महात्मा गांधी की एक आवाज़ पर लाखों लोगों ने आंदोलन की कठिन राह पकड़ ली थी। मुम्बई में नौकरी कर रहे एक युवा पर बापू के भाषण का ऐसा असर हुआ कि वह अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी त्याग कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़ा। वर्षो की जेल के बाद जब आज़ादी मिली तो उसने रायबरेली में विकास की इबारतें लिखीं। जिन्हें रायबरेली का जनमानस विकास पुरुष ठाकुर दलबहादुर सिंह के नाम से जानता है। वह प्रदेश के अग्रणी स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे।
आजादी के आंदोलन से लेकर आजाद भारत में जिले के विकास की बड़ी लकीर खींचने में उनकी बड़ी भूमिका रही। मुंबई में महात्मा गांधी के भाषण ने उनके मन मस्तिष्क पर देश प्रेम की ऐसी छाप छोड़ी थी कि फिर उन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था।
ऊंचाहार के पूरे प्रह्लादपुर मजरे कंदरावा निवासी ठाकुर साहब मुंबई में नौकरी करते थे। सन् 1930 में नमक आंदोलन के दौरान उन्होंने मुंबई में गांधी जी का भाषण सुना तो फिर आंदोलन में कूद पड़े। मुंबई में जेल जाने के बाद जब रिहा हुए तो अपनी मातृभूमि में आ गए। जिले के कई आंदोलन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। इस दौरान वह जेल गए। रायबरेली और नैनी जेल में करीब साढ़े तीन साल रहे। उनसे प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोगों ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया। उनके नेतृत्व से प्रभावित होकर बड़े-बड़े नेता उन्हें बड़ा आदर करते थे।
आजादी के बाद 1952 में हुए यूपी विधान के चुनाव में ठाकुर साहब अविभाजित सलोन विधान सभा से पहली बार निर्वाचित हुए और वह 1957 तक विधान सभा के सदस्य रहे। जिले में शारदा सहायक नहर, आईटीआई फैक्ट्री, ऊंचाहार में विद्युत परियोजना और प्रयागराज से दिल्ली के ऊंचाहार एक्सप्रेस ट्रेन ठाकुर साहब की ही देन है।