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RAPE STATISTICS IN INDIA IS REALLY PAINFUL:कैसे कम होंगी रेप की घटनाएँ? जानिए…

Date : 31-Oct-2022

जब हमारे देश से बेरोज़गारी, नशाखोरी, और अनुशासनहीनता ख़तम होगी; लोग अपने सांस्कृतिक तथा पारिवारिक मूल्यों को पहचानेंगें. जब सब मिलकर अपनी अपनी जिम्मेदारियां निभायेंगें; तब ख़तम होगी बलात्कार (Rape) की घटनाएँ और आएगी सही मायने में आज़ादी

सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, विपक्ष के पास मुद्दा एक सा होता है–

§  अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार 

§  बढ़ती महँगाई 

§  गरीबी 

§  चोरी, नशाखोरी 

§  बलात्कार

§  बेरोज़गारी इत्यादि…

हर प्रत्याशी चुनाव से पहले इसके निर्मूलन का वादा करता है. परन्तु जनता की ये समस्याएं पीछा ही नहीं छोड़ती. शायद हम 50 साल पहले जिस अल्पसंख्यक के उत्थान की बात करते थे, वो अब केवल चुनावी मुद्दों में जिंदा है.

ग्लोबलाईजेशन के दौर में और इन्टरनेट की दुनिया में सब कुछ दिखता है. सही मायने में गरीब दबंगों द्वारा सताया जाता है. कई जगह दबंग व्यक्ति वो भी होता है जिसे सरकार अल्पसंख्यक मानती है.

देश की बढ़ती जनसंख्या मंहगाई, गरीबी और बेरोज़गारी को घटने नहीं देती. इसमें जितनी ज़िम्मेदार सरकार है; उससे कहीं ज्यादा हमारी गलती है.

क्या हमने अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाई?

हम केवल वोट देना और अपना नेता चुनना देश-भक्ति समझते हैं. मन लगाकर कोई छोटा-मोटा काम नहीं कर सकते. लखपति बनने के चक्कर में, ग्रेजुएशन के उपरांत मोटी रकम वाली नौकरी ढूंढते हैं.

जब हमारा वांछित जॉब नहीं मिलता, तब जुआ खेलना शुरू कर देते हैं; शराब पीते हैं; ड्रग एडिक्ट हो जाते हैं, तथा तमाम तरह की असामाजिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं.

ऐसा ही एक असामाजिक कुकृत्य है बलात्कार (Rape); जिससे हर सरकारें जूझ रही हैं. विपक्ष का गरमा-गरम मुद्दा है और आम जनता की सबसे बड़ी समस्या.

बलात्कार (RAPE)

कुछ लोग कहते हैं ऐसी घटनाओं के लिए लड़कियां खुद ज़िम्मेदार हैं. कुछ लोग पुरुषों को ज़िम्मेदार मानते हैं. कुछ लोग लड़कियों के पहनावे को आपत्तिजनक कहते हैं. विपक्ष के लिए प्रशाशन ज़िम्मेदार है और जनता दबंगों से परेशान बताई जाती है. परन्तु वास्तव में ऐसी घटनाओं के लिए हर एक व्यक्ति और उसकी उपभोक्तावादी विचारधारा ज़िम्मेदार है.

पुरुषों और स्त्रियों में अनुसाशन की कमीं इसका सबसे बड़ा कारण है. किसी एक को दोषी मानने से इस समस्या का समाधान असंभव है. सबको अपनी – अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने की जरुरत है.

पुरुषों को अपना अवमूल्यन करना होगा

हम लड़कियों के पहनावे, पश्चिमी संस्कृत और प्रशासन की लापरवाही के पीछे अपनी मनमानी नहीं कर सकते. जिस बेटे का बाप जुआरी, शराबी और इन्टरनेट पर गन्दी तस्वीरें देखने वाला हो, उसके बच्चों से विवेकानंद बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती. संस्कारविहीन नरपशु की संताने नरपशु ही होंगी. हर राक्षस के घर प्रह्लाद और हर ऋषि के घर रावण नहीं पैदा होते.

विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है परन्तु जो आदतें हमें जानवरों से पृथक करती हैं, वो हैं अनुसाशन, संस्कार, स्वाभिमान और रिश्तों की पवित्रता. हमें यह समझना होगा की शुरुवात पहली सीढ़ी से होती है.

मन लगाकर कार्य करना चाहिए और ग्लानि से बचना चाहिए. दिखावा करने की जरुरत नहीं. कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता. अनुभव से सफलता मिलती है. नशाखोरी से दूर रहिये. और याद रखिये, आपकी आदतें बच्चों में संस्कार बनकर जन्म लेती हैं. 

