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भगवान झूलेलाल

Date : 23-Mar-2023

दुनिया में जब जब अत्याचार बढ़ा है, तब तब भगवान ने अपने भक्तों के लिए धरती में जन्म लिया है. युगों से ये बात चली रही है, भारत देश में कई भगवान, साधू संत ने जन्म लिया और दुनिया को सही गलत में फर्क समझाया है. सभी समाज धर्म के भगवान पाप को ख़त्म करने के लिए इस धरती पर आये |

झूलेलाल को वेदों में वर्णित जल-देवता, वरुण का अवतार माना जाता है। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। सिंधी समाज के भगवान झूलेलाल का अवतरण धर्म के लिए हुआ है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भारत के अन्य प्रांतों में आकर बस गए हिंदुओं में झूलेलाल को पूजने का प्रचलन ज़्यादा है।

इतिहास

सिंध में पहले हिन्दू राजा का शासन हुआ करता था, राजा धरार आखिरी हिन्दू राजा थे, उन्हें मोहम्मद बिन कासिम ने हरा दिया था. मुस्लिम राजा का सिंध की गद्दी में बैठने के बाद उसके चारों ओर इस्लाम समाज बढ़ता गया. दसवी सदी के दुसरे भाग में सिंध केथट्टाराज्य में मकराब खान का शासन था, जिसे शाह सदाकत खान ने मार डाला अपने आप को मिरक शाह नाम देकर गद्दी पर बैठ गया. उनका कहना था, अगर दुनिया में इस्लाम बढेगा, तो जन्नत यही बन जाएगी. इन्होंने हिंदुओ पर जुल्म करना शुरू कर दिया, सभी हिंदुओ को बोला गया, कि उन्हें इस्लाम अपनाना होगा, नहीं तो उन्हें मार डाला जायेगा. ऐसे में सिंध के सभी हिन्दू बहुत घबरा गए, तब सभी हिंदुओ को सिन्धु के नदी के पास इक्कठे होने के लिए बुलावा भेजा गया. हज़ार के उपर लोग वहां इकट्टा हुए, सबने मिलकर जल देवता दरियाशाह की उपासना और प्रार्थना की, कि इस विपदा में वे उनकी मदद करें. सभी ने लगातर 40 दिनों तक तप कि

या, तब भगवान वरुण ने खुश होकर उन्हें आकाशवाणी के द्वारा बताया, कि वे नासरपुर में देवकी ताराचंद के यहाँ जन्म लेंगें, वही बालक इनका रक्षक बनेगा.

झुलेलाल जी का जन्म

आकाशवाणी के 2 दिन बाद चैत्र माह की शुक्ल पक्ष में नासरपुर (पाकिस्तान की सिन्धु घाटी) के देवकी ताराचंद के यहाँ एक बेटे ने जन्म लिया, जिसका नाम उदयचंद रखा गया. हिंदी में उदय का मतलब उगना होता है. भविष्य में ये छोटा बच्चा हिन्दू सिन्धी समाज का रक्षक बना, जिसने मिरक शाह जैसे शैतान का अंत किया. अपने नाम को चरितार्थ करते हुए उदयचंद जी ने सिंध के हिंदुओ के जीवन के अँधेरे को खत्म कर उजयाला फैला दिया. पहले उन्हें भगवान का रूप नहीं समझा गया, लेकिन अपने जन्म के बाद ही वे चमत्कार करने लगे. जन्म के बाद जब उनके माता पिता ने उनके मुख के अंदर पूरी सिन्धु नदी को देखा, जिसमें पालो नाम की एक मछली भी तैर रही थी, तब वे हैरान रह गए. इसलिए झुलेलाल जी को पेल वारो भी कहा जाता है. बहुत से सिन्धी हिन्दू उन पर विश्वास करते थे, और उनको भगवान का रूप मानते थे, इसलिए कुछ लोग उन्हें अमरलाल भी कहते थे.

झुलेलाल जी को उदेरो लाल भी कहते है, संस्कृत में इसका मतलब है कि जो पानी के करीब रहता है या पानी में तैरता है. बाल्यावस्था में उदयचंद को झुला बहुत पसंद था, वे उसी पर आराम करते थे, इसी के बाद उनका नाम झुलेलाल पड़ गया. उनकी माता देवकी उन्हें प्यार से झुल्लन बोलती थी. उनकी माता का देहांत छोटी उम्र में ही हो गया था, जिसके बाद उनका पालन पोषण सौतेली माँ ने ही किया.

झुलेलाल जी द्वारा किये गए कार्य

मिरक शाह ने सिंध के सभी हिंदुओ को बुलाकर उनसे पुछा, कि वे इस्लाम अपना रहे या म्रत्यु चाहते है. तब झुलेलाल जी का जन्म हो चूका था, सबको उन पर और वरुण देव की भविष्यवाणी पर पूरा विश्वास था, तब सबने मिरक शाह से सोचने के लिए और समय माँगा. (क्यूंकि उस समय उदयचंद छोटा था, बाल्यावस्था में किसी को मारना नामुमकिन था, इसलिए सभी हिन्दू चाहते थे कि ये समय निकल जाये और उदयचंद बड़ा हो जाये) मिरक शाह को उस बच्चे के बारे में पता था, लेकिन उसे ये लगता था, कि इतना छोटा बच्चा क्या कर सकता है, यही सोचकर उसने हिंदुओ को और समय दे दिया. मिरक शाह ने अपने एक मंत्री को उस बच्चे की जांच पड़ताल के लिए भेजा उसे मारने के आदेश भी दे दिए.

उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढाँढस बँधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करे। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया। बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान माँगा। उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया इसका असर यह हुआ कि मिरक शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया। झूलेलाल की शक्ति से प्रभावित होकर ही मिरक शाह ने अमन का रास्ता अपनाकर बाद में कुरुक्षेत्र में एक ऐसा भव्य मंदिर बनाकर दिया, जो आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक और पवित्र स्थान माना जाता है।

अन्य नाम

पाकिस्तान में झूलेलाल जी को जिंद पीर और लालशाह के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, लालसाँई, अमरलाल, जिंद पीर, लालशाह आदि नाम से जाना जाता है। इन्हें जल के देवता वरुण का अवतार माना जाता है। उपासक भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी चैत्र मास के चन्द्र दर्शन के दिन भगवान झूलेलाल जी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुण देव का स्तुतिगान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।

झूलेलाल महोत्सव

झूलेलाल महोत्सव सिंधी समाज का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। झूलेलाल भगवान वरुणदेव का अवतरण है जो कि भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी 4 दिन तक विधि- विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करता है, वह सभी दुःखों से दूर हो जाता है। सिंधी समाज का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव माना जाता है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला रहा है, पर समाज की विभाजक रेखाएँ समाप्त हो जाती हैं। यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है।

उपसंहार:

सन्त झूलेलाल का अवतरण सचमुच में हिन्दुओं का परित्राण करने के लिए हुआ था उनका जीवन इसी बात का उदाहरण है आज विश्व का समस्त सिन्धी समुदाय प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल दूज {चेतीचंड} को बड़ी धूमधाम से उनके जन्मदिवस का पर्व मनाता है नदी, समुद्र, तालाबों के किनारे ज्योति जलाकर मीठे चावलों का प्रसाद बांटते हैं, जहां मेले भी लगाये जाते हैं इस दिन श्रद्धालुगण दान-पुण्य भी करते हैं

 
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