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"जो प्रयास करेंगे उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है" - अज्ञात

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जल संरक्षण को अपनाना होगा, हर व्यक्ति तक जल पहुंचाना होगा

Date : 22-Mar-2023

 संसार के प्रत्येक प्राणी का जीवन आधार जल ही है। शायद ही ऐसा कोई प्राणी हो जिसे जल की आवश्यकता हो। जल हमें समुद्र, नदियों, तालाबों, झीलों, वर्षा एवं भूजल के माध्यम से प्राप्त होता है। गर्म हवाओं के चलने से समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों का जल वाष्पित होकर ठंडे स्थानों की ओर चलता है जहाँ पर न्यून तापमान के कारण संघनित होकर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरता है। जबकि पहाड़ों पर और भी कम तापमान होने के कारण जल बर्फ के रूप में जम जाता है जोकि गर्मी के दिनों में पिघलकर नदियों में चला जाता है।

जल ही जीवन

पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है जिसमे से 1.6% पानी जमीन के नीचे पाया जाता है। पृथ्वी की सतह पर पाए जाने वाले जल का 97 प्रतिशत सागरों और महासागरों में है, जो कि बहुत ज्यादा खारा होने के कारण पीने के काम में नहीं आता है, केवल 3% जल ही पीने लायक है। बढ़ती जनसँख्या के लिए पानी की उपलब्धता हेतु विश्वभर में प्रयास किये जा रहे हैं। पानी की कमी का संकट कुछ देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों के लिए एक विकट समस्या बन चुकी है. इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए जल संरक्षण और रखरखाव को लेकर दुनियाभर में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों के लोगों को  में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है |

विश्व जल दिवस का इतिहास:

“जल ही जीवन हैजल मनुष्य और जीव-जंतुओं के लिए बेहद जरूरी है। घर का काम करना हो, नहाना हो, पीना हो,खेती करनी हो,आदि सभी कामों के लिए जल बेहद जरूरी है। अतः पानी के बिना जीवन की कल्पना मात्र से ही डर लगने लगता है। अतःविश्व जल दिवसमनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को की थी।विश्व जल दिवसकी अंतरराष्ट्रीय पहलरियो डि जेनेरियोमें वर्ष 1992 में आयोजितपर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (यूएनसीईडी) में की गई थी।जिसके लिए सर्वप्रथम वर्ष 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व भर  मेंजल दिवसके मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरूकता फैलाने का कार्य किया गया था। इस कार्यक्रम की शुरुआत से ही विश्व जल दिवस पर वैश्विक संदेश फैलाने के लिये थीम (विषय) का चुनाव करने के साथ ही विश्व जल दिवस को मनाने की सारी जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण तथा विकास एजेंसी की हैl

इस दिन को मनाने का क्या है उद्देश्य ?

जिस तरह से धरती से जल तेजी से खत्म हो रहा है, ऐसे में जरूरी है कि इसे बचाने के लिए कुछ उपाय किए जाएं, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया जल के संकट से जूझती हुई नजर आएगी। इसलिए लोगों में जागरूकता फैलाने तथा उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराने के महत्व से ये दिन मनाया जाता है ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए इस जल को संजो कर रख सके | अभी देर नहीं हुई है अगर हम आज से ही हमारी जिंदगी से जुड़े इतने महत्वपूर्ण रिसोर्स को बचाने में योगदान दें.|  अब समय गया है जब हमें वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बारिश की एक-एक बूँद अत्यंत कीमती है। इन्हें सहेज कर रखना बहुत ही आवश्यक है। यदि हम लोगों के द्वारा अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोद में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।अतः इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को जल से संबंधित मुद्दों पर अधिक जानकारी प्राप्त करने के साथ ही बदलाव के लिये कार्रवाई हेतु प्रेरित करना है।

भारत में जल संकट

यदि हम भारत की बात करें तो देखेंगे कि एक तरफ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हैं, जहाँ पानी की किल्लत तो है, किंतु फिर भी यहाँ पानी की समस्या विकराल रूप में नहीं है। लेकिन देश के कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहाँ आज भी कितने ही लोग साफ़ पानी के अभाव में या फिर रोग जनित गन्दे पानी से दम तोड़ रहे हैं। राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई-कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएँ पीने का पानी लाती हैं। इनकी ज़िंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

जल के विषय में एक नहीं बल्कि कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आये हैं। विश्व में और विशेष रूप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है, इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं, उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं, जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। पानी के महत्व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी इनसे मिलती है। निम्नलिखित कुछ तथ्य ध्यान देने योग्य हैं-

·         मुंबई में रोज़ वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।

·         दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की ख़राबी के कारण रोज़ 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है। इज़राइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।

