शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक -महाशिवरात्रि | The Voice TV

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शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक -महाशिवरात्रि

Date : 18-Feb-2023

 

सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुंदर है। तभी तो भगवान आशुतोष को सत्यम शिवम सुंदरम कहा जाता है। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने का ही महापर्व है...शिवरात्रि...जिसे त्रयोदशी तिथि, फाल्गुण मास, कृष्ण पक्ष की तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माघ फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। यह पूजा व्रत  रखने के दौरान की जाती है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है|भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि शिवजी का महापर्व यह पर शिव विवाह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है अनजाने में किसी प्राणी मात्र द्वारा एक बेलपत्र भी शिवलिंग पर चढ़ जाए तो कोर्ट जन्मों के पापों को नीलेश्वर हर लेते हैं और इस जीवन को समृद्ध बनाकर अंत समय में मोक्ष प्रदान करते हैं और शिवरात्रि में वर्णित चारों प्रहर बेलपत्र और गंगाजल से पूजा द्वारा तो साक्षात मोक्ष ही मिल जाता है।

फाल्गुन के महीने का 14 वां दिन था जिस दिन शिव ने पहली बार खुद को लिंग रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिव की पूजा करने से उस व्यक्ति को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।

भारत के अधिकतर जनमानस यही जानते हैं कि महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष में मनाया जाता है। 

शिवलिंग की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस ब्रह्मांड के सृष्टि बनने से पहले पृथ्वी एक अंतहीन शक्ति थी। सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु पैदा हुए और भगवान विष्णु की नाभि से पैदा हुए भगवान ब्रह्मा। पृथ्वी पर पैदा होने के बाद कई सालों तक इन दोनों में युद्ध होता रहा है। दोनों आपस में एक दूसरे को ज्यादा शक्तिशाली मानते रहे। तभी आकाश में एक चमकता हुआ पत्थर दिखा और आकाशवाणी हुई कि जो इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा, उसे ही ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। वह पत्थर शिवलिंग था।

पत्थर का अंत ढूंढने के लिए भगवान विष्णु नीचे की ओर गए और भगवान ब्रह्मा ऊपर की ओर चले। हजारों सालों तक दोनों इस पत्थर का अंत ढूंढते रहे। लेकिन किसी को अंत नहीं मिला। भगवान विष्णु ने हाथ जोड़कर कहा कि हे प्रभु आप ही ज्यादा शक्तिशाली हैं। इस पत्थर का कोई अंत नहीं मिला। ब्रह्मा को भी इस पत्थर का अंत नहीं मिला। लेकिन ब्रह्मा ने सोचा कि अगर वो कहेंगे कि उन्हें भी अंत नहीं मिला तो विष्णु को ज्यादा ज्ञानी समझा जाएगा। इसलिए ब्रह्मा ने कहा कि उन्हें इस पत्थर का अंत मिल गया है।

तभी आकाशवाणी हुई मैं शिवलिंग हूं और ही मेरा कोई अंत हैं और ही कोई शुरुआत। तभी उस शिवलिंग से भगवान शिवजी प्रकट होते हैं। सच बोलने के लिए भगवान विष्णु को वरदान मिलता है तो वहीं झूठ बोलने के लिए भगवान ब्रह्मा को श्राप दिया जाता है कि कोई उनकी पूजा नहीं करेगा। हालांकि बाद में ब्रह्मा ने श्राप से अपने आपको मुक्त करा लिया।

ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है तो वहीं विष्णु को सृष्टि का रक्षक कहा जाता है। ब्रह्मांड में संतुलन पैदा करने के लिए शिवलिंग पैदा हुआ। शिवलिंग धरती पर ब्रह्मा और विष्णु की लड़ाई खत्म करने के लिए पैदा हुए थे।

हिंदू धर्म में मान्यताओं में शिवलिंग को पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इसका कोई रंग नहीं होता। इसका किसी भी रंग से संपर्क होता है उसी रंग का बन जाता है।

महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं?

पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तीन कारणों से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें शिव-पार्वती का विवाह सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस कारण से महाशिवरात्रि को कई स्थानों पर रात्रि में शिव बारात भी निकाली जाती है।

1.हिंदू धर्म में हर माह मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन फाल्गुन माह में आने वाली महाशिवरात्रि का खास महत्व होता है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. शास्त्रों की माने तों महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. इसके बाद से हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है.

कहा यह भी जाता है कि मां पार्वती सती का पुनर्जन्म है. मां पार्वती शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने शिवजी को अपना बनाने के लिए कई प्रयत्न किए थे, भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए. इसके बाद मां पार्वती ने त्रियुगी नारायण से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन साधना की थी और शिवजी को मोह लिया था और इसी दिन शिवजी और मां पार्वती का विवाह हुआ था.

2 पुराणों के अनुसार समुंद्र मंथन के समय वासुकि नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र के जल में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह ज्वालाएं संपूर्ण आकाश में फैलकर समस्त चराचर जगत को जलाने लगी। इस भीषण स्थिति से घबरा देव, ऋषि, मुनि भगवान शिव के पास गए तथा भीषण तम स्थिति से बचाने का अनुरोध किया तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु इस संकट से बचाइए।

भगवान शिव तो आशुतोष और दानी है। वे तुरंत प्रसन्न हुए तथा तत्काल उस विष को पीकर अपनी योग शक्ति के उसे कंठ में धारण कर लिया तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। उसी समय समुद्र के जल से चंद्र अपनी अमृत किरणों के साथ प्रकट हुए। देवता के अनुरोध पर उस विष की शांति के लिए भगवान शिव ने अपनी ललाट पर चंद्रमा को धारण कर लिया। तब से उनका नाम चंद्रशेखर पड़ा। शिव द्वारा इस महान विपदा को झेलने तथा गरल विष की शांति हेतु उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों में रात्रि भर शिव की महिमा का गुणगान किया। वह महान रात्रि ही तब से शिवरात्रि के नाम से जानी गई।

3. महादेव का शिवलिंग स्वरूप

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही महोदव अपने शिवलिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। तब सबसे पहले ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की थी। महाशिवरात्रि के दिन ही देशभर में द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे. ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं: सोमनाथ ज्योतिर्लिंगमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंगत्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं. इन 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रकट होने के उत्सव के रुप में भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है और भगवान शिव की पूजा की जाती है. एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत का महत्व

हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगत में रहते हुए मुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि। इस व्रत को रखने से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। शिव की साधना से धन-धान्य, सुख-सौभाग्य,और समृद्धि की कमी कभी नहीं होती। भक्ति और भाव से स्वत: के लिए तो करना ही चाहिए सात ही जगत के कल्याण के लिए भगवान आशुतोष की आराधना करनी चाहिए। मनसा...वाचा...कर्मणा हमें शिव की आराधना करनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ..नीलकण्ठ हैं, विश्वनाथ है।

घर पर स्थापित करें दिव्य पार्थिव शिवलिंग

शिवपुराण अनुसार भगवान विष्णु ने पूरे जगत के सुख और कामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान विश्वकर्मा को अलग-अलग तरह के शिवलिंग बनाकर देवताओं को देने की आज्ञा दी। विश्वकर्मा ने अलग-अलग पदार्थो, धातु रत्नों से शिवलिंग बनाए। जैसे पारद, मिश्री, जौं चावल, भस्म, गुड़, फल फूल, स्वर्ण रजत, बिबर मिट्टी, दही, मक्खन, हीरे, मोती, मणि, मूंगा, नाग, पार्थिव, तांबा, इंद्रनील, पुखराज, पद्मराग, पीतल, लहसुनिया, रत्न, चंदन, स्फटिक आदि से शिवलिंग बनाए गए।

सभी शिवलिंग के नाम भी अलग-अलग दिए गए और सभी का प्रभाव भी अलग-अलग बताया गया। शिवलिंग बनाने के बाद सभी की श्रेणियां भी रखी गई। जैसे, देवलिंग, असुरलिंग, अर्शलिंग, पुराणलिंग, मनुष्यलिंग, स्वयंभूलिंग।

 पार्थिव शिवलिंग

पार्थिव शिवलिंग बनाने की विधि   

पार्थिव शिवलिंग मिट्टी जल , भस्म , चन्दन , शहद आदि को मिश्रित (मिलाकर) करके अपने हाथों से निर्मित किया जाता है. इसके लिए छानी हुई शुद्ध मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़, मक्खन शहद ,चन्दन और भस्म मिलाकर शिवलिंग का निर्माण करें. शिवलिंग की ऊँचाई 12 अंगुल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. पार्थिव शिवलिंग के पूजन से जन्म -जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं. अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है. अपार शिव कृपा की प्राप्ति होती है. सावन में शिव भक्ति विशेष महत्व रखती है अत: सावन में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर उसकी पूजा अर्चना करना बहुत मंगलकारी माना गया है. बता दें कि, "कलयुग में कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने पार्थिव पूजन का प्रारंभ किया था."

पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्व

शिव महा पुराण में 'विद्येश्वरसंहिता' के 16वे अध्याय में दिए गए श्लोक "अप मृत्युहरं कालमृत्योश्चापि विनाशनम। सध:कलत्र-पुत्रादि-धन-धान्य प्रदं द्विजा:" के अनुसार पार्थिव शिवलिंग की पूजा से तत्क्षण (तुरंत ही) जो कलत्र पुत्रादि यानी कि घर की बहु, पुत्र वधु जो होती है वो शिव शंभू की कृपा से घर में धन धान्य लेकर आती है और इस लोक में सभी मनोरथ को भी पूर्ण करती है. गृह लक्ष्मी द्वारा की गई पार्थिव शिवलिंग की पूजा अकाल मृत्यु को भी टालती है. बता दें कि, इस पूजा को स्त्री पुरुष सभी कर सकते हैं. शिवपुराण के अनुसार, पार्थिव पूजन से धन-धान्य, आरोग्य के साथ ही पुत्र की प्राप्ति होती है. जो दम्पति पुत्र प्राप्ति के लिए कई वर्षों से तड़प रहे हैं, उन्हें पार्थिव लिंग का पूजन अवश्य करना चाहिए. पार्थिव लिंग के पूजन से अकाल मृत्यु का भय भी खत्म हो जाता है. शिवजी की आराधना के लिए पार्थिव पूजन सभी लोग कर सकते हैं.

 

 
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