हर व्यक्ति के लिए आकर्षण केंद्र अलग होते हैं. उम्र के हिसाब से बदलाव होते रहते हैं. यह वैज्ञानिकी तथ्यों द्वारा प्रमाणित है. किसी को नग्न शरीर भी आकर्षित नहीं करता तो किसी के लिए आँखें और जुल्फें ही काफी होती हैं.

व्यभिचारी व्यक्ति की नज़रें सात बुर्कों से भी नहीं ढकी जा सकती. अतः नवयुवक अपने मूल्यों को पहचानें. ग्लानि, नशाखोरी, दिखावा तथा  अश्लील चित्रों एवं वीडियो से दूर रहें. 

स्त्रियों को नजरिया बदलने की आवश्यकता है

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में भेद समझना होगा. स्त्रियाँ जिन पश्चिमी देशों का हवाला देती हैं, जिनके फैशन को कॉपी करके खुद को अप टू डेट समझती हैं. वहां रेप की घटनाएँ हमारे देश से कहीं ज्यादा हैं. पश्चिमी पहनावे का इस्तेमाल करना और अंग प्रदर्शन करना दो अलग बातें हैं. पश्चिमी देशों में भी अंग प्रदर्शन को अंग प्रदर्शन (Nudity) ही कहा जाता है. 

स्त्रियों को अपनी ज़िम्मेदारी समझने की आवश्यकता है. आपको भी अनुशासन ही जानवरों  से अलग करता है. स्वतन्त्र और उप टू डेट दिखने के चक्कर में नशाखोरी, देर रात तक दोस्तों के साथ पार्टी करना, अंग प्रदर्शन करना तथा अपनी संस्कृति की अवहेलना करना आदर्श स्त्री का दाइत्व नहीं है. पुरुषों की भी ऐसी आदतें अच्छे समाज की स्थापना नहीं करती. 

आप स्वतंत्र व्यक्ति होने के साथ साथ किसी घर की इज़्ज़त भी हैं. आप बेशक असहाय और अबला नारी नहीं, परन्तु जब आपको पता है की इस जंगल में भेड़िये हो सकते हैं तो जंगल में अकेले घूमने की क्या आवश्यकता है? 

माता-पिता अपना किरदार पूरी तरह निभाए 

माता-पिता को चाहिए की अपनी बुरी आदतों पर अंकुश रखें. और साथ साथ अपने बच्चों पर नज़र भी रखें. उन्हें इन्टरनेट पोर्नोग्राफी, नशाखोरी तथा देर रात तक बाहर रहने से रोकें.

छोटे बच्चों को अकेले कहीं न जाने दें. किसी व्यक्ति के ऊपर इतना विश्वास न करें की वह आपकी अनुपस्थिति में आपके घर बेधड़क आये और आपके बच्चे बिना किसी वजह उनके घर में दिन गुज़ारें. शिक्षा और पोषण के अतिरिक्त सुरक्षा भी आपकी ज़िम्मेदारी है. 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपना फ़र्ज़ निभाए 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारी मानसिकता के अनुसार हमें परोसती जा रही है. कला और साहित्य के नाम पर नग्नता और हिंसा का नाटकीय रूपांतर, डेली शॉप और फिल्मों के माध्यम से दिखाया जा रहा है. समाचारों तक में अनावश्यक खबरें दिखाई जा रही हैं.

TRP के अतिरिक्त आपकी नैतिक जिम्मेदारियां भी हैं. मीडिया समाज और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है. उसे अपनी वरीयता समझनी चाहिए और बुराइयों से लड़ने के लिए तत्पर रहना चाहिए. 

प्रशासन झूठे वादे करना बंद करे

प्रशासन यदि वाकई हिंसा और बलात्कार दूर करना चाहती है, तो ज़मीनी स्तर पर कार्य करे—

§  सरकारी शराबों की दुकानें, क्यों नहीं बंद होती?

§  ISP इन्टरनेट पोर्नोग्राफी पूरी तरह प्रतिबंधित क्यों नहीं करते?

§  आपत्तिजनक सर्च वर्ड्स क्यों नहीं ब्लाक किये जाते?

§  पुलिस दबंगों को क्यों नहीं पहचानती?

प्रशासन को इसके अलावा शिक्षा का स्तर बदलना होगा. लोगों को पढ़-लिखकर सरकारी अफसर ही बनना है. यह मानसिकता बदलनी होगी. स्वरोजगार और स्किल्ड वर्क्स की जागरूकता लानी होगी.

जब हमारे देश से बेरोज़गारी, नशाखोरी, और अनुशासनहीनता ख़तम होगी; लोग अपने सांस्कृतिक तथा पारिवारिक मूल्यों को पहचानेंगें. जब सब मिलकर अपनी अपनी जिम्मेदारियां निभायेंगें; तब ख़तम होगी बलात्कार (Rape) की घटनाएँ और आएगी सही मायने में आज़ादी. 

 

लेखक - बृजेश उपाध्याय 

 
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