"मंजिलें कितनी भी ऊंची क्यों न हों लेकिन रास्ते हमेशा उसके पैरों के नीचे ही होते हैं"
बादलों की बिजली आज भी मनुष्य के हाथों अछूती बिल्कुल अजेय ही बनी हुई है परंतु चतुर मनुष्य ने प्रकृति की इस बड़ी शक्ति के नमूने को देखकर अपने वश में रहनेवाले रूप में बिजली की नियंत्रित शक्ति पैदा कर लेने और उससे अपने भारी भरकम काम निकाल लेने के अनेक उपाय निकाल ही लिए हैंl
बिजली की अपार शक्ति को मनुष्य के हाथ में आया देख कहना पड़ता है कि मनुष्य की बुद्धि धन्य है जो ऐसे चमत्कार कर दिखलाती है l
उपरोक्त पंक्तियां इस सदी के महान वैज्ञानिक माइकल फैरा डे पर तर्कसंगत बैठती हैं जिन्होनें विद्युत इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपनी खोजों द्वारा अभूतपूर्व क्रांति की, यदि फैरा डे की खोजें न होती तो पूरी दुनिया में अंधेरा होता , फैरा डे इस सदी के अभूतपूर्व वैज्ञानिकों में हैं जिनके पास न कोई कॉलेज की डिग्री थी न कोई आर्थिक आधार , लेकिन फैराडे की खोजों ने ऐसा तहलका मचाया कि इन खोजों पर पूरी दुनिया के इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, फैराडे की मुख्य खोजों में विद्युत चुम्बक (Electromagnet) तथा विद्युत रसायन (Electro chemistry ) हैं,जिनके आधार पर उन्होंने जनरेटर, ट्रांसफार्मर तथा मोटर का अविष्कार किया जिनके बिना आज विद्युत की कल्पना भी नहीं की जा सकती , बीसवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन अपनी कमरे की दीवारों पर महान वैज्ञानिक शपेन हावर , जेम्स क्लार्क मैक्सवेल के साथ फराडे की तस्वीर भी लगाते थे l
जेम्स मैक्सवेल के शब्दों में महान माइकल फैराडे की जीवनी भी बेहद दिलचस्प रही है ,फैराडे का जन्म 22 सितंबर 1791 को लंदन में हुआ था, फैरा डे का बचपन लंदन की गलियों में बेहद गरीबी में बीता था,फैराडे अपने दो भाइयों तथा बहनों में मझले थे , उनके पिता जेम्स फेरा डे लुहार का कार्य करते थे ,उनकी माता बेहद शांत स्वभाव की थीं, घर का खर्च बहुत मुश्किल से चलता था ,उनके पिता इतना कमा नहीं पाते थे कि वे अपने बच्चों को पर्याप्त शिक्षा दिलवा सकें इसलिए फराडे को बहुत छोटी उम्र में ही एक बुक बाइंडर के यहां नौकरी करनी पड़ी, बालक फैरा डे को ले देकर केवल प्राइमरी तक ही शिक्षा मिली थी , लेकिन उसे पुस्तकें पढ़ने का बेहद चाव था, विशेषकर विज्ञान की पुस्तकों को पढ़ने में बालक फैरा डे को बेहद आनंद मिलता था , उसके पास बाइंडिंग के लिए जो पुस्तकें आती थीं उन सबको वह पढ़ता था, पढ़ते पढ़ते उसे विज्ञान से गहरा लगाव होता गया, तथा उस समय लंदन में एक रॉयल फेलो सोसाइटी थी जो आम जनता के लिए विज्ञान के कार्यक्रम आयोजित करती थी |
जिसमें उस समय के ख्याति नाम वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया जाता था , उस समय चेयरमैन प्रख्यात वैज्ञानिक सर हम्फ्री डे वी के भाषणों को उसने सुना, डेवी ने खदानों में जहरीली गैसों का पता लगाने वाले निरापद लैंप का आविष्कार किया था , बालक फैरादे ने डेवी के भाषणों को सुना तथा सुनने के बाद उनके भाषणों का एक सार संग्रह बनाकर उसके तीन सौ पेजों का नोट्स बनाकर उसने उनके पास भेजा तथा उनसे अपने पास कोई भी काम दिलाने की प्रार्थना की, डेवी बालक फेरा डे की लगन से बेहद प्रभावित हुए तथा उन्होंने उसे अपनी प्रयोग शाला में नौकरी दे दी, माइकल उनकी मदद कर देता था, तथा लैब उपकरणों को धोने पोंछने का कार्य करता था,धीरे धीरे वह डेवी के साथ कार्यक्रमों में जाने लगा, तथा उसे अनेक बड़े वैज्ञानिकों से मिलने का अवसर मिला, वे क्या कर रहे हैं इसे भी वह समझने की कोशिश करता था, डेवी इलेक्ट्रो केमिस्ट्री में जाने माने वैज्ञानिक थे, स्थिति बाद में यहां आ पहुंची की कुछ वर्षों के बाद विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electro Magnetic Induction)के सिद्धांतों की खोज माइकल फैरा डे ने कर डाली तथा रॉयल फेलो सोसाइटी का अगला चेयर मैन यही फेरा डे बना, किसी ने सपने में भी यहनहीं सोचा था की एक अनपढ़, भयंकर गरीबी में पला हुआ यह बालक यहां तक पहुंच सकता हैl
फेरा डे की इस खोज के आधार पर इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन का रास्ता खुला तथा इसी आधार पर फैरा डे ने ट्रांसफॉर्मर का आविष्कार किया जिसकी बदौलत घर घर में, कारखानों में वोल्टेज को अप डाउन करके लाइट पहुंचाई जाती है, फै रा डे ने अपने जीवन में दर्जनों अविष्कार किए जिनमें फेरा डे कप, फेरा डे वेव, फैरा डे केज, इलेक्ट्रोलिसिस आदि शामिल हैं,फेरा डे की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिससे यह शिक्षा मिलती है की यदि लगन हो तो व्यक्ति सारी सीमाएं पार कर सकता है, इस महान वैज्ञानिक पर एक शायरी याद आती है की दीवाना दिल जिसे ढूंढता है वह बड़ी मुश्किल से मिलता है , ठोकरों को खाकर ही आदमी मंजिल पर पहुंचता है, बाद में माइकल फैराडे को सर की उपाधि के लिए प्रस्तावित किया गया लेकिन उन्होंने इस उपाधि को लेने से इंकार कर दिया, आपके सम्मान में भौतिकी विज्ञान की दुनिया में कैपेसिटेंस की इकाई का नाम भी 'फैरेड ' रखा गया, बाद में ब्रिटेन की सरकार ने उन्हें अपार धन , कई पुरस्कारों से नवाजा , तथा इस तरह से इस महान वैज्ञानिक का निधन 22 अगस्त सन 1867 में लंदन में हुआ ,माइकल फैराडे ने मानव ता की को सेवा की है, दुनिया को जो विद्युत।की जो राह दिखाई, वह हमेशा एक मिसाल बनी रहेगी l
लेखक - सतेंद्र मिश्रा