‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा गाँधी | The Voice TV

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‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा गाँधी

Date : 22-Feb-2023

अगर हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो हमारे मस्तिष्क में अनेकों महिलाओं का नाम प्रतिबिंबित होता है पर वो महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं ‘कस्तूरबा गाँधी’। ‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी थीं और भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। निरक्षर होने के बावजूद कस्तूरबा के अन्दर अच्छे-बुरे को पहचानने का विवेक था। उन्होंने ताउम्र बुराई का डटकर सामना किया और कई मौकों पर तो गांधीजी को चेतावनी देने से भी नहीं चूकीं। बकौल महात्मा गाँधी, “जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं”। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने पति और देश के लिए व्यतीत कर दिया। इस प्रकार देश की आजादी और सामाजिक उत्थान में कस्तूरबा गाँधी ने बहुमूल्य योगदान दिया।

जीवनी

कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन् 1869 ई. में महात्मा गाँधी की तरह काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। इस प्रकार कस्तूरबा गाँधी आयु में गाँधी जी से 6 मास बड़ी थीं। कस्तूरबा गाँधी के पिता 'गोकुलदास मकनजी' साधारण स्थिति के व्यापारी थे। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था। इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया। बापू ने उन पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया और चाहा कि कस्तूरबा बिना उनसे अनुमति लिए कहीं न जाएं, किंतु वे उन्हें जितना दबाते उतना ही वे आज़ादी लेती और जहाँ चाहतीं, चली जातीं।

गांधीजी के साथ जीवन

1888 तक दोनों साथ ही रहे. महात्मा गांधी जब इंग्लैंड से भारत लौट आये उसके बाद लगभग बारह वर्षो तक दोनों ने अलग अलग दिन गुजारे. उसके बाद गांधीजी को आफ्रिका जाना पड़ा था. 1896 में वे भारत लौट आये, उस समय वे बा को भी अपने साथ लेकर चले गए. इस समय से वह गांधीजी के साथ रहने लगी थी. बापू के हर फैसले में साथ देना, यह बा ने अपना परम कर्त्तव्य माना था. वे बापू के हर महाव्रतों में सदैव उनके साथ रहीं.

दक्षिण अफ्रीका में भारतियों की दशा के विरोध में जब वो आन्दोलन में शामिल हुईं तब उन्हें तीन महीनों केलिए गिरफ्तार कर दिया गया था. 1915 में कस्तूरबा भी महात्मा गाँधी के साथ भारत लौट आयीं. चंपारण सत्याग्रह के दौरान उन्होंने भी लोगों को सफाई, अनुशासन, पढाई आदि के महत्व के बारे में बताया. इसी दौरान कस्तूरबा ने गांव गांव घूमकर दवाइयाँ वितरण का कार्य किया था.

1922 में जब गांधी जी को गिरफ्तारी हुई, इस समय कस्तूरबा ने गुजरात के गावों का दौरा किया. क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण 1932 और 1933 में उनका अधिकांश समय जेल में ही गुजरा. 1939 में उन्होंने राजकोट रियासत के राजा के विरोध में भी सत्याग्रह में भाग लिया.

कस्तूरबा गांधी का ग्रहस्थ जीवन और बच्चे

 

शादी के करीब 6 साल बाद साल 1888 में कस्तूरबा गांधी ने अपने सबसे बड़े बेटे हरिलाल को जन्म दिया। हालांकि इस दौरान गांधी जी अपनी लॉ पढ़ाई के लिए लंदन गए हुए थे, जिसके चलते कस्तूरबा गांधी ने अकेले ही अपने बेटे की परिवरिश की।

इसके बाद जब गांधी जी वापस अपनी भारत लौटे तब 1892 में उन्हें मणिलाल नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई। फिर इसके बाद महात्मा गांधी जी को अपनी वकालत की प्रैक्टिस के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा, लेकिन इस बार वे अपने साथ कस्तूरबा गांधी जी को भी ले गए।

