छत्तीसगढ़ एक जनजाति बहुल राज्य है, ग्रहा 42 प्रकार की जनजातीय अलग-अलग क्षेत्रों में पाई जाती है। यहां का भौगालिक परिद्दष्य जनजातियों के जीवन के अनुकूल है अतः उनके स्वतंत्र अस्तित्व के निर्माण में सहायक है। छत्तीसगढ़ की जनजातियों में अनेक प्रकार के पर्व मनाय जाते है, जो अलग-अलग जनजाति में अलग-अलग प्रकार के हैं। जनजातियों के प्रकृति प्रेम ही झलक उनके तयोहारों में प्रदर्षित होती है। जनजातियों के पर्व प्रकृति, ऋतु, कृशि इत्यादि से संबंधित है। छत्तीसगढ़ की कुछ महत्वपूर्ण जनजातियों द्वारा मनाए जाने वाले पर्व इस प्रकार है: चैत्र माह मे साल वृक्ष में फूल आने पर उराव जनजाति द््वारा सरहुल पर्व मनाया जाता है इस पर्व में सूर्य व धरती का प्रतीकात्मक विवाह किया जाता है।
बस्तर अंचल में माडिया जनजाति द्वारा आशाढ़ माह में गोचा पर्व मनाया जाता है और रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसकी षुरूआत पुरूशोत्तम देव ने 1468 ईस्वी में की थी, यह पर्व 14 दिनों तक चलता है। कृशि के दौरान कोरवा जनजाति द्वारा बीज बोहिनी, कोरा, घेरसा पर्व मनाया जाता है। गोंड जनजाति द्वारा भादो पूर्णिमा के अवसर पर नया फसल आने पर नवाखाई पर्व मनाया जाता है। भादो मास में ही सरगुजा क्षेत्र में उराव जनजाति द्वारा करमा पर्व मनाया जाता है। भादो माह में ही गोंड जनजाति द्वारा आम फलने के बाद आमा खाई पर्व मनाया जाता है तथा अभुझमाडिया द्वारा काकसर पर्व मनाया जाता है। गोड जनजाति द्वारा माटी त्यौहार में पृथ्वी देव की पूजा की जाती है। मड़ई त्यौहार मे मुड़िया माडिया जनजाति द्वारा अंगा देव की पूजा की जाती है।
माडिया जनजाति द्वारा कार्तिक माह में दिवाली के दूसरे दियारी पर्व मनाया जाता है जिसमें फसल की पूजा की जाती है, पषुओं को भोजन दिया जाता है। पौश माह मैं गोड, भुमका, पनका जनजाति द्वारा छेरछेरा पर्व मनाया जाता है जिसमें बच्चे घर घर जाकर धान मांगते है तथा पुराने खाते बंद कर नए खाते बनाए जाते हैं इस दिन कृशि कार्य नहीं किया जाता। गोड जाति द्वारा फागुन माह में मेघनाथ पर्व मनाया जाता है। भतरा और हल्बा जनजाति द्वारा फागुन माह में तीज के समय लक्ष्मी जागर पर्व मनाया जाता है पूजा के दौरान अनिवार्य वस्तुएं घड़ा, सूपा, धनुश को षामिल किया जाता है, धनकुल नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है। कोरवा जनजाति द्वारा उतरा (सरसो, दाल) फसल काटने के बाद घेरसा पर्व मनाया जाता है जिसमें खुड़िया रानी की पूजा की जाती है।
छत्तीगसढ़ के मुख्य त्यौहार जो छत्तीसगढ़ के सभी क्षेत्रों में मनाए जाते हैं इस प्रकार हैंः हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ का प्रथम त्यौहार है जिसे गेड़ी पर्व भी कहते हैं, यह पर्व सावन आमावष्या