डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हें उनके करोड़ों अनुयायी आदरपूर्वक बाबासाहेब कहते हैं, आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रनिर्माताओं में से एक थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत की दिशा तय करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमारे सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। वे संविधान के निर्माता, दलितों और वंचितों के अधिकारों के प्रखर पैरोकार तथा सामाजिक-आर्थिक अन्याय के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करने वाले एक महान क्रांतिकारी थे। महात्मा गांधी ने उन्हें “एक महान देशभक्त” कहा था।
14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में जन्मे आंबेडकर का बचपन भेदभाव, अपमान और वंचना के बीच बीता। ‘अछूत’ माने जाने वाले वर्ग से होने के कारण उन्हें सार्वजनिक सुविधाओं से वंचित रखा जाता था। फिर भी, अध्ययन के प्रति उनकी अटूट निष्ठा ने उनके विचारों को व्यापक बनाया। कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डी.एससी. की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने अपनी विद्वत्ता का प्रमाण दिया।
सामाजिक समानता और अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए उन्होंने कई संगठन और पत्र-पत्रिकाएँ शुरू कीं—मूकनायक (1920), बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1924), बहिष्कृत भारत (1927) और बाद में समता। 1927 में महाड के चावदार तालाब सत्याग्रह के माध्यम से उन्होंने दलितों के नागरिक अधिकारों की ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी। उनका नारा “शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो” आज भी सामाजिक परिवर्तन का मंत्र है। अनुसूचित जातियों के छात्रों के लिए उन्होंने छात्रावास, निःशुल्क पुस्तकें और वस्त्र जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराईं तथा 1945 में पीपल्स एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की।
राजनीति में भी उनका योगदान अनुपम था। 1926 से 1934 तक वे बंबई विधान परिषद के सदस्य रहे और बाद में विपक्ष के नेता के रूप में प्रभावी भूमिका निभाई। 1941 में उन्हें रक्षा सलाहकार समिति में शामिल किया गया और बाद में श्रम मंत्री नियुक्त किया गया। उनके कार्यकाल में मजदूरों के हितों के लिए कई कल्याणकारी कदम, श्रम कानून और *न्यूनतम मजदूरी विधेयक* जैसे ऐतिहासिक प्रावधान लागू किए गए।
1947 में स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में वे विधि मंत्री बने। उन्होंने हिंदू समाज में सुधार के उद्देश्य से हिंदू संहिता विधेयक तैयार किया, जो उस समय एक क्रांतिकारी पहल थी। संविधान सभा के सदस्य के रूप में 29 अगस्त 1947 को उन्हें प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ. आंबेडकर ने गहन अध्ययन और विचार-विमर्श के बाद भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया। वे मानते थे कि संविधान केवल कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का दस्तावेज है। उनका यह कथन आज भी प्रासंगिक है—“अगर नए संविधान के तहत कुछ गड़बड़ होती है, तो उसका कारण संविधान नहीं, बल्कि उसे चलाने वाले लोग होंगे।”
एक महान विचारक और लेखक के रूप में उन्होंने जातियों का विनाश, शूद्र कौन थे, पाकिस्तान पर विचार, भारत में जातियाँ जैसी कई महत्वपूर्ण कृतियाँ लिखीं। सामाजिक असमानता और धार्मिक रूढ़ियों से संघर्ष करते हुए अंततः उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया। 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में उन्होंने अपने लाखों अनुयायियों के साथ धर्मांतरण किया।
6 दिसंबर 1956 को बाबासाहेब का महानिर्वाण हुआ। उनके निधन पर पूरा देश शोकाकुल हो उठा। लोकसभा अध्यक्ष अनंतशयनम अयंगर ने उन्हें “भारत का महान सपूत” कहा। 1990 में भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया और उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1990–91 को सामाजिक न्याय वर्ष घोषित किया।
डॉ. आंबेडकर का जीवन संघर्ष, ज्ञान और मानवाधिकारों की रक्षा का प्रतीक है। वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि आधुनिक भारत के वास्तविक शिल्पकार थे, जिनकी विचारधारा आज भी समानता, न्याय और सम्मान से भरपूर समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती है।