इस दौरान कस्तूरबा गांधी ने एक आदर्श पत्नी की तरह अपने पति का हर कदम पर साथ दिया। फिर इसके 5 साल बाद 1897 में कस्तूरबा ने अपने तीसरे बेटे रामदास को जन्म दिया और सन् 1900 में कस्तूरबा ने अपनी चौथी संतान देवदास को जन्म दिया।

स्वतंत्रता कुमुक की प्रतिभागी

कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी के 'स्वतंत्रता कुमुक' की पहली महिला प्रतिभागी थीं। कस्तूरबा गाँधी का अपना एक दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी का मोल और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था। स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना उन्होंने भी की थी। उन्होंने हर क़दम पर अपने पति मोहनदास करमचंद गाँधी का साथ निभाया था। 'बा' जैसा आत्मबलिदान का प्रतीक व्यक्तित्व उनके साथ नहीं होता तो गाँधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर नहीं होते। कस्तूरबा ने अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय भी दिया था। जब-जब गाँधी जी जेल गए थे, वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं।

दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष में कस्तूरबा ने बखूबी साथ निभाया:

दक्षिण अफ्रीका में कस्तूरबा जी ने गांधी जी का बखूबी साथ दिया। कस्तूरबा गांधी एक दृढ़इच्छा शक्ति वाली अनुशासित एवं कर्मठ महिला थीं। वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की दशा के विरोध में किए आंदोलन में न सिर्फ शामिल हुईं, बल्कि इस दौरान उन्होंने अनशन और भूख हड़ताल कर अधिकारियों को अपने सामने झुकने के लिए मजबूर कर दिया।

दरअसल, 1913 में जब कस्तूरबा गांधी ने निर्भीकता से दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों की स्थिति पर सवाल खड़े किए, तब उन्हें इसके लिए तीन महीने की कड़ी सजा के साथ जेल की सलाखो के पीछे बंद कर दिया गया।

जेल की इस कड़ी सजा के दौरान अधिकारियों ने कस्तूरबा गांधी जी को डराने-धमकाने की भी कोशिश की लेकिन उनके दृढ़ स्वभाव के आगे अधिकारियों की सभी कोशिशें नाकाम साबित हुईं।

कस्तूरबा से 'बा' बनने का सफर

कस्तूरबा गांधी ने केवल पत्नी धर्म को पूरा करते हुए गांधी जी का साथ ही नहीं दिया लेकिन खुद भी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की तरह कार्य किया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ गांधी जी ने आंदोलन छेड़ा थी। उस समय कस्तूरबा गांधी भी जेल गई। वहीं कैदियों के साथ होने वाले अत्याचार को उन्हें देखा। वह एक मां की तरह कैदियों का दुख दर्द बांटती थीं। प्रार्थना करना सिखाती थी। यहां से ही लोग उन्हें 'बा' कहने लगे। 

 

बापर बापू की भी चली:

 

कस्तूरबा को शादी के बाद अपनी निरक्षरता को लेकर थोड़ा संघर्ष करना पड़ा। दरअसल, महात्मा गांधी उनके अनपढ़ होने की वजह से उनसे खुश नहीं रहते थे और उन्हें ताने भी देते थी।

यही नहीं महात्मा गांधी को कस्तूरबा का ज्यादा सजना, संवरना एवं घर से बाहर निकलना तक पसंद नहीं था।

बापू ने उन पर शादी के बाद शुरुआती दिनों से ही उनके बाहर निकलने पर अंकुश लगाने की कोशिश की थी, लेकिन गांधी जी की इन सब बातों का कस्तूरबा पर ज्यादा कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, बल्कि वे जहां जाना जरूरी समझती थी, चली जाती थी। इस तरह बापू जी भी उन पर अंकुश लगाने में नाकामयाब रहे।

लेकिन, बाद में गांधी जी ने ही कस्तूरबा को पढना-लिखना सिखाया था। जिसके बाद उन्हें हिन्दी और गुजराती का अच्छा ज्ञान हो गया था। हालांकि, शादी के बाद घरेलू जिम्मेदारियों के बोझ के तले वे दब गईं थीं और ज्यादा नहीं पढ़ पाईं थी।


