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“मनुष्य अपने विश्वासों से बनता है,” जैसा वह विश्वास करता है वैसा ही वह है' - भागवद गीता

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मंदिर श्रृंखला -मां पाताल भैरवी

Date : 27-Mar-2023

मां पाताल  भैरवी माता दुर्गा का ही एक रूप है। कहा जाता है कि मां दुर्गा ने रक्तबीज नामक राक्षस का संहार करने को रौद्र रूप धारण किया।

पाताल  भैरवी का मंदिर

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव  में स्थित है पाताल  भैरवी का मंदिर जिसकी दुरी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 70 किलोमीटर है, कहते है की इस मंदिर का निर्माण 4 अप्रैल  1998 को किया गया था। तब से लेकर आज तक यह मंदिर माता के भक्तों के लिए पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक विशेष श्रद्धा का केंद्र है।

रक्तबीज राक्षस को मिली थी चमत्कारी शक्ति :

रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसके रक्त का एक बूंद भी अगर जमीन मे गिरा तो वह एक बूंद रक्त एक नए नए राक्षस का रूप ले लेता था।

इस विपदा के निवारण के लिए माता दुर्गा ने मां काली का रूप धारण किया रक्तबीज का वध करके उसके पूरे रक्त को पी लिया। इस मंदिर में गर्भगृह में स्थित माता को माता काली का ही एक रूप माना जाता है।

यह मंदिर कई मायनों में विशेष है श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर  आस्था का केंद्र है। इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित माता की मूर्ति काफी विशेष है। इस मूर्ति को इस प्रकार बनाया गया है कि कोई व्यक्ति इसे पहली बार देखते हैं तो वह आश्चर्यचकित रह जाता है। माता काली का यह रौद्र रूप काफी भयानक है।

मंदिर के गर्भगृह मंदिर से लगभग 15 से 18 फीट की गहराई में स्थित है। गर्भगृह में स्थित मूर्ति लगभग 15 फीट ऊंची बताई जाती है और यह 15 फीट ऊंची मूर्ति पत्थर की बनाई गई है जो कि लगभग 11 टन भारी है।

माता की मूर्ति के जमीन के 18 फीट की नीचे होने का मुख्य कारण है - ऐसा पुराणों और ग्रंथों में पता चलता है कि माता काली की यह रौद्र रूप जमीन के भीतर निवास करती थी इसीलिए इसे पताल भैरवी कहा जाता था और पताल भैरवी के ही निवास स्थल को आधारभूत मानकर इस मंदिर के गर्भगृह को भी जमीन के नीचे पाताल लोक में रखने की कोशिश की गई है।

माता की यह स्थिति मूर्ति विशेष होने के कारण यह मंदिर पिछले कई वर्षों से श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। मां पाताल भैरवी राजनांदगांव का यह मंदिर 3 स्तरों में बना हुआ है निचले स्तर पर माता पाताल भैरवी को देखा जा सकता है। दूसरे स्तर पर त्रिपुर सुंदरी का तीर्थ है इसे नवदुर्गा भी कहा जाता है इसके पश्चात तीसरे और अंतिम स्तर शीर्ष पर भगवान शिव की विशाल शिवलिंग स्थापित है।

शिवलिंग के संबंध में कहा जाता है कि यह शिवलिंग लगभग 108 फीट ऊंचा है। शिवलिंग के सामने ही भगवान शिव के वाहन नंदी की मूर्ति भी स्थापित है।

मंदिर के पुजारियों का यह भी मानना है कि माता काली के साथ इतना बड़ा शिवलिंग देश के और किसी भी मंदिर में नहीं है। लेकिन इस कथन का कोई लिखित प्रमाण नहीं है हालांकि इस मंदिर के पुजारी इस मंदिर के शिवलिंग को देश का सबसे बड़ा माता काली की मूर्ति के साथ शिवलिंग बताते हैं। लेकिन सरकार इसका समर्थन नहीं करती।

जलाई जाती है स्योती कलश :

वर्ष के दोनों नवरात्रों में इस मंदिर में ज्योती कलश स्थापना की जाती है। यहां किए गए ज्योती कलश स्थापना का विशेष महत्व होता हैै। कई लोग यहां पर माता के दरबार में ज्योत जलाकर मनोकामना मांगते हैं तो कई लोग अपनी मनोकामना के पूरा हो जाने के पश्चात यहां पर ज्योत जलाते हैं।

शरद पूर्णिमा में मिलती है औषधि :

इस मंदिर में नवरात्रों के अलावा शरद पूर्णिमा के दिन एक विशेष प्रकार का जड़ी बूटी को खीर में डाला जाता है और एक औषधि युक्त खीर बनाया जाता है। इस खीर में विशेष प्रकार के जड़ी-बूटी होते हैं जो दमा अस्थमा और श्वास से जुड़ी कई बीमारियों को ठीक करने में मददगार होती है।इस खीर प्रसाद को पाने के लिए यहां पर शरद पूर्णिमा की रात को हजारों की संख्या में भक्त यहा आते हैं।

माँ बमलेश्वरी मंदिर से 40 किलोमीटर दूर है पताल भैरवी मंदिर :

यह मंदिर बमलेश्वरी माता के मंदिर से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मां बमलेश्वरी के दर्शन के लिए आने वाले लगभग श्रद्धालु इस पताल भैरवी राजनांदगांव में माथा टेकने अवश्य आते हैं। इसी के चलते नवरात्रों के अलावा यहां पर साल के सभी महीनों में काफी भीड़ देखी जाती हैं।

औषधि खीर का वितरण

मां पाताल भैरवी मंदिर में पूरे वर्ष दर्शन करने के लिए भक्त आते हैं। नवरात्र में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। शरद पूर्णिमा के दिन औषधि युक्त खीर बनाई जाती है। जड़ी-बूटी के मिश्रण से बनी खीर से दमा, अस्थमा और श्वास से जुड़ी बीमारियों में लाभ होता है। खीर का सेवन करने रात आठ बजे से भीड़ जुट जाती है। आधी रात बाद खीर का प्रसाद वितरित किया जाता है।

 

 

 

 
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