एक बार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक मल्लाह की नौका को क्षति पहुँचा दी। इससे वह छात्रों को तथा तत्कालीन उपकुलपति महामना मालवीयजी को कोसता हुआ मालवीयजी के निवास स्थान पर आया। उस समय मालवीयजी के यहाँ कोई महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी। मल्लाह की बकवास सुनकर सभी क्षुब्ध हो उठे, किन्तु करुणा-मूर्ति मालवीयजी जरा भी विक्षुब्ध न हुए। इतना ही नहीं, उन्होंने अश्रुपूरित नेत्रों से मल्लाह की ओर देखा और वे उसके चरण स्पर्श करते हुए बोले, "भाई ! लगता है मुझसे तुम्हारा कोई महान् अपराध हुआ है। मुझे क्षमा करो और कृपा करके बताओ कि मैं किस अपराध के लिए दोषी हूँ?"
मल्लाह को स्वप्न में भी आशा न थी कि मालवीयजी उससे इतनी विनम्रता का व्यवहार करेंगे। वह एकदम पानी-पानी हो गया। बहुत आग्रह करने के बाद बड़ी मुश्किल से वह सारी घटना सुना सका, किन्तु मालवीयजी की सौजन्यता से इतना प्रभावित हुआ कि बिना कुछ सुने ही सबको दुआएँ देता हुआ वहाँ से चलता बना।