आज 2 अक्टूबर, हम केवल महात्मा गांधी की जयंती ही नहीं मना रहे हैं, बल्कि उस महान नेता लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती भी है, जिन्होंने अपने सादगी, ईमानदारी और समर्पण से पूरे देश को प्रेरित किया। शास्त्री जी ने जीवन भर देश की सेवा को सर्वोपरि रखा और अपने नेतृत्व से भारतीय राजनीति में एक नई दिशा स्थापित की। उनका व्यक्तित्व सरलता और सत्यनिष्ठा का उदाहरण था, जिसने उन्हें हर भारतीय के दिल के करीब बना दिया।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में एक सामान्य परिवार में हुआ। बचपन में उन्होंने अपने पिता को खो दिया और परिवार की आर्थिक स्थिति भी कठिन थी। इसके बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। स्कूल जाने के लिए वे नदी पार तैरकर जाते थे क्योंकि नाव का किराया देना परिवार के लिए संभव नहीं था। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और आत्मनिर्भरता का परिचायक था। पढ़ाई में वे अत्यंत उत्कृष्ट थे और 1926 में काशी विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसी दौरान उन्हें "शास्त्री" की उपाधि मिली, जिसका अर्थ है 'विद्वान', और यह नाम उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया।
1920 के दशक से ही शास्त्री जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़े। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और 1930 के नमक सत्याग्रह तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल की सजा भी भुगती। जेल में बिताए गए समय का उन्होंने सदुपयोग किया और किताबें पढ़कर तथा समाज सुधारकों के विचारों का अध्ययन करके अपने ज्ञान को बढ़ाया। यह समय उनके विचारों को और मजबूत बनाने वाला था, जिसने उन्हें एक दूरदर्शी और निष्ठावान नेता बनाया।
स्वतंत्रता के बाद, शास्त्री जी ने राजनीति में अपनी सेवाएं दीं और उत्तर प्रदेश के पुलिस तथा परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने महिलाओं को कंडक्टर नियुक्त करके और भीड़ नियंत्रित करने के लिए पानी की बौछारों का इस्तेमाल करने जैसे सुधार किए। 1955 में रेल मंत्री के रूप में उनकी प्राथमिकता यात्री सुरक्षा रही। 1961 में गृह मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण समिति का गठन किया और भाषा विवादों को सुलझाने के लिए “शास्त्री फॉर्मूला” पेश किया, जिससे देश की एकता और स्थिरता बनी।
9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल में उन्होंने देश को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का प्रेरक नारा दिया, जिसने सैनिकों और किसानों दोनों के प्रति सम्मान और गर्व की भावना जगाई। यह नारा देशवासियों के दिलों में एकता और साहस की लौ जलाने वाला था। उनकी दूरदर्शिता के कारण भारत में श्वेत क्रांति के तहत दूध उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और हरित क्रांति से खाद्यान्न उत्पादन में जबरदस्त प्रगति हुई, जिससे देश खाद्यान्न सुरक्षा की ओर बढ़ा।
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान शास्त्री जी ने सशस्त्र बलों को पूरी ताकत से जवाब देने का निर्देश दिया। उनकी नेतृत्व क्षमता ने देश को संकट की घड़ी में एकजुट किया। 10 जनवरी 1966 को उन्होंने ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। लेकिन कुछ ही घंटे बाद, 11 जनवरी की रात उनका निधन हो गया, जो आज भी रहस्यमय बना हुआ है।
शास्त्री जी की सादगी उनकी सबसे बड़ी पहचान थी। उन्होंने अपनी शादी में दहेज के रूप में केवल एक चरखा और खादी का कपड़ा स्वीकार किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे सरकारी गाड़ी का किराया खुद देते थे। उनकी यह विनम्रता और कर्तव्यनिष्ठा आज भी हर भारतीय के लिए आदर्श है। उनके विचार आज भी हमें यही सिखाते हैं कि देश की ताकत एकता में है, और विकास के लिए गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना आवश्यक है। वे हमेशा कहते थे कि किसानों के अधिकारों की रक्षा के बिना देश का विकास संभव नहीं है और अहिंसा व शांति का पालन हमारा मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी, सत्य और समर्पण की मिसाल है। उनकी जयंती पर हमें उनके आदर्शों को अपनाकर अपने जीवन को राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित करना चाहिए। उनका दिया हुआ संदेश आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्रोत है: “जय जवान, जय किसान।” आइए, हम इस महान नेता के विचारों और कर्मों को याद करें और देश को एक मजबूत, समृद्ध और शांतिपूर्ण भविष्य की ओर ले जाने में अपना योगदान दें। जय हिंद!