बापू जी को मानती थी अपना आदर्श:

 

कस्तूरबा गांधी जी अपने पति महात्मा गांधी जी को अपना आदर्श मानती थी और वे उनसे इतना अधिक प्रभावित थीं कि बाद में उन्होंने भी अपने जीवन को गांधी जी की तरह बिल्कुल साधारण बना लिया था। यह तो सभी जानते हैं कि गांधी जी पहले कोई भी काम खुद करते थे, इसके बाद वे किसी और से करने के लिए कहते थे।

 

वहीं उनके इस स्वभाव से कस्तूरबा गांधी जी काफी प्रसन्न रहती थीं और उनसे सीखती थी। वहीं कस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधी जी से जुड़ा हुआ एक काफी चर्चित प्रसंग भी है। दरअसल, जब कस्तूरबा बीमार रहने लगीं थी, तब गांधी जी ने उनसे नमक छोड़ने के लिए कहा।

इस बात को लेकर कस्तूरबा ने पहले तो नमक के बिना खाना बेस्वाद लगने का तर्क दिया, लेकिन जब गांधी जी को उन्होंने खुद नमक छोड़ते हुए देखा तो वे काफी प्रभावित हुईं और उन्होंने नमक छोड़ दिया एवं अपना जीवन भी गांधी जी तरह जीना शुरु दिया। वे उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानती थीं।

मृत्यु

9 अगस्त सन् 1942 ई. को बापू के गिरफ़्तार हो जाने पर कस्तूरबा गाँधी ने, शिवाजी पार्क, मुंबई में, जहाँ स्वयं बापू भाषण देने वाले थे, सभा में भाषण करने का निश्चय किया। किंतु पार्क के द्वार पर पहुँचने पर कस्तूरबा गाँधी गिरफ़्तार कर ली गई। कस्तूरबा गाँधी को दो दिन बाद पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। बापू गिरफ़्तार करके पहले ही वहाँ भेजे जा चुके थे। उस समय कस्तूरबा गाँधी अस्वस्थ थीं। 15 अगस्त को जब यकायक महादेव देसाई ने महाप्रयाण किया तो कस्तूरबा गाँधी बार बार यही कहती रहीं महादेव क्यों गया, मैं क्यों नहीं। बाद में महादेव देसाई का चितास्थान कस्तूरबा गाँधी के लिए शंकर-महादेव का मंदिर सा बन गया। कस्तूरबा गाँधी प्रतिदिन वहाँ जाती थीं और समाधि की प्रदक्षिणा कर उसे नमस्कार करतीं। कस्तूरबा गाँधी उस पर दीप भी जलवातीं थीं।

कस्तूरबा गाँधी का गिरफ़्तारी की रात को जो स्वास्थ्य बिगड़ा वह फिर संतोषजनक रूप से सुधरा नहीं और कस्तूरबा गाँधी ने 22 फ़रवरी सन् 1944 को अपना प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने 'महिला कल्याण' के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र कर इन्दौर में 'कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट' की स्थापना की।

अनमोल विचार |

•              जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है.

•              हमे वो बदलाव लाना चाहिए जिसे हम देखना चाहते है.

•              खुशी तब होती है जब आप क्या सोचते हैं, आप क्या कहते हैं, और आप क्या करते हैं सद्भाव में हैं.

•              मेरा जीवन मेरा संदेश है.

•              यह काफ़ी ज़्यादा है. जीवन की तेज़ी को बड़ाने के लिए.

•              अपनी दोस्त की बात नही सुने. जब वह अंदर से कहता हो. ऐसा मत करो.

•              शक्ति दो प्रकार का होता है पहली सज़ा का डर और दूसरी प्रेम की कला से. प्यार पर आधारित सकती हज़ार गुना ज़्यादा कारगर और स्थाई है.

 
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