विश्व क्षय रोग दिवस | The Voice TV

Quote :

सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

Editor's Choice

विश्व क्षय रोग दिवस

Date : 24-Mar-2023

टी.बी. का पूरा नाम है ट्यूबरकुल बेसिलाइ। यह एक छूत का रोग है और इसे प्रारंभिक अवस्था में ही रोका गया तो जानलेवा साबित होता है। यह व्यक्ति को धीरे-धीरे मारता है। टी.बी. रोग को अन्य कई नाम से जाना जाता है, जैसे तपेदिक, क्षय रोग तथा यक्ष्मा।

दुनिया में छह-सात करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं और प्रत्येक वर्ष 25 से 30 लाख लोगों की इससे मौत हो जाती है। देश में हर तीनमिनट में दो मरीज क्षयरोग के कारण दम तोड़ देते हैं। हर दिन चालीस हजार लोगों को इसका संक्रमण हो जाता है।

टी.बी. रोग एक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है। इसे फेफड़ों का रोग माना जाता है, लेकिन यह फेफड़ों से रक्त प्रवाह के साथ शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है, जैसे हड्डियाँ, हड्डियों के जोड़, लिम्फ ग्रंथियाँ, आँत, मूत्र प्रजनन तंत्र के अंग, त्वचा और मस्तिष्क के ऊपर की झिल्ली आदि।

टी.बी. के बैक्टीरिया साँस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं। किसी रोगी के खाँसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूँदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में साँस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं।

रोग से प्रभावित अंगों में छोटी-छोटी गाँठ अर्थात्टयुबरकल्स बन जाते हैं। उपचार होने पर धीरे-धीरे प्रभावित अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और यही मृत्यु का कारण हो सकता है।

टी.बी. का रोग गाय में भी पाया जाता है। दूध में इसके जीवाणु निकलते हैं और बिना उबाले दूध को पीने वाले व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकते हैं।

विशेष* भारत में हर साल 20 लाख लोग टीबी की चपेट में आते हैं * लगभग 5 लाख प्रतिवर्ष मर जाते हैं। * भारत में टीबी के मरीजों की संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है। * यदि एक औसत निकालें तो दुनिया के 30 प्रतिशत टीबी रोगी भारत में पाए जाते हैं।

टी.बी. रोग के कारण

* टी.बी. रोग के यूँ तो कई कारण हैं, प्रमुख कारण निर्धनता, गरीबी के कारण अपर्याप्त पौष्टिकता से कम भोजन, कम जगह में बहुत लोगों का रहना, स्वच्छता का अभाव तथा गाय का कच्चा दूध पीना आदि हैं।

* जिस व्यक्ति को टी.बी. है, उसके संपर्क में रहने से, उसकी वस्तुओं का सेवन करने, प्रयोग करने से।

* टी.बी. के मरीज द्वारा यहा-वहाँ थूक देने से इसके विषाणु उड़कर स्वस्थ व्यक्ति पर आक्रमण कर देते हैं।

* मदिरापान तथा धूम्रपान करने से भी इस रोग की चपेट में आया जा सकता है। साथ ही स्लेट फेक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को भी इसका खतरा रहता है।

रोग का फैलाव

टी.बी. के बैक्टीरिया साँस द्वारा फेफड़ों में पहुँच जाते हैं, फेफड़ों में ये अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं। इनके संक्रमण से फेफड़ों में छोटे-छोटे घाव बन जाते हैं। यह एक्स-रे द्वारा जाना जा सकता है, घाव होने की अवस्था के सिम्टम्स हल्के नजर आते हैं।

इस रोग की खास बात यह है कि ज्यादातर व्यक्तियों में इसके लक्षण उत्पन्न नहीं होते। यदि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो तो इसके लक्षण जल्द नजर आने लगते हैं और वह पूरी तरह रोगग्रस्त हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों के फेफड़ों अथवा लिम्फ ग्रंथियों के अंदर टी.बी. के जीवाणु पाए जाते हैं,

कुछ लोगों जिनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति ज्यादा होती है, में ये जीवाणु कैल्शियम के या फ्राइब्रोसिस के आवरण चढ़ाकर उनके अंदर बंद हो जाते हैं। जीवाणु शरीर में फेफड़े या लिम्फ ग्रंथियों में रहते हैं। फिर ये हानि नहीं पहुँचाते, ऐसे जीवणुओं के विरुद्ध कुछ नहीं किया जा सकता।

ये जीवाणु शरीर में सोई हुई अवस्था में कई वर्षों तक बिना हानि पहुंचाए रह सकते हैं, लेकिन जैसे ही शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है, टी.बी. के लक्षण नजर आने लगते हैं। यह शरीर के किसी भी भाग में फैल सकता है।

टी.बी. के लक्षण ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया और फेफड़ों के कैन्सर के लक्षण से मिलते हैं, इसलिए जब किसी अन्य रोग का पक्का निदान हो पाए तो इसके होने की संभावना होती है।

टी.बी. के लक्षण

* भूख लगना, कम लगना तथा वजन अचानक कम हो जाना।

* बेचैनी एवं सुस्ती छाई रहना, सीने में दर्द का एहसास होना, थकावट रहना रात में पसीना आना।

* हलका बुखार रहना, हरारत रहना।

* खाँसी आती रहना, खाँसी में बलगम आना तथा बलगम में खून आना। कभी-कभी जोर से अचानक खाँसी में खून जाना।

* गर्दन की लिम्फ ग्रंथियों में सूजन जाना तथा वहीं फोड़ा होना।

* गहरी साँस लेने में सीने में दर्द होना, कमर की हड्डी पर सूजन, घुटने में दर्द, घुटने मोड़ने में परेशानी आदि।

