भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अटूट देश भक्ति की भावना और अपने साहस से स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई और कई लोगों को इस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उकसाया।
वीर सपूत चंद्र शेखर आजाद ने अपनी बहादुरी के बल पर काकोरी ट्रेन में डकैती डाली और वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने की कोशिश भी की यही नहीं इस महान क्रांतिकारी ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की इसके अलावा उन्होनें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन किया।
वे भगत सिंह के सलाहकार और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे चन्द्र शेखर आजाद ने गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के लिए अपन प्राणों की आहुति दी थी।
चन्द्र शेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन –
भारत के वीर सपूत चंद्र शेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भाभरा गांव में हुआ था। चंद्र शेखर आजाद का वास्तविक नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था।
क्रांतिकारी चंद शेखर आजाद के पिता का नाम सीताराम तिवारी था जिन्हें अकाल की वजह से अपना पैतृक गांव बदरका छोड़ना पड़ा इसके बाद वे अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए भाभरा गांव में बस गए।
चंद्रशेखर आजाद के पिता एक ईमानदार, स्वाभिमान और दयालु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
बचपन से ही था निशानेबाजी का शौक
चंद्र शेखर आजाद का बचपन बाहुल्य क्षेत्र भावरा गांव में ही बीता। बचपन में चंद्रशेखर आजाद ने भील बालकों के साथ रहते-रहते धनुष बाण चलाना सीख लिया था इसके साथ ही निशानेबाजी के शौक ने उन्हें अच्छा निशानेबाज बना दिया था।
आपको बता दें कि चंद्र शेखर आजाद बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे उनका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था उन्हें बचपन से ही खेल-कूद में मन लगता था।
चंद्र शेखर आजाद की शिक्षा
चंद्रशेखर आजाद को प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही दी गई। बचपन से ही चंद्रशेखर की पढ़ाई में कोई खास रूचि नहीं थी। इसलिए चंद्रशेखर को पढ़ाने इनके पिता के करीबी दोस्त मनोहर लाल त्रिवेदी जी आते थे। जो कि चंद्र शेखर और उनके भाई सुखदेव को भी पढ़ाते थे।
आजाद को संस्कृत का विद्दान बनाना चाहती थी मां जगरानी देवी:
चंद्र शेखर आजाद की माता का नाम जगरानी देवी था जो कि बचपन से ही अपने बेटे चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत में निपुण बनाना चाहती थी वे चाहती थी कि उनका बेटा संस्कृत का विद्दान बने।
इसीलिए चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत सीखने लिए काशी विद्यापीठ, बनारस भेजा गया।
गांधी के असहयोग आंदोलन में चंद्र शेखर आजाद ने लिया हिस्सा –
दिया। चंद्रशेखर बेहद कम्र उम्र में देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने थे। जब सन् 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया तो आज़ाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। इसके बाद वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल और शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेश चन्द्र चटर्जी द्वारा 1924 में गठित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए।
काकोरी कांड में लिया पहली बार भाग
इस एसोसिएशन के साथ जुड़ने के बाद चंद्रशेखर ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी कांड (1925) में पहली बार सक्रिय रूप से भाग लिया। इसके बाद चंद्रशेखर ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया। इन सफल घटनाओं के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खजाने को लूट कर संगठन की क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया। चंद्रशेखर का मानना था कि यह धन भारतीयों का ही है जिसे अंग्रेजों ने लूटा है।
आजाद के नाम से लोकप्रिय हुए पंडित चंद्रशेखर तिवारी:
जब चंद्रशेखर को जज के सामने लाया गया तो नाम पूछने पर चंद्रशेखर ने अपना नाम “आजाद” बताया था, उनके पिता का नाम “स्वतंत्र” और उनका निवास स्थान “जेल” बताया।
चंद्रशेखर के ऐसे जवाबों से जज आग बबूला हो गए और चंद्र शेखर को 15 कोड़ों से मारने की सजा सुनाई वहीं अपनी बात पर अडिग रहने वाले चंद्रशेखर ने उफ्फ तक नहीं किया और हर बेंत के सात “भारत माता की जय” का नारा लागाया।
इस घटना के बाद से पंडित चंद्रशेखर तिवारी, आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
लाला लाजपत राय की हत्या का बदला और सांडर्स की हत्या:
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दल ने फिर क्रांतिकारी और अपराधिक गतिविधिओं को अंजाम दिया जिससे एक बार फिर अंग्रेज चंद्र शेखर आजाद के दल के पीछे पड़ गए।
इसके साथ ही चंद्र शेखर आजाद ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने का भी फैसला किया और अपने साथियों के साथ मिलकर 1928 में सांडर्स की हत्या की वारदात को अंजाम दिया। भारतीय क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद का मानना था कि,
“संघर्ष की राह में हिंसा कोई बड़ी बात नहीं” – आजाद
वहीं जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड में हजारों मासूमों को बेगुनाहों पर गोलियों से दागा गया इस घटना से चंद्र शेखर आजाद की भावना को काफी ठेस पहुंची थी और बाद में उन्होनें हिंसा के मार्ग को ही अपना लिया।
17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।
इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया।
आयरिश क्रांति और असेम्बली में बम फोड़ने की घटना:
भारत के दूसरे स्वतंत्रता सेनानी आयरिश क्रांति के संपर्क से काफी प्रभावित थे इसी को लेकर उन्होनें असेम्बली में बम फोड़ने का फैसला लिया।
