यह निर्विवाद सत्य हैं कि मानवीय गतिविधियां ही जलवायु परिवर्तन की वजह बन रही हैं, गर्म हवाएं, अतिवृश्टि, सूखे समेत जलवायु से जुड़ी घटनाओं का कारण मानव की प्राकृतिक छेड़छाड़ का ही नतीजा हैं।
एक षोध के अनुसार यह पाया गया हैं कि 2003 से 2021 के बीच 405 अतिष्य मौसमी घटनाएं घटीं, इनमें से 79 फीसदी घटनाओं में मानवीय प्रभावों को अनुभव किया गया, विष्लेशण यह बताता है कि 92 फीसदी अध्ययनों मे चरम ताप की ज्यादातर घटनाक्रम के पीछे जलवायु परिवर्तन कारक रहा है, तथा लगभग 58 फीसदी घनाएं वर्शा तथा बाढ़ वाली रही हैं।
धारती की जलवायु तथा इसके पारिस्थितिक तंत्र को समझने के लिए वैज्ञानिक ‘टिपिंग प्वाइंट‘ की पइताल कर रहे हैं, टिपिंग प्वाइंट को इस तरीके से हम समझ सकते हैं जैसे कि यदि हम पहाड़ की समतल चोटी पर रखे एक बड़े पत्थर की कल्पना करें, जब तक यह चोटी के किनारे पर नहीं हैं इसके गिरने की संभावना कम होगी लेकिन कोई हल्का धक्का भी इसे नीचे गिरा देगा, इस किनारे की जगह को ही ‘टिपिंग प्वाइंट पहले ही आ चुका है, ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने 14 टिपिंग पॉइंट्स की पहचान की हैं जिनमें ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर का पिघलना, आर्कटिक सागर में बर्फ का नुकासान, भारतीय मानसून में बदलाव, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, सहारा में हरियाली प्रमुख हैं। इसमें सबसे खास डेनिष वैज्ञानिकों ने 28 जुलाई तक भीशण गर्मी के दौरान प्रति दिन आठ बिलियन टन बर्फ पिघलते देखी जो गर्मियों में पिघलने की औसत दर से दुगुनी है, इस बर्फ से निकला पानी इतना था जो भारतीय राज्य महाराश्ट्र को डुबोने के लिए काफी है, ग्रीनलैंड के कई क्षेत्रों में तापमान सामान्य से दस डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है, यदि ग्रीनलैंड की पूरी चादर पिघल जाए तो यह समुद्री स्तर को 21 फीट से अधिक बढ़ा सकता है, पिछले तीस वर्शों में चार हजार अरब टन से अधिक बर्फ स्थाई रूप से पिघल चुकी है, नेचर के अनुसार 2030 तक ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर अपने टिपिंग प्वाइंट को पार कर सकती हैं, जैसे तापमान बढ़ेगा, खतरा बढ़ता ही जाएगा
उदाहरण के लिए 2 डिग्री सेल्सियस गर्म होने पर अगले एक हजार वर्शें में ग्रीनलैंड की पूरी बर्फ गायब हो जाएगी।कुछ बातें हम करते हैं अपने देष के बारे में, अपने देष का भारतीय मानसून दक्षिण - पष्मिच मानसून के नाम से भी जाना जाता है, पिछले बीस वर्शें में मानसून सामान्य से कम देखा जा रहा है, मध्य भारत मंे मानसून की तारीखें 9 जुलाई से 26 जुलाई हो गई हैं जबकि जून के अंत तक सामान्य षुरूआत होनी चाहिए, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने नोट किया कि जलवायु परिवर्तन इसका एक बड़ा कारण है अभी इस स्थिति में टिपिंग प्वांइट के असर को यहां पर हम महसूस कर रहे हैं,उदहरण के लिए अपने छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव क्षेत्र जिसे मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है, यह इलाका लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन में फैला हुआ है तथा यह वन्य जीवों तथा घने वनों से आच्छादित हैं, कोयले का यहां प्रचुर भंडार है, केंद्र सरकार यहां की प्राकृतिक संपन्नता को दरकिनार कर खनन कर यहां की प्राकृतिक संपदा को नश्ट कर रही है जो भविश्य में देष में जलवायु संतुलन को भारी नुकसान पहुंचाएगा, इस खनन का राश्ट्रीय तथा अंतरराश्ट्रीय स्तर पर भारी विरोध हो रहा है, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा हमने कुछ वर्शों पूर्व केदारनाथ में भयावह बाढ़ की षक्ल में देखा जहां अनेक तीर्थयात्री जान गवां बैठे, केदारनाथ के आस पास पहाड़ों को काटकर होटलों का निर्माण कर दिया गया था: अनावष्यक बोर कई जगहों पर वहां करवा दिए गए, जिसका नतीजा इस खौफनाक तरीके के रूप् में समाने आया।
कुछ ऐसा ही परिवर्तन पष्चिम अफ्रीका के मानसून में भी महसूस किया गया है, एक महत्वपुर्ण परिवर्तन प्रवाल भित्तियों (छोटे छोटे जीवों की बस्तियां) के अस्तित्व पर भी महसूस किया जा रहा है, अब यह माना जा रहा है की कई भित्तियां अपने टिपिंग प्वाइंट को पार कर चुकी हैं तथा उन्हें बचा पाना असम्भव सा है, जुलाई 2021 में अंतरराश्ट्रीय प्रवाल भित्ति संगठन द्वारा अंतरराश्ट्रीय गोश्ठी में एक पत्र मंे कहा गया है कि की दुनिया के पास प्रवाल भित्ति को बचाने के लिए केवल दस वर्श हैं, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण ये अत्याधिक जोखिम में हैं क्योंकि बढ़ी हुई गर्मी का महासागर पर नब्बे प्रतिषत प्रभाव पड़ता है, ग्रेट बैरियर रीफ में 2016-17 में एक ब्लीचिंग घटना घटी जो ऑस्ट्रलिया के उत्तरपूर्वी तट से दूर दुनिया की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति प्रणाली ने 50 प्रतिषत प्रवाल को मार डाला, प्रवाल का निरंजन तथा बड़े पैमाने पर मरना मुख्य रूप से 2016 में रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान के बाद हुआ जो अब तक का सबसे गर्म वर्श था, इसके साथ ही एक अल नीनो घटना भी दर्ज की गई। अल नीनो भूमध्य रेखीय प्रषांत महासागर का असामान्य तापन है तथा अफ्रीका जैसे उश्ण कटि बंधीय क्षेत्रों, भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया क्षेत्रों में जलवायु परिस्थितियों को प्रभावित करने वाले वैष्विक पैटर्न को प्रभावित करता है, इन सभी क्षेत्रों में प्रवाल भित्तियां हैं।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राश्ट्र के नवीनतम वैज्ञानिक आकलन ने यह स्पश्ट कर दिया है कि दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस के तापमान वृद्धि को रोकने के लिए आवष्यक पैमाने पर ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने में सक्षम नहीं है, इसके लिए सभी देषों को युद्ध स्तर पर काम करना होगा, एक अध्ययन यह बतलाता है कि 2001 से 2019 के बीच दुनिया के जंगलों ने जितनी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित की उससे दुगुने को फिर से सोख लिया, इन सब परिस्थितियों को देखते हुए उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रकृति आधारित समाधानों की मांग ने गति पकड़ी है, जनवरी 2020 में स्विट्जरलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में कई बड़ी कंपनियों ने 2030 तक दस खरब वृक्ष लगाने के पहल पर अपने हस्ताक्षर किए, अप्रैल 2021 में अमरीकी राश्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में ‘लीफ‘ मिषन के तहत अमेरिका, इंग्लैड्र तथा नॉर्वे के नेतृत्व में सार्वजनिक निजी प्रयास के रूप् में घोशित किया गया था, यहा यूनिलीवर, अमेजन, नेस्ले जैसी कंपनियों द्वारा समर्थित था, इसका उद्देष्य एक बिलियन अमरीकी डॉलर जमा करना था इस धनराषि से जलवायु समर्थित मुद्दों पर कार्य करना था।
इन तनाम बातों का उद्देष्य यह है कि यह भी एक संतोश का विशय हो सकता है कि तमाम देष, संगठन इन बारे में जागरूक हैं तथा पर्यावरण के समर्थन में प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन दुनिया में यह समस्या इतनी विकराल हो चुकी हैं कि ये कोषिषें अभी षैषावस्था में लगती हैं अभी इस दिषा में बहुत कुछ तथा जमीनी स्तर पर किया जाना सबसे जरूरी हैं तब हम मानवता को बचा पाने में सफल होंगे।
Author: Mr. Satyendra Mishra(B.E)