* महिलाओं को टेम्प्रेचर के साथ गर्दन जकड़ना, आँ खें ऊपर को चढ़ना या बेहोशी आना ट्यूबरकुलस मेनिन्जाइटिस के लक्षण हैं।

* पेट की टी.बी. में पेट दर्द, अतिसार या दस्त, पेट फूलना आदि होते हैं।

* टी.बी. न्यूमोनिया के लक्षण में तेज बुखार, खाँसी छाती में दर्द होता है।

टी.बी. का उपचार

* टी.बी. के उपचार की शुरुआत सीने का एक्स-रे लेकर तथा थूक या बलगम की लेबोरेटरी जाँच कर की जाती है।

* आजकल टी.बी. के उपचार के लिए अलग-अलग एंटीबायोटिक्स/एंटीबेक्टेरियल्स दवाओं का एक साथ प्रयोग किया जाता है। यह उपचार लगातार बिना नागा 6 से 9 महीने तक चलता है।

* इस रोग की दवा लेने में अनियमितता बरतने पर, इसके बैक्टीरिया में दवाई के प्रति प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न हो जाती है। इससे बैक्टीरियाओं पर फिर दवा का असर नहीं होता। यह स्थिति रोगी के लिए खतरनाक होती है। एंटीबायोटिक्स ज्यादा प्रकार की देने का कारण भी यही है कि जीवाणुओं में प्रतिरोध क्षमता पैदा हो जाए।

* उपचार के दौरान रोगी को पौष्टिक आहार मिले, वह शराब-सिगरेट आदि से दूर रहे।

* बच्चों को टी.बी. से बचने के लिए बी.सी.जी. का टीका जन्म के तुरंत बाद लगाया जाता है। अब ये माना जाने लगा है कि बीसीजी के टीके की इसमें कोई भूमिका नहीं है।

*टीबी की रोकथाम के लिए मरीज के परिवारजनों को भी दवा दी जाती है, ताकि मरीज का इन्फेक्शन बाकी सदस्यों को लगे जैसे पत्नी, बच्चे बुजुर्ग अदि। इसके लिए उन्हें आइसोनेक्स की गोली तीन माह तक दी जाती है।

डॉ. अतुल खराटे, अधीक्षक मनोरमा राजे क्षयरोग चिकित्सालय (इंदौर) के अनुसार 'अब 15 दिन पुरानी खाँसी पर ही क्षय रोग का संक्रमण होने की आशंका व्यक्त की जाती है। डॉट्स पद्धति से मरीज इलाज कराता है तो उसे क्षय रोग से मुक्त होने में 10 महीनों से भी कम समय लगता है। शर्त यही है कि दवा नियमित और रोज लेना है। जो लोग अधबीच में दवा खाना छोड़ देते हैं, उनके क्षयरोग के कीटाणु नष्ट नहीं होते बल्कि दवा के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर लेते हैं।'

जिला क्षय अधिकारी डॉ. विजय छजलानी ने जानकारी दी कि क्षयरोग प्रमुखतः 15-60 वर्ष की आयु में होता है। देश में इस कारण हर साल 12 हजार करोड़ रुपयों की आर्थिक हानि होती है। हर साल लगभग एक लाख से अधिक महिलाओं को क्षय रोग होने के कारण परिवार त्याग देता है। इंदौर जिले में 31 सरकारी प्रयोगशालाओं में खंखार की जाँच होती है। 15 स्वयंसेवी संस्थाएँ इस काम में सहयोग दे रही हैं।

एड्स के बाद सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी

विश्व में हर सेकंड एक व्यक्ति क्षयरोग के शिकंजे में फँस रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की कुल आबादी में से एक तिहाई सुषुप्त क्षयरोग के संक्रमण की चपेट में है। 24 मार्च विश्वभर में क्षयरोग दिवस के रूप में मनाया जाता है। एचआईवी एड्स के बाद सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी क्षयरोग ही है।

विश्व टीबी दिवस के थीम:

प्रतिवर्ष, विश्व टीबी दिवस एक अलग थीम के साथ आयोजित होता है। इनमें से कुछ थीम निम्नलिखित हैं:

 

 

 

2000: टीबी को रोकने के लिए नई साझेदारी बनाना

 

 

 

2001: डॉट्स: टीबी का इलाज सबके लिए

 

2002: टीबी रोको, गरीबी से लड़ो

2003: डॉट्स ने मुझे ठीक किया- यह आपको भी ठीक कर देगा!

2004: हर सांस मायने रखती है- अब टीबी बंद करो!

2005: फ्रंटलाइन टीबी देखभाल प्रदाता: टीबी के खिलाफ लड़ाई में नायक

2006: जीवन के लिए कार्य- टीबी मुक्त दुनिया की ओर

2007: कहीं भी टीबी हर जगह टीबी है

2008-09: मैं टीबी रोक रहा हूं

2010: कार्रवाई में तेजी लाने के लिए नया करें

2011: लड़ाई को उन्मूलन की ओर बदलना

2012: टीबी मुक्त दुनिया का आह्वान

2013: मेरे जीवनकाल में टीबी को रोकें

2014: 30 लाख तक पहुंचें: सभी के लिए टीबी की जांच, इलाज और इलाज

2015: टीबी के खात्मे के लिए कमर कस ली

2016: टीबी को खत्म करने के लिए एकजुट हों

2017: टीबी को खत्म करने के लिए एकजुट हों

2018: वांटेड: लीडर्स फॉर टीबी फ्री वर्ल्ड

2019: यह समय है

2020: "यह समय है"

2021: "घड़ी टिक रही है"

 2022: टीबी को समाप्त करने के लिए निवेश करें

2023 – हाँ! हम टीबी को खत्म कर सकते हैं

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement