स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके। चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे |
दानप्रसंगो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च ॥
सत्कर्म का आचरण करनेवाले व्यक्ति को महात्मा रूप में व्यक्त करते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान देने में रुचि, मधुर वाणी, देवताओं की पूजा तथा ब्राह्मणों को सन्तुष्ट रखना, इन चार लक्षणोंवाला व्यक्ति इस लोक में कोई स्वर्ग की आत्मा होता है।
आशय यह है कि दान देने की आदतवाला, सबसे प्रिय बोलनेवाले देवताओं की पूजा करनेवाला तथा विद्वानों-ब्राह्मणों का सम्मान करनेवाला व्यक्ति दिव्य आत्मा होता है। जिस व्यक्ति में ये सभी गुण पाये जाते हैं, वह महान् पुरुष होता है। ऐसे व्यक्ति को किसी स्वर्ग की आत्मा का अवतार समझना चाहिए।