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वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी - गणेश शंकर विद्यार्थी

Date : 25-Mar-2023

गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकारसमाज-सेवी और स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम अजर-अमर है। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार थेजिन्होंने अपनी लेखनी की ताकत से भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींद उड़ा दी थी। इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया। अपने छोटे जीवन-काल में उन्होंने उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ में हमेशा आवाज़ बुलंद किया – चाहे वो  नौकरशाहजमींदारपूंजीपति या उच्च जाति का कोई इंसान हो।

गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म

गणेश शंकर विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मौहल्ले में हुआ था। गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पिता जयनारायण गरीब परिवार से थेवे धार्मिक प्रवित्ति के थे और उसूलों पर चलने वाले इंसान थे।

शिक्षा

जयनारायण जी ग्वालियर के मुंगावली में एक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और अंग्रेजी में हुई। वर्ष 1905 में हाईस्कूल और 1907 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में प्रवेश परीक्षा  पास करने के बाद जब उन्होंने इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लियातो उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ।

पत्रकारिता की चाह

पत्रकार बनने की चाह में उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध लेखक पंडित सुन्दर लाल के साथ वे हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी’ के संपादन में उनकी सहायता करने लगे। कानपुर के करेंसीपृथ्वीनाथ हाई स्कूल में अध्यापन के दौरान उन्होंने कर्मयोगीसरस्वतीस्वराज्य (उर्दू) और हितवार्ता जैसे प्रकाशनों में लेख लिखे।
पत्रकारितासामाजिक कार्य और स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ाव के दौरान उन्होंने विद्यार्थी’ उपनाम को अपनाया।

उसी दौर में विद्यार्थी जी के लेखन ने हिंदी पत्रकारिता जगत के अगुआ पंडित महाबीर प्रसाद द्विवेदी का ध्यान अपनी ओर खींचा। द्विवेदी जी ने वर्ष 1911 में उन्हें अपनी साहित्यिक पत्रिका सरस्वती’ में उप-संपादक के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव दियापर विद्यार्थी जी ने समाचारसम-सामयिक और राजनीतिक विषयों में ज्यादा रुचि थीइसलिए उन्होंने हिंदी साप्ताहिक अभ्युदय’ में नौकरी कर ली।
वर्ष 1913 में विद्यार्थी जी कानपुर पहुंच गए और वहां उन्होंने एक क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के तौर पर एक नया पत्रिका प्रताप’ निकालकर उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया। 
प्रताप के माध्यम से वह किसानोंपीड़ितोंमिल-मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों का दुःख उजागर करने लगेइन लोगों की मदद करने का नतीजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। अंग्रेज सरकार ने उनपर कई मुकदमे किएविद्यार्थी जी पर भारी जुर्माना लगाया गया और कई बार उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भेजा।

गांधीजी से मुलाकात

हते हैं की वर्ष 1916 में महात्मा गांधी से पहली मुलाकात के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने आप को पूर्णतया स्वाधीनता आन्दोलन में समर्पित कर दिया। उन्होंने वर्ष 1917 से 1918 में होम रूल’ आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और कानपुर में कपड़ा मिल मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व भी किया। वर्ष 1920 में उन्होंने प्रताप’ का दैनिक संस्करण निकालना शुरू कर दिया। इसी वर्ष विद्यार्थी जी को रायबरेली के किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए वर्ष के कठोर कारावास की सजा हुई। साल 1922 में विद्यार्थी जी जेल से रिहा हुए पर सरकार ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया। दो वर्ष बाद 1924 में उन्हें फिर से रिहा कर दिया गयालेकिन तब तक उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ चुका था। कानपुर अधिवेशन में कांग्रेस के राज्य विधान सभा चुनावों  में भाग लेने के फैसले के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने 1925 में कानपुर से ही उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और वर्ष 1929 में पार्टी की मांग पर त्यागपत्र भी दे दिया।

कांग्रेस समिति के अध्यक्ष

वर्ष 1929 में ही उन्हें उत्तरप्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया और राज्य में सत्याग्रह आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई। इस सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद 1930 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गयाजिसके बाद विद्यार्थी जी की रिहाई गांधी-इरविन पैक्ट के बाद मार्च, 1931 को हुई। विद्यार्थी जी को कानपुर शहर में हिंदू-मुस्लिम की साम्प्रदायिक दंगों की वजह से 25 मार्च, 1931 को अपनी जान गवानी पड़ी थी। लेकिन दंगा ही केवल उनकी मौत का कारण नहीं था। बल्कि जब गणेश शंकर विद्यार्थी जी की कलम चलती थीतो अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिल जाया करती थीं। विद्यार्थी जी और उनका अखबार प्रताप’ आज भी पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए आदर्श माने जाते हैं। भगत सिंहसोहन लाल द्विवेदीबालकृष्ण शर्मा नवीनप्रताप नारायण मिश्रसनेही जैसे तमाम देशभक्तों ने प्रताप प्रेस’ की ज्वाला से राष्ट्र प्रेम को घर-घर तक पहुंचा दिया था।

गणेश शंकर विद्यार्थी जी एक निष्पक्ष पत्रकारहोने के साथ-साथ वे एक महान क्रांतिकारीनिडरसमाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए अमर है। विद्यार्थी जी एक ऐसे पत्रकार थेजिन्होंने अपनी कलम की ताकत से भारत में अंग्रेजी शासन की नींदे उड़ा दी थी।

गणेश शंकर विद्यार्थी की मृत्यु?

भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी की ताकत के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया। उन्होंने अपने छोटे जीवन-काल में उत्पीड़नक्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। उत्पीड़न और अन्याय की खिलाफत में हमेशा आवाज़ बुलंद करना ही उनके जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य थाचाहे वह नौकरशाहजमींदारपूंजीपतिउच्च जातिसंप्रदाय और धर्म की ही क्यों न हो। वह उसी के लिए जीए और उसी के लिए मरे।

 

ऐसे देशभक्त जिन्होंने अपने देश के लिए इतना कुछ कियाउनकी मृत्यु 25 मार्च 1931 को उत्तरप्रदेश के कानपुर में हिन्दू-मुस्लिम के दंगे को रोकने में दौरान हुई।
भारत के ऐसे वीर जो जाते-जाते भी देश के बारे में सोचते गए। ऐसे वीर को सत-सत नमन है। वो हमेशा हमलोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।

 
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