हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना गया है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है। वर्ष भर में आने वाली सभी एकादशियों में से इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पितृ पक्ष के दौरान आती है और पितरों की मुक्ति के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।
पुराणों के अनुसार, कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या या तीर्थ यात्रा से जितना पुण्य प्राप्त होता है, उससे कहीं अधिक पुण्य इंदिरा एकादशी व्रत से मिलता है। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से पितरों को यमलोक से मुक्ति मिलती है और उन्हें स्वर्ग प्राप्त होता है।
व्रत रखने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा कर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन झूठ, छल, कपट और हिंसा से दूर रहना चाहिए। साथ ही दूध, दही, घी, अन्न और वस्त्र का दान करना तथा ज़रूरतमंदों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।
इंदिरा एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा इंद्रसेन ने जब अपने परिवार और प्रजा के साथ यह व्रत किया, तो व्रत पूर्ण होते ही स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा हुई और उन्हें अपने पिता को वैकुंठ धाम की ओर जाते हुए दर्शन प्राप्त हुए। इस घटना से यह प्रमाणित होता है कि यह व्रत न केवल जीवित व्यक्तियों के लिए, बल्कि पितरों के उद्धार के लिए भी अत्यंत प्रभावशाली है।
इंदिरा एकादशी व्रत से पितृ दोष दूर होता है, पापों का नाश होता है, और मृत्यु के पश्चात उच्च लोक की प्राप्ति होती है। यह व्रत मोक्ष और पितरों की शांति प्राप्त करने का एक श्रेष्ठ मार्ग माना गया है।