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आधुनिक हिन्दी साहित्य कवियत्री -महादेवी वर्मा

Date : 26-Mar-2023

आधुनिक हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक चर्चित काल छायावाद है. इसकाल की प्रमुख कवियों में जिस कवियत्री का नाम सबसे उपर है वो हैं महादेवी वर्मा. छायावाद अंग्रेजी साहित्यिक काल स्वच्छंदतावाद के समकालीन ही था. भक्ति काल की मीरा की तरह इनका प्रेम भी अलौकिक था और उसमें रहस्य की प्रचूर मात्रा थी. इनके साहित्यिक काव्यगत विशेषताओं के कारण इन्हें आधुनिक मीरा भी कहा जाता है. 1982 में इन्हें ज्ञानपीठ भी मिला.

जीवन परिचय

महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्नहुई। उनके परिवार में दो सौ सालों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी, यदि होती तो उसे मार दिया जाता था। दुर्गा पूजा के कारण आपका जन्म हुआ। आपके दादा फ़ारसी और उर्दू तथा पिताजी अंग्रेज़ी जानते थे। माताजी जबलपुर से हिन्दी सीख कर आई थी, महादेवी वर्मा ने पंचतंत्र और संस्कृत का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा जी को काव्य प्रतियोगिता में 'चांदी का कटोरा' मिला था। जिसे इन्होंने गाँधीजी को दे दिया था। महादेवी वर्मा कवि सम्मेलन में भी जाने लगी थी, वो सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मेलन में अपनी कवितायें सुनाती और उनको हमेशा प्रथम पुरस्कार मिला करता था। महादेवी वर्मा मराठी मिश्रित हिन्दी बोलती थी।

जन्म

महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे।[2] महादेवी वर्मा को 'आधुनिक काल की मीराबाई' कहा जाता है। महादेवी जी छायावाद रहस्यवाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हिन्दुस्तानी स्त्री की उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विलक्षणता से अभिभूत रचनाकारों ने उन्हें 'साहित्य साम्राज्ञी', 'हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि', 'शारदा की प्रतिमा' आदि विशेषणों से अभिहित करके उनकी असाधारणता को लक्षित किया। महादेवी जी ने एक निश्चित दायित्व के साथ भाषा, साहित्य, समाज, शिक्षा और संस्कृति को संस्कारित किया। कविता में रहस्यवाद, छायावाद की भूमि ग्रहण करने के बावज़ूद सामयिक समस्याओं के निवारण में महादेवी वर्मा ने सक्रिय भागीदारी निभाई।

शिक्षा

महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। महादेवी वर्मा ने बी.. जबलपुर से किया। महादेवी वर्मा अपने घर में सबसे बड़ी थी उनके दो भाई और एक बहन थी। 1919 में इलाहाबाद में 'क्रॉस्थवेट कॉलेज' से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए महादेवी वर्मा ने 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.. की उपाधि प्राप्त की। तब तक उनके दो काव्य संकलन 'नीहार' और 'रश्मि' प्रकाशित होकर चर्चा में चुके थे।[3] महादेवी जी में काव्य प्रतिभा सात वर्ष की उम्र में ही मुखर हो उठी थी। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी कविताएँ देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगीं थीं।

विवाह

उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी वर्मा का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। महादेवी वर्मा की शादी 1914 में 'डॉ. स्वरूप नरेन वर्मा' के साथ इंदौर में 9 साल की उम्र में हुई, वो अपने माँ पिताजी के साथ रहती थीं क्योंकि उनके पति लखनऊ में पढ़ रहे थे।

महादेवी वर्मा

हिन्दी साहित्य के छायावाद काल के प्रमुख रचनाकारों में महादेवी अपना अलग स्थान रखती हैं. निराला, जयशंकर प्रसाद और पंत उस समय समय चरम बिन्दु पर पहुंच गये थे, महादेवी उन सबसे अलग अपनी कविताओं में नारी चित्रण के नये स्वरों को भर रही थी. विलक्षण प्रतिभा के कायल सभी आलोचकों ने इनके काव्य शैली को बहुत सराहा है. खड़ी बोली की हिन्दी कविता में उन्होंने कई मापदंड गढ़े जो कि अभी तक हिन्दी के उपबोलियों में संभव था. उन्होंने संस्कृत और बांग्ला के अलग अलग शब्दों  को अपने काव्य में प्रयोग किया, जिसमें संगीत का स्वर स्पष्ट तौर पर लक्षित था.  इन्हें संगीत की बेहतर पहचान थी जिसके कारण इसके गीतों के नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की शैली बहुत ही दुर्लभ थी.

महादेवी न केवल प्रतिभाशाली कवयित्री थी बल्कि एक अच्छी गद्य लेखिका और संगीत में भी सिद्धहस्त थी. वे चित्रकारी के लिए कूची भी थाम लेती थी, दीपशिखा काव्य संग्रह में उन्होंने अपनी कविताओं के साथ साथ उन पर चित्र भी बनाये. एक तरह से काव्य संग्रह उनका स्मृति ग्रंथ था. आज भी हिन्दी साहित्य के महिला लेखिकाओं में वे अग्रणी और अतुलनीय है. पंड इलाचन्द्र जोशी के साथ इन्होंने साहित्य को बढ़ावा देने के लिए ईलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की. इस संस्था की पत्रिका की संपादक भी वही रही तथा उन्हीं के नेतृत्व में एक विशाल कवि सम्मेलन भी आयोजन किया गया. महादेवी पर बाद में गाँधी का प्रभाव भी परिलक्षित रहा. महादेवी वर्मा के जीवन और काव्य दोनों का मुख्य केन्द्र प्रेम, विरह और वेदना रहा है.

