6 दिसंबर 1992 भारतीय इतिहास का वह दिन है जिसे आज भी लोग गहरी भावनाओं, बहसों और स्मृतियों के साथ याद करते हैं। इस तिथि को शौर्य दिवस के रूप में भी चिन्हित किया जाता है, क्योंकि इसी दिन अयोध्या में स्थित बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया था। यह घटना केवल एक धार्मिक स्थल से जुड़ा मामला नहीं थी, बल्कि उसने पूरे देश के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और न्यायिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया।
अयोध्या की भूमि सदियों से भारतीय जनमानस में असाधारण धार्मिक आस्था का केंद्र रही है। माना जाता है कि यही भगवान राम की जन्मभूमि है, और इसी विश्वास ने इसे लंबे समय से एक विवाद का रूप भी दिया। लगभग पाँच सौ वर्षों से चली आ रही इस बहस ने समय–समय पर कई आंदोलनों और राजनीतिक अभियानों को जन्म दिया।
1992 में यह विवाद अपने चरम पर पहुँचा, जब देशभर से बड़ी संख्या में लोग अयोध्या में एकत्र हुए। माहौल अत्यंत उग्र था, और इसी भीड़ के बीच बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया। ढांचे का यह विध्वंस न सिर्फ अयोध्या, बल्कि पूरे भारत के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ बन गया। इस घटना के बाद देश में व्यापक स्तर पर प्रतिक्रियाएँ सामने आईं—कहीं आक्रोश, कहीं समर्थन, तो कहीं गहरा दुख और चिंता।
इसके परिणामस्वरूप देश में राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहसें शुरू हुईं, समाज में विभाजन की रेखाएँ और गहरी दिखने लगीं, और न्यायालयों में दशकों तक चलने वाली बड़ी कानूनी लड़ाई की शुरुआत हुई। अयोध्या प्रकरण अदालतों, आयोगों और राजनीतिक विमर्श का केंद्र बना रहा। यह मामला भारत के संवैधानिक और सामाजिक ढांचे की परीक्षा लेने वाला एक विशाल अध्याय बन गया।
अंततः लंबे इंतज़ार, अनेक सुनवाइयों और विस्तृत बहसों के बाद इस ऐतिहासिक विवाद का प्रमुख चरण 22 जनवरी 2024 को पूरा हुआ, जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन हुआ। यह दिन भारत और दुनिया भर में बसे करोड़ों लोगों के लिए भावनाओं से भरा रहा। अनेक लोगों ने इसे अपनी आस्था की पूर्ति, प्रतीक्षा के अंत और सांस्कृतिक पहचान के उत्सव के रूप में देखा।
इस प्रकार, 6 दिसंबर 1992 की घटना और उसके बाद हुए सामाजिक–राजनीतिक परिवर्तनों ने भारतीय इतिहास की दिशा को गहराई से प्रभावित किया। यह अध्याय आज भी देश के सार्वजनिक जीवन, राजनीति, सामाजिक विमर्श और सांस्कृतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ भी याद करेंगी और समझने का प्रयास करेंगी
