नई दिल्ली, 28 नवंबर (हि.स.)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को कहा कि प्रौद्योगिकी और परंपराओं, आधुनिकता और संस्कृति का सम्मिश्रण समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के ज्ञान का प्रचार और विकास भारत को ज्ञान महाशक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
''जनजाति अनुसंधान-अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास'' पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला के प्रतिनिधियों ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की। राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान से ''स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान'' पुस्तक की प्रथम प्रति भी प्राप्त की।
इस मौके पर सभा को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी और परंपराओं, आधुनिकता और संस्कृति का सम्मिश्रण समय की आवश्यकता है। हमें ज्ञान की शक्ति से दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार रहना चाहिए। आदिवासी समाज के ज्ञान का प्रचार और विकास भारत को ज्ञान महाशक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आदिवासी समाज के लोग, लेखक, शोधकर्ता अपने विचारों, कार्यों और शोध से आदिवासी समाज के विकास में अपना अमूल्य योगदान देंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि युवा हमारे इतिहास और परंपराओं को समझने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उनका झुकाव हमारे समाज के इतिहास और संस्कृति की विशेषताओं के बारे में शोध और लेखन की ओर होगा। उन्होंने कहा कि देश की उन्नति तभी हो सकती है जब हमारा युवा अपने गौरवशाली इतिहास को समझे, अपने देश एवं समाज की सुख-समृद्धि के सपने देखे और उन्हें साकार करने के हर संभव प्रयास करे।
राष्ट्रपति ने आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में स्वतंत्रता संग्राम, सेमिनार आदि में जनजातीय नेताओं के योगदान को प्रदर्शित करने वाले फोटो प्रदर्शनियों सहित प्रमुख विश्वविद्यालयों में कई कार्यक्रमों के आयोजन के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सराहना की। उन्होंने कहा कि इन आयोजनों से आदिवासी युवाओं को अपने पूर्वजों के बलिदान और अपने समाज के स्वाभिमान की महान परंपरा पर गर्व होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि आदिवासी समाज ने कभी गुलामी स्वीकार नहीं की। देश पर किसी भी हमले का जवाब देने में वे हमेशा सबसे आगे रहते थे। देश भर में आदिवासी समुदायों द्वारा संथाल, हूल, कोल, बिरसा, भील जैसे कई विद्रोहों में संघर्ष और बलिदान सभी नागरिकों को प्रेरित कर सकते हैं।
इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि देश की अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या 10 करोड़ से अधिक है राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सामने यह सुनिश्चित करने की चुनौती है कि विकास का लाभ सभी जनजातियों तक पहुंचे। साथ ही साथ उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान बनी रहे।
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान’ पुस्तक का विमोचन होना गर्व की बात है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस पुस्तक के माध्यम से देश भर में जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की गाथाओं का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार होगा।
उन्होंने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि जनजाति समाज ने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की। देश पर हुए सभी आक्रमणों का सबसे पहले जनजाति समाज ने ही प्रबल प्रतिकार किया। उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ जनजाति समाज का घनिष्ठ संबंध अनुकरणीय है। उन्हें साथ लेकर हम विकास की नई ऊंचाईयां पा सकते हैं और सही अर्थों में समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि जनजाति समाज का ज्ञान जिस भी रूप में उपलब्ध है उसका संकलन करके लोकप्रिय माध्यम से उसे देश और दुनिया तक पहुंचाना एक उपयोगी प्रयास होगा। डिजिटल युग में टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम जनजातियों की संस्कृति का ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/सुशील