चंद्रशेखर आजाद ने भगतसिंह का निष्ठा के साथ सहयोग किया जिसके बाद अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में हाथ धोकर इनके पीछे पड़ गई और ये पुर्नगठित दल फिर से बिखर गया इस बार दल के सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसमें भगत सिंह भी शामिल थे जिन्हें बचाने की चंद्र शेखर आजाद ने पूरी कोशिश की लेकिन अंग्रेजों के सैन्य बल के सामने वे उन्हें नहीं छुड़ा सके।
हालांकि चंद्र शेखर आजाद हमेशा की तरह इस बार भी ब्रिटिश सरकार को चकमा देकर भागने में कामयाब रहे।
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अमर हुए आजाद
अंग्रेजों ने राजगुरू, भगत सिंह, और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई थी।
वहीं चंद्र शेखर आजाद इस सजा को किसी तरह कम और उम्रकैद की सजा में बदलने की कोशिश कर रहे थे जिसके लिए वे इलाहाबाद पहुंचे थे इसकी भनक पुलिस प्रशासन को लग गई फिर क्या थे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने चंद्र शेखर आजाद को चारों तरफ से घेर लिया।
और आजाद को आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन आजाद हमेशा की तरह इस बार भी अडिग रहे और बहादुरी से उन्होनें पुलिस वालों का सामना किया लेकिन इस गोलीबारी के बीच जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक गोली बची थी इस बार आजाद ने पूरी स्थिति को भाप लिया था और वे खुद को पुलिस के हाथों नहीं मरना देना चाहते थे इसलिए उन्होनें खुद को गोली मार ली।
इस तरह भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद अमर हो गए और उनकी अमरगाथा इतिहास के पन्नों पर छप गई इसके साथ ही इस क्रांतिकारी वीर की वीरगाथा भारतीय पाठ्यक्रमों में भी शामिल की गई है।
भी उन्ही के नाम पर रखा गया था। शहीद चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया। वहीं जब लोगों को इस बात का पता चला तो वे सड़कों पर उतर आए और ब्रिटिश शासक के खिलाफ जमकर नारे लगाए इसके बाद लोगों ने उस पेड़ की पूजा करनी शुरु कर दी जहां इस भारतीय वीर सपूत ने अपनी आखिरी सांस ली थी।
इस तरह लोगों ने अपने महान क्रांतिकारी को अंतिम विदाई दी। वहीं भारत के आजाद होने के बाद जहां चंद्रशेखर आजाद ने अपनी आखिरी सांस ली थी उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रखा गया इसके साथ ही जिस पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मारी थी उसे इलाहाबाद के म्यूजियम में संजो कर रखा गया है।
उनकी मृत्यु के बाद भारत में बहुत सी स्कूल, कॉलेज, रास्तो और सामाजिक संस्थाओ के नामो को
आजाद एक विरासत –
महान योद्धा चंद्र शेखर आजाद जिसे ब्रिटिश राज की नींव को हिलाकर रख दिया था और अंग्रेजों को अपनी हिंसात्मक गतिविधियों से डरा दिया था और जिन्होनें अपने पूरी तरह से खुद को स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया था।
इसके साथ ही वे ब्रिटिश शासकों के लिए बड़ी समस्या बन गए थे क्योंकि आजाद को पकड़ पाना ब्रिटिश शासकों के लिए एक चुनौती बन गई थी। भारत की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
इसके साथ ही– चंद्रशेखऱ आजाद ने समाजवादी आदर्शों के आधार पर एक स्वतंत्र भारत का सपना देखा था और उन सपनों को साकार करने के लिए खुद का बलिदान कर दिया था।
आजाद के भव्य बलिदान से तुरंत आजादी नहीं मिली थी लेकिन उन्होनें भारतीय क्रांतिकारियों में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह और तेज कर दिया था।
वे उग्र क्रांतिकारी योद्दा थे जो कि वीरगति को प्राप्त हुए और भारतवर्ष का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। वहीं ऐसे वीर सपूतों के जन्म से भारत सदा के लिए पवित्र हो गया।
भारतीय संस्कृति में लोकप्रिय हुए आजाद:
आजादी के बाद, चंद्रशेखर आजाद की बहादुरी याद करने के लिए इलाहाबाद में अल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रखा गया।
आपको बता दें कि इस महान क्रांतिकारी योद्धा ने इसी पार्क में अपनी आखिरी सांस ली थी।
इसके साथ ही भारत में कई स्कूल, कॉलेज, सड़क मार्गों और सामाजिक संस्थाओ के नाम भी चंद्रशेखर आजाद के नाम पर रखे गए थे।
चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
1. आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी उस समय आए अकाल के कारण उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करा शुरू कर दिया और भाबरा गांव में बस गए थे।
2. आजाद का बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गांव में बीता था। यहां पर आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाए थे। जिसके कारण उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी।
3. जलियांवाला बाग कांड के समय चन्द्रशेखर बनारस में पढ़ाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन शुरू किया तो वे अपनी पढ़ाई छोड़कर सड़क पर उतर आए।
4. जब हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ ने धन की व्यवस्था करने के लिए अमीर घरों में डकैतियां डालने का निश्चय किया तो आजाद से एक डकैती के समय एक महिला ने उनका पिस्तौल छीन लिया, आजाद ने अपने उसूलों के कारण उसे कुछ नहीं कहा।
5. क्रांति में धन की कमी को दूर करने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया था।
6. आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने मिलकर 17 दिसंबर, 1928 की शाम को लाहौर में पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को मार दिया। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।
7. इस हत्याकांड के बाद लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है।
8. आजाद ने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा था, लेकिन वहां से उन्हें कोरा जवाब मिल गया था।
9. आज़ाद ने इन तीनों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया था। वे पण्डित नेहरू से भी आग्रह किए थे कि तीनों की फांसी को उम्रकैद में बदलवा दिया जाए, लेकिन सफलता नहीं मिली।
10. आजाद ने ताउम्र अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं होने का अपना वादा पूरा किया। वे 27 फरवरी 1931 के दिन अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज कर लिया।