महिला विद्यापीठ की स्थापना

महादेवी वर्मा ने अपने प्रयत्नों से इलाहाबाद में 'प्रयाग महिला विद्यापीठ' की स्थापना की। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। महादेवी वर्मा पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन खड़ी बोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ी बोली में रोला और हरिगीतिका छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका 'चाँद' का कार्यभार सँभाला। प्रयाग में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद हिन्दी के प्रति गहरा अनुराग रखने के कारण महादेवी वर्मा दिनों-दिन साहित्यिक क्रियाकलापों से जुड़ती चली गईं। उन्होंने केवल 'चाँद' का सम्पादन किया वरन् हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयाग में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की। उन्होंने 'साहित्यकार' मासिक का संपादन किया और 'रंगवाणी' नाट्य संस्था की भी स्थापना की।

कृतियाँ

 

काव्य

·         नीहार (1930)

·         रश्मि (1932)

·         नीरजा (1934)

·         सांध्यगीत (1936)

·         दीपशिखा (1942)

·         यामा

·         सप्तपर्णा

गद्य

·         अतीत के चलचित्र

·         स्मृति की रेखाएँ

·         पथ के साथी

·         मेरा परिवार

विविध संकलन

·         स्मारिका

·         स्मृति चित्र

·         संभाषण

·         संचयन

·         दृष्टिबोध

पुनर्मुद्रित संकलन

·         यामा (1940)

·         दीपगीत (1983)

·         नीलाम्बरा (1983)

·         आत्मिका (1983)

निबंध

·         श्रृंखला की कड़ियाँ

·         विवेचनात्मक गद्य

·         साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध

·         ललित निबंध

·         क्षणदा

काव्य संग्रह

महादेवी वर्मा के 1934 में 'नीरजा', 1936 में 'सांध्यगीत' नामक संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में 'यामा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। महादेवी वर्मा ने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए। इसके अतिरिक्त उनके 18 काव्य और गद्य कृतियाँ हैं जिनमें 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'श्रृंखला की कड़ियाँ' और 'अतीत के चलचित्र' प्रमुख हैं।

महादेवी वर्मा  के सम्मान

महादेवी वर्मा की लेखनी को चारों ओर से प्रशंसा मिला. वे छायावादी आंदोलन के मुख्य स्तंभ थी.

·         यामा के लिए इन्हें 1940 में ज्ञानपीठ मिला.

·         1956 में इन्हें साहित्यिक योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

·         ये पहली महिला साहित्यकार थी जिन्हें 1979 में साहित्य एकाडेमी मिला.

महादेवी वर्मा के अनमोल वचन 

·         यदि अपने आप स्वीकार हो, तो घर की संचालिका का कर्तव्य कम जरुरी नहीं है.

·         विज्ञान में कुछ करने की कला का कुछ भाग अवश्य होता है.

·         एक बेगुनाह को बचाने वाले का झूठ उस सच से श्रेष्ठ होता है, जो उसके अहिंसा का कारण बने.

·         विज्ञान एक व्यवहारिक प्रयोग है.

·         आज हिन्दू औरतें जिन्दा लाश की तरह हैं.

·         हमारी जिन्दगी सबकी परेशानियाँ झेलने के लिए है?

·         अपने विषय में कुछ कहना बहुत मुश्किल है क्योकि खुद की गलतियाँ देखना आपको अच्छा नहीं लगता, लेकिन इसे अनदेखा करना दूसरों को अच्छा नहीं लगता.

·         मैं किसी रीती रिवाजों में विश्वास नहीं करती. मैं मोक्ष को नहीं मिट्टी को ज्यादा पसंद करती हूँ.

·         वे खिलते पुष्प जिन्हें मुरझाना नहीं आता, और वे दीप जिन्हें बुझना नहीं आता, कितने अद्भुत प्रतीत होते हैं.

·         जीवन में कला का सच, सुन्दरता के माध्यम से व्यक्त किये गये सच से अखंड होता है.

निधन

महादेवी वर्मा का निधन 11 सितम्बर, 1987, को प्रयाग में हुआ था। महादेवी वर्मा ने निरीह व्यक्तियों की सेवा करने का व्रत ले रखा था। वे बहुधा निकटवर्ती ग्रामीण अंचलों में जाकर ग्रामीण भाई-बहनों की सेवा सुश्रुषा तथा दवा निःशुल्क देने में निरत रहती थी। वास्तव में वे निज नाम के अनुरूप ममतामयी, महीयसी महादेवी थी। भारतीय संस्कृति तथा भारतीय जीवन दर्शन को आत्मसात किया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में कभी समझौता नहीं किया। महादेवी वर्मा ने एक निर्भीक, स्वाभिमाननी भारतीय नारी का जीवन जिया। राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्बन्ध में उनका कथन है ‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।

 
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