सोशल मीडिया नाम तो सुना ही होगा आपने।आज का युग केवल आभासी दुनिया का है ।जहां लोग आभासी रूप से तो अपने होते हैं पर हकीकत में यहां लोग अपनों के भी अपने नहीं होते हैं। आज सोशल मीडिया के अलगअलग मायावी रूप हमारे चारों ओर मंडरा रहे हैं। जिनमें से एक है फेस बुक। ये भी आभासी सोशल मीडिया नामक दानव का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।जिसने हम सभी के दिमाग में एक मायाजाल बुन दिया है।इसकी आदत भी किसी घातक नशे जैसी है,जो व्यक्ति के मस्तिष्क को धीरे_धीरे शून्यता की ओर अग्रसर कर रही है।
फेसबुक अर्थात चेहरों की किताब एक ऐसी किताब जिसके लेखक ने उसे कभी नहीं पढ़ा।क्योंकि वो भी इसके घातक दुष्परिणाम से अच्छी तरह वाकिफ है।जो भी एक बार इसके चक्रव्यूह में फंसता है वो इससे कभी बाहर नही निकल पाता।इस किताब में सभी जानते हैं एक_दूसरे को सिर्फ चेहरों से,जी हां सिर्फ चेहरों से। यहां पर लोग चेहरों से दोस्ती करते हैं,उनके स्टेटस से दोस्ती करते हैं। पर उस चेहरे के पीछे छिपे शख्स से, उसके व्यक्तिगत जीवन से किसी को कोई मतलब नहीं रहता। यहां अपनेपन का बस आभास है,बस आभास, और हमें आदत हो गई है इस आभासीपन की।
आज किसी के पास किसी के लिए समय नहीं क्योंकि हमारा समय तो ये दीमक खा रहा है और खोखला हो रहा है हमारा जीवन।
कहते हैं कि दान ऐसे करना चाहिए कि एक हाथ को भी पता न चले कि दूसरे हाथ ने किसी को कुछ दिया है।पर आजकल तो फेसबुक के माध्यम से सारी दुनिया को पता चल जाता है कि किसी ने कोई भला काम किया है।अब दान एक होता है पर दानकर्ता अनेक। एक बिस्किट के पैकेट को भी कुछ इस तरह दिया जाता है जैसे कोई कुबेर का खज़ाना दे दिया गया हो।
पहले लोग दान_धर्म,अच्छे कर्म करते थे पुण्य कमाने के लिए।पर आजकल यह काम पुण्य कमाने के लिए नही लाइक्स और कमेंट्स पाने के लिए किया जाता है।लोग सच्चाई को छोड़ झूठे छलावे को ज्यादा पसंद करते हैं।
बच्चे के पैदा होने से की बधाई से लेकर किसी की मृत्यु पर शोक सभी कुछ हो जाता है इस पर। लोगों का समय भी बच जाता है और काम भी हो जाता है।फूहड़ता और निम्नस्तरीय मनोरंजन का भी एक खुला मंच है यह। यहां लोग फेम के लिए अपने नेम को खो रहे हैं।
वाकई जमाना बदल रहा है। पहले अनैतिक कार्य लोग छुपकर करते थे।पर आज लोगों को फेसबुक के नाम से ऐसा प्लेटफॉर्म मिल गया है जहां आधुनिकता के नाम पर खुलेआम देह व्यापार भी चल रहा है। कई औरतें और लड़कियां खुलेआम यहां अपने अंगों की बोलियां लगाती हैं। अब तो इनके लिए बहुत ही आसान हो गया है अपने लिए ग्राहक पाना। बड़ी आसानी से ये सीधे_सादे लोगों को ब्लैकमेल करती हैं।सिर्फ दोस्ती और टाइम पास करने के लिए कितने ही लड़के यहां लड़कियों का वेश धारण करके बैठे हैं। कोई महिला अच्छी लगी नही कि बस शुरू हो जाता है इनका मैसेज पर मैसेज भेजने का सिलसिला।आज के युवा भी इसमें अपने समय और भविष्य की आहुति देने में पीछे नहीं हैं।
पर कहां तक, और कितना उचित है यह आभासी आचरण।अभिनय और दिखावे की उम्र ज्यादा लंबी तो नही हो सकती। आखिर कितने दिनों तक जी सकते हैं हम ऐसी दोहरी ज़िंदगी। कभी तो हकीकत में आना होगा। आज सोशल होने के चक्कर में हम अकेले होते जा रहे हैं,बहुत अकेले।इसके जाल में हम हम बंधे नही हैं उलझ गए हैं,और इस उलझन को अब हमें ही सुलझना है।
लेखिका - रोशनी दीक्षित
*टिप्पणी- यह लेखिका की अपनी राय हैं |