्त बनाने वाले महानायकों में से एक डॉ. भीमराव आंबेडकर भी संघ के प्रणेता डॉ. हेडगेवार के संपर्क में थे। बाबा साहेब 1937 और 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में गए थे। 1937 में करहाड शाखा (महाराष्ट्र) के विजयादशमी उत्सव पर बाबा साहब का भाषण हुआ। इस दौरान वहां 100 से अधिक वंचित और पिछड़े वर्ग के स्वयंसेवक थे। उन्हें देखकर डॉ. आंबेडकर को आश्चर्य तो हुआ ही बल्कि भविष्य के प्रति उनकी आस्था भी बढ़ी। सन् 1939 में एक बार फिर बाबा साहब पुणे के संघ शिक्षा वर्ग के सायंकाल के कार्यक्रम में आए थे। यहां उनकी भेंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं तत्कालीन सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार से हुई। इसी प्रकार, संघ से प्रतिबंध हटाने में डॉ. आंबेडकर का जो सहयोग प्राप्त हुआ, उसके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव गोलवलकर ने सितंबर 1948 में दिल्ली में उनसे भेंट की।

संघ के कार्यक्रम में इंदिरा गांधी

वर्ष 1963 में स्वामी विवेकानंद जन्मशती के अवसर पर कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक निर्माण के समय भी संघ ने सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख राजनेताओं एवं सामाजिक संगठनों के प्रमुख व्यक्तियों को आमंत्रित किया। स्मारक निर्माण के समर्थन में विभिन्न राजनीतिक दलों के 323 सांसदों के हस्ताक्षर एकनाथ रानाडे जी ने प्राप्त किए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एकनाथ रानाडे जी के आमंत्रण पर विवेकानंद शिला स्मारक (विवेकानंद रॉक मेमोरियल) के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुईं।

(लेखक, लोकेन्द्र सिंह)

 
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