धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज | The Voice TV

Quote :

सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

Editor's Choice

धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज

Date : 18-Aug-2023

हिन्दू धर्म के महान संत जिन्हें आधुनिक धर्म सम्राट भी कहा जाता हैं. स्वामी करपात्री जी एक समाज सुधारक संत और राजनेता थे.

अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक हिंदूवादी दल के संस्थापक और अद्वैत दर्शन के ज्ञाता थे. स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हुए करपात्री जी तीव्र बुद्दि के धनी थे.

धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो - आज इस उदघोष बिना सनातन मतावलंबियों का कोई अनुष्ठान पूरा नहीं होता। नई पीढ़ी में ज्यादातर लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि इस उद्घोष की रचना प्रतापगढ़ की माटी से निकले महान संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने की थी।

कहा जाता हैं, यदि वे किसी बात या तथ्य के का एक बार वाचन कर लेते तो वह उन्हें याद रह जाता था, यदि इस बारे में उनसे कभी पूछा जाता तो झट से बता देते थे स्वामी का का मूल नाम हर नारायण ओझा था, उनका जन्म वर्ष 1907 में उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में बताया जाता हैं. हिन्दू परम्परा के अनुसार इन्होने छोटी उम्र में ही सन्यास ग्रहण कर लिया था. संत परम्परा के अनुसार सन्यासी बनने के पश्तात इन्हे अपने गुरु के नाम पर हरिहरानन्द सरस्वती का नया नाम मिला था. विद्या अध्ययन में अदितीय स्वामी प्रतिपदा के दिन गंगा के तट पर एक कील ठोककर पुरे 24 घंटे तक एक पैर पर खड़े रहकर तपस्या किया करते थे. उनकी इन कठोर साधना और भक्ति के कारण ही करपात्री महाराज कहलाए.

भारत के प्रमुख गौरक्षक संतों में स्वामी करपात्री जी का नाम भी लिया जाता हैं. इन्होने आजादी के बाद भारत में गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किये.

इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने साल भी नहीं बीता था कि दिल्ली की सड़कों पर करीब एक लाख साधुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। पहली बार दिल्ली की सड़कों पर इतने साधु-संत एक साथ उतरे थे। सरकार के हाथ-पांव फूले गए।

तारीख थी 7 नवंबर 1966 साधु-संतों की मांग थी कि केंद्र सरकार पूरे देश में गौहत्या रोकने के लिए क़ानून बनाए। सर्वदलीय गौ रक्षा महाअभियान समिति के इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे वाराणसी के स्वामी करपात्री और हरियाणा से जनसंघ के सांसद स्वामी रामेश्वरानंद।लेकिन सत्ता के मद में चूर इंदिरा गांधी ने निहत्ते करपात्री महाराज और संतों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गोरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। माना जाता है कि एक नहीं, उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गोरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया। इस घटना के बाद स्वामी करपात्रीजी के शिष्य बताते हैं कि करपात्रीजी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।

'कल्याण' के उसी अंक में इंदिरा को संबोधित करके कहा था- 'यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है फिर भी मुझे इसका दु:ख नहीं है, लेकिन तूने गौहत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है, वह क्षमा के योग्य नहीं है। इसलिए मैं आज तुझे श्राप देता हूं _कि 'गोपाष्टमी' के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। आज मैं कहे देता हूं कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा।'

जब करपात्रीजी ने यह श्राप दिया था तो वहां प्रमुख संत 'प्रभुदत्त ब्रह्मचारी' भी मौजूद थे। कहते हैं कि इस कांड के बाद विनोबा भावे और करपात्रीजी अवसाद में चले गए।

इसे करपात्रीजी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement