सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा वोट पाने के लिए धर्म और क्षेत्रवाद के उपयोग पर गंभीर चिंता जताई है और इसे समाज में सांप्रदायिकता बढ़ाने के बराबर खतरनाक बताया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि इस तरह की प्रथाएँ भारत की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा हैं।
यह टिप्पणी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पंजीकरण रद्द करने की याचिका को खारिज करते हुए आई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह किसी एक पार्टी को विशेष रूप से निशाना नहीं बनाएगी, क्योंकि कई अन्य राजनीतिक दल भी समान व्यवहार में दोषी हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह चुनाव सुधारों से जुड़े व्यापक मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करे, न कि केवल एक पार्टी के खिलाफ याचिका दायर करे।
अदालत ने यह भी कहा कि एआईएमआईएम का संविधान पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के समर्थन में है, जो भारतीय संविधान के तहत मान्य है। धर्म का प्रचार करना आमतौर पर गैरकानूनी नहीं है, लेकिन वोट मांगते समय धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव करना चुनाव कानूनों का उल्लंघन है और इससे उम्मीदवार की योग्यता प्रभावित हो सकती है।
इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इसी याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि एआईएमआईएम ने सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया है और उस पर प्रतिबंध लगाना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।