·         पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।

·         भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन 4 मील

·         (लगभग 6.4 कि.मी.) सफ़र पैदल ही तय करती है।

·         जल जनित रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।

·         हमारे पृथ्वी ग्रह का 70% से अधिक हिस्सा जल से भरा है, जिस पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। परन्तु, जल की इस विशाल मात्रा में मीठे जल की मात्रा काफ़ी कम है। इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, शेष 2.7% मीठा जल है। इसका 75.2 फीसदी भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा 22.6 फीसदी भूमि जल के रूप में है। इस जल का शेष भाग झीलों, नदियों, कुओं, वायुमंडल में, नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। इनमें से उपयोग में आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा है, जो नदियों, झीलों, तथा भूमि जल के रूप में मौजूद होता है। इस पानी का 60वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं। दुनिया में उपस्थित मीठे जल की एक प्रतिशत मात्रा[1] हमारे सीधे उपयोग के लिए उपलब्ध है।

·         प्रत्येक व्यक्ति को कहीं भी प्रतिदिन 30 से 50 लीटर स्वच्छ तथा सुरक्षित जल की आवश्यकता होती है और इसके बावजूद 884 मिलियन लोगों को सुरक्षित जल उपलब्ध नहीं है।

·         दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 1,500 घन किलोमीटर गंदे जल का निर्माण होता है। भले ही गंदगी तथा गंदे जल कोऊर्जा तथा सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता हैं, पर ऐसा होता नहीं है। विकासशील देशों में 80 फीसदी कचरों को बिना शुद्ध किये हीं निष्कासित कर दिया जाता है, क्योंकि उनमें इसके लिए कोई नियम तथा संसाधन उपलब्ध नहीं है।

·         यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में क़रीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।

·         नहाने के टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 लीटर पानी खर्च होता है।

·         विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।

·         प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

·         नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं, वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक क़ानून में सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय सकता है।

·         पृथ्वी पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियाँ से हमें पानी मिलता है।

·         आलू में और अनन्नास में 80 प्रतिशत और टमाटर में 15 प्रतिशत पानी होता है।

·         पीने के लिए मानव को प्रतिदिन 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

·         एक लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है। एक किलो गेहूँ उगाने के लिए एक हज़ार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए चार हज़ार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।

बारिश के पानी का महत्त्व

विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या तथा औद्योगिक विकास ने भी प्रदूषण में बढ़ोतरी की है, जिससे अब स्वच्छ जल की मांग और भी बढ़ गई है। मानव तथा पर्यावरण दशा, पेय जल तथा कृषि जल की वर्तमान और भविष्य की उपलब्धता खतरे में है। इसके बावजूद जल प्रदूषण एक प्रभावशाली मुद्दा नहीं बन पा रहा है। आज का समय बहुत महत्त्वपूर्ण है, जब प्रत्येक व्यक्ति को वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है कि पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है, जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थीं, किंतु आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। वे सब नदियाँ कहाँ गई, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दी जाये तो हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं। इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।

जागरुकता की आवश्यकता

पानी का महत्व भारत के लिए कितना है, यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी पर आधारित कई मुहावरे और लोकोक्तियाँ हैं। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव ने जो प्रगति की है, उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी ज़रूरी है। पिछले सालों में तमिलनाडु ने वर्षा जल का संरक्षण करके जो मिसाल क़ायम की है, उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरुरत है- जागरुकता की। एक ऐसी जागरुकता की, जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें।

विश्व जल दिवस की थीम

22 मार्च 1993 ‘शहर के लिये जल

22 मार्च 1994 ‘हमारे जल संसाधनों की देखभाल करना हर किसी का कार्य है

22 मार्च 1995 ‘महिला और जल

22 मार्च 1996 ‘प्यासे शहरों के लिये पानी

22 मार्च 1997 ‘विश्व का जल: क्या पर्याप्त है

22 मार्च 1998 ‘भूमि जल- अदृश्य संसाधन

22 मार्च 1999 ‘हर कोई प्रवाह की ओर जी रहा है

22 मार्च 2000 ’21वीं सदी के लिये पानी

22 मार्च 2015 ‘जल और दीर्घकालिक विकास

22 मार्च 2016 ‘जल और नौकरियाँ

22 मार्च 2017 ‘अपशिष्ट जल

22 मार्च 2018 ‘जल के लिए प्रकृति के आधार पर समाधान

22 मार्च 2019 ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ना

22 मार्च 2020 ‘जल और जलवायु परिवर्तन

22 मार्च 2021 ‘पानी का महत्व

22 मार्च 2022 ‘भू जल: अदृश्य को दृश्यमान बनाना

22 मार्च 2023 ‘अक्सेलरेटिंग चेंज

 
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