एक बार फिर जनसंख्या का जिन्न बोतल से बाहर आ गया | पिछले कुछ वर्षों से मुख्य मुद्दों से भटकाने के लिए बीच-बीच में विवादित मुद्दों को उछाला जाता है ताकि लोग वर्तमान को भूल जाये, मुद्दे ऐसे उठाये जाते है जिनका लेना देना वर्तमान से ना होकर या तो भूतकाल से होता या भविष्य की असुरक्षा से होता | जनसंख्या के संबंध में उठाये गये सवाल कल्पनिक है जिसका आंकड़ों एवं वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं हैं|
जिस प्रकार के सवाल आबादी को लेकर आज उठाये जा रहे है ठीक इसी प्रकार के प्रश्न जब भारत आज़ाद हुआ और उसके बाद कई वर्षों तक पश्चिम के देशों द्वारा उठाये जाते थे | इन सब प्रश्नो का जवाब तो वर्तमान है हमारा 130 करोड़ होना है और परस्पर विकास के पथ पर कायम रहना | सबसे ज्यादा आबादी वाला चीन अब नई महाशक्ति बन गया है, भारत विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है | यही सबसे बड़ा जवाब है उन लोगों के लिए जो बढ़ती जनसंख्या से तथाकथित रूप से चिंतित रहते है |
आबादी को नियंत्रित करना कितना खतरनाक हो सकता है उसका उदाहरण चीन है | बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए चीन के द्वारा 1980 में वन चाइल्ड पॉलिसी लायी गयी, जिसका पालन सख्ती के साथ करवाया गया | दूसरा बच्चा होने पर भारी जुर्माना लगाया जाता था, कई बार दूसरा बच्चा गर्भ मे होने का पता चलने पर जबरदस्ती गर्भपात कराया जाता, कभी- कभी दम्पति लड़के की चाहत में खुद गर्भपात करा लेते थे | परिणाम स्वरूप अधिकतर जनसंख्या बूढ़ी हो रही हैं और आबादी में नौजवानों का प्रतिशत कम हो रहा हैं | इससे अर्थव्यवस्था को दोहरी मार पड़ रही हैं एक तरफ बूढ़ों पर ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है और दूसरी तरफ युवाओं के कम होने से श्रम शक्ति का अभाव हो रहा हैं | चीन महाशक्ति तो बन जायेगा, लेकिन युवा शक्ति के अभाव में विश्व पटल पर उसकी शक्ति ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह पायेगी | अब चीन अपनी आबादी बढ़ाने के जीतने जतन कर ले उसने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारकर अपने को अपंग कर लिया हैं |
आज से लगभग 100-120 वर्ष पहले पश्चिमी देशों में जब चर्च और धर्म का प्रभाव कम होता गया, तो धर्म का स्थान आधुनिक पश्चिमी सभ्यता ने ले लिया जिसका मुख्य उदेश्य भौतिक सुख की प्राप्ति था | धीरे- धीरे विवाह के बंधनो को बोझ समझकर महिला- पुरुष ने बिना विवाह के रहना उचित समझा | गर्भ निरोध के नित नये साधनों ने बच्चों की चिंता से भी मुक्ति दे दी थी | एक व्यक्ति के तौर पर उसे बंधनों से मुक्त हो जाना अच्छा लग रहा था लेकिन समाज और देश के लिए यह नुकसानदायक सिद्ध हो रहा था | पश्चिमी देशों को लगा की अगर ऐसे ही हमारी जनसंख्या कम होती रही तो एशिया महादीप के देशों की बढ़ती जनसंख्या हमारे लिये खतरा साबित होगी, जिस कारण पश्चिम ने पूर्व को काबू करने के लिए ऐसे लोगों और शोधों को हवा दी जो परिवार नियोजन और कम आबादी को बढ़ावा दे |
जितनी आबादी होगी उतनी वस्तुओं और सेवाओं की मांग होगी, जिसकी पूर्ति के लिये उतने ही लोगों की आवश्यकता होगी | अगर भारत और चीन की आबादी इतनी न होती तो न जाने कितनी पश्चिमी कंपनियां बंद हो जाती क्योंकि पश्चिमी देशों में सीमित आबादी है जिसकी वजह से मांग भी सीमित हैं | चीन विश्व का बड़ा उत्पादक एवं भारत उपभोक्ता देश है |
पूरी पृथ्वी में संसाधनों की कोई कमी नहींं है, अगर प्रथ्वी की आबादी दोगुनी भी हो जाये तब भी कोई कमी नही होगी| तेल और गैस की खोज हुए अभी 100 ही वर्ष हुए हैं, समुद्र के अंदर की जानकारी अभी 10 प्रतिशत हैं उसके अंदर अभी कौन कौन से संसाधन छुपे है उसकी खोज बाकी हैं| मामला संसाधनों की कमी का नही बल्कि उस पर एकाधिकार करने का है, चाहें अफ्रीका हो, दक्षिण अमेरिका हो, एशिया हो हर जगह संसाधनों पर कब्ज़ा पश्चिमी कंपनियों का है और इन का उपयोग दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिये किया जाता हैं |
अब भारत की बात करते है कि यहाँ बढ़ती जनसंख्या को लेकर इतना हंगामा क्यों होता हैं | भारत में गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी आदि के लिये बढ़ती आबादी को दोष दिया जाता है जबकि मूल कारण भ्रष्टाचार एवं लोगों को उनका हक नही देना है | अगर गरीबी मिट जाये, लोग शिक्षित हो जाये और लोगों को उनका हक मिल जाये तो लोग सवाल पूछने लगेंगे जिससे वोट की राजनीति खत्म हो जायेगी | सच को बढ़ती आबादी के नाम पर छुपाया जाता है| एक धर्म के लोगों की आबादी बढ़ रही है बताकर धुर्वीकरण की राजनीति की जाती है जबकि आंकड़े इसके विपरीत बताते हैं कि दोनों धर्मों में प्रजनन दर का फ़ासला बहुत कम हैं | भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, काला धन, अशिक्षा,खराब स्वास्थ्य सिस्टम के सवालों को बढ़ती आबादी के कल्पनिक सवाल ने लील लिया हैं|
लेखक - आसिफ खान