बेलेम, 18 नवंबर। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तनमंत्री भूपेंद्र यादव ने ब्राजील के बेलेम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कॉप 30 में अंतरराष्ट्रीय बिग कैट एलायंस (आईबीसीए) के उच्च स्तरीय मंत्री सत्र में भारत की प्रतिबद्धता दोहराते हुए घोषणा की कि भारत वर्ष 2026 में नई दिल्ली में ग्लोबल बिग कैट्स समिट की मेजबानी करेगा। इस कार्यक्रम में नेपाल के कृषि और पशुपालन मंत्री डॉ. मदन प्रसाद परियार भी शामिल हुए।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, भूपेंद्र यादव ने कहा कि बड़ी बिल्ली प्रजातियां केवल वन्यजीव नहीं, बल्कि प्रकृति का संतुलन बनाए रखने वाले प्रमुख घटक हैं। उन्होंने कहा कि जहां बड़ी बिल्लियां सुरक्षित रहती हैं, वहां जंगल मजबूत होते हैं। घास भूमि पुनर्जीवित होती है। जल प्रणाली बेहतर काम करती है और प्राकृतिक कार्बन अधिक प्रभावी रूप से संरक्षित रहता है। इन प्रजातियों में गिरावट से पर्यावरणीय तंत्र कमजोर होता है। जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता कम होती है और प्राकृतिक कार्बन भंडार प्रभावित होते हैं।
उन्होंने ‘बिग कैट परिदृश्य’ को प्रकृति आधारित जलवायु समाधान करार देते हुए भविष्य की राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) में प्रकृति आधारित जलवायु कार्रवाई को प्रमुख स्थान देने की अपील की। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की सात में से पांच बड़ी बिल्ली प्रजातियों का घर है और संरक्षण के क्षेत्र में लगातार उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कर रहा है। भारत ने तय समय से पहले बाघों की संख्या दोगुनी की है और एशियाई शेरों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। देशभर में बाघ, शेर, तेंदुआ और हिम तेंदुआ की नियमित गणना करते हुए भारत ने दुनिया के सबसे व्यापक वन्यजीव आंकड़ा तंत्रों में से एक विकसित किया है। साथ ही भारत ने संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार, गलियारों की सुरक्षा और समुदाय आधारित आजीविकाओं को बढ़ावा देकर संरक्षण कार्य और मजबूत किया है।
भूपेंद्र यादव ने आईबीसीए की बढ़ती सदस्यता का जिक्र करते हुए बताया कि यह पहल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच ‘एक पृथ्वी, एक विश्व, एक भविष्य’ पर आधारित है। अब तक 17 देश औपचारिक रूप से इसमें शामिल हो चुके हैं, जबकि 30 से अधिक देशों ने इसमें जुड़ने की इच्छा जताई है। भारत का लक्ष्य है कि बड़ी बिल्ली रेंज वाले सभी देश इस गठबंधन का हिस्सा बनें और जैव विविधता व जलवायु सुरक्षा को महत्व देने वाले राष्ट्र भी इसमें शामिल हों।
