धान का कटोरा कहे जाने वाले यह छत्तीसगढ़ अपनी विशेषता के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। आज हम छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित खल्लारी माता के मंदिर के बारे में बात करेंगे।
माता का यह मंदिर खल्लारी ग्राम की पहाड़ियों पर बिल्कुल शीर्ष पर स्थित है। यह महासमुंद में दक्षिण की ओर 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
खल्लारी का इतिहास देखा जाए तो आपको बता दें कि जब कलचुरी वंश की एक शाखा रायपुर पर स्थापित की गई थी तब कलचुरी वंश की शुरुआती राजधानी खल्लारी थी। उस समय में खल्लारी का पूरा इलाका मृतकागड़ नाम से जाना जाता था।
सन 1409 में ब्रह्मा देव राय के राज में कलचुरी वंश की राजधानी को खल्लारी से रायपुर में बदल दिया गया था।
बात करें खल्लारी और रायपुर के बीच की दूरी की तो खल्लारी और रायपुर के बीच लगभग 80 किलोमीटर का फासला है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ के सभी क्षेत्रों का बखान महाभारत में वर्णित है। ठीक उसी प्रकार महाभारत में इस जगह को खाल्लवतिका के नाम से जाना जाता था।
खल्लारी माता मंदिर का इतिहास
इस मंदिर के संबंध में मिलने वाली पहली कहानी के अनुसार माना जाता है कि यही वह जगह है जहां पर पहली बार हिडिंबा ने भीम को देखा था।
पांडव जिस वन में विचरण कर रहे थे उस वन में एक हिडिंबसुर नामक राक्षस का राज चलता था। हिडिंबसुर एक बहुत बलशाली और पीले आंख वाला राक्षस था। हिडिंबसुर के पास एक विशेष शक्ति थी वह किसी भी व्यक्ति के गंध को सूंघ कर उसको अपना शिकार बना सकता था।
पांडव जब वन में विचरण कर रहे थे तब सभी को थकावट का अहसास हुआ जिसके चलते सभी ने वन के बीचों बीच अच्छे जगह को चुनकर विश्राम करने का फैसला लिया।
लेकिन विश्राम करते समय उनमें से किसी एक का पहरा देना अति आवश्यक था क्योंकि वन में किसी भी समय वन्य प्राणी उन पर हमला कर सकते थे।
पांडव में माता कुंती के साथ सभी थक गए थे भीम को छोड़कर। अतः भीम ने सोते हुए माता और अपने भाइयों के लिए पहरा देना उचित समझा।
इसी दौरान हिडिंबसुर राक्षस को इस घने जंगल में मानव के गंध की आभास हुई और वह गंध पांडव और माता कुंती की थी। हिडिंबसुर ने अपने बहन हिडिंबा को उन सभी को अपने पास लाने का निर्देश दिया।
हिडिंबसुर उन सभी को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करना चाहता था। अपने भाई के निर्देश का पालन करते हुए बहन हिडिंबा पांडव को खोजते खोजते उन लोगो के करीब जा पहुंची।
हिडिंबा जब पांडवो के पास पहुंची तब वह भीम की गठीली काया को देखकर मनमोहित हो गई। भीम अपने भाई और माता कुंती के सोने पर पहरा देते हुए किसी साहसी की भांति प्रतीत हो रहा था।
हिडिंबा भीम को पहले ही नजर में अपना पति मान चुकी थी। हिडिंबा भीम को और करीब से देखना चाहती थी इसलिए उसने एक सुंदरी का रूप धारण किया और भीम के पास जा पहुंची।
जब भीम ने हिडिंबा को देखा तो भीम अचंभित रह गया कि इतनी सुन्दर स्त्री इस घने जंगल में अकेली क्यों घूम रही है। भीम ने आखिरकार उस स्त्री से पूछ ही लिया की - हे सुंदरी! तुम कौन हो और तुम इतने घने जंगल में अकेले क्यों घूम रही हो।
जवाब में उस सुंदरी ने भीम से कुछ भी नहीं छुपाया और सभी बाते सच सच बता दिया। उस सुंदरी ने कहा कि मैं एक हिडिंबा नाम कि एक राक्षसी हूं और मैने आपको पहली ही नजर में अपना पति स्वीकार कर लिया है।
हिडिंबा ने आगे कहा - मेरा भाई एक क्रूर व्यवहार का एक खतरनाक राक्षस है और वह आप सभी को अपना भोजन बनाना चाहता है। मै आपको और आपके पूरे परिवार को हिडिंबसुर राक्षस से बचा सकती हूं।
इतने में ही बहन हिडिंबा को आने में देर होता देख हिडिंबसुर स्वयं वहां पर जा पहुंचा और वहां पर अपनी बहन को भीम से प्रेम की बाते करते देख क्रोधित हो गया।
क्रोधित हिडिंबसुर ने अपनी बहन पर हाथ उठा दिया जिसका भीम ने विरोध करते हुए कहा - तू एक नारी पर हाथ उठाता है तू कोई वीर नहीं है बल्कि तू एक डरपोक है। अगर तू वीर है तो तू मेरे से युद्ध कर।
इसके पश्चात हिडिंबसुर ने भीम द्वारा दिए गए चुनौती को स्वीकार किया और भीम से युद्ध किया। भीम महाबलशाली था और हिडिंबसुर उस वन के राक्षसों के राजा। इस दोनों आपस में एक से बढकर एक थे।
इस तरह से यह युद्ध कई घंटो तक चला और अंततः महाबलशाली भीम ने हिडिंबसुर का वध कर दिया। युद्ध के दौरान पांडव और उनकी माता कुंती की नींद खुल चुकी थी और माता कुंती ने पास खड़ी उस सुंदरी से कारण पूछा जिसके जवाब में हिडिंबा सब कुछ बता दिया था।
जब हिडिंबसुर का वध करके पांडव अपनी माता के साथ वहां से जाने लगे तब हिडिंबा ने माता कुंती के चरणों में गिर कर खुद को भीम की पत्नी के तौर पर स्वीकार करने के लिए गिड़गिड़ाने लगी।
माता कुंती ने हिडिंबा का भीम के प्रति प्रेम देखकर अपने बेटे भीम से कहा कि तुम हिडिंबा को अपनी पत्नी स्वीकार कर लो और इससे ब्याह रचा कर एक सुखी जीवन जियो।
इतने में ही भीम के भाई युधिष्ठिर ने भी हिडिंबा और भीम की जोड़ी को अनुकूल बताया और साथ ही साथ एक शर्त भी रखी। युधिष्ठिर ने हिडिंबा से कहा कि भीम सूरज की रौशनी यानी कि दिन के समय में तुम्हारे साथ रहेगा और रात्रि में हम लोगो के साथ।
हिडिंबा ने युधिष्ठिर के शर्त को मान लिया और इस तरह दोनों की शादी करा दी गई। शादी को हुए एक साल हो गए थे तब हिडिंबा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
हिडिंबा द्वारा जन्म दिए गए पुत्र के सिर पर बाल नहीं थे इसलिए उसका नाम घटोत्कच रखा गया। घटोत्कच जन्म से ही एक मायावी बालक था वह अपना शरीर अपनी इच्छा अनुसार छोटा या बड़ा कर सकता था।
यह पूरा कथा महाभारत में वर्णित है। इस कथा का संबंध इसी जगह से है इसका प्रमाण यहां पर पड़े भीम के पैरो के निशान से मिलता है। यहां पर बड़े बड़े पत्थरो पर भीम के विशालकाय पैरो के निशान आज भी साफ साफ देखे जा सकते हैं।
वर्ष 1940 में यहां पहलीबार सीढ़ियों का निर्माण कराया गया। खल्लारी माता मंदिर तक पहुचने के लिए 850 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। इसके बाद समय-समय पर यहां निर्माण कार्य होते रहे। वर्ष 1985 में सर्वप्रथम नवरात्रि मे ज्योति कलश प्रज्जलित करना प्रारंभ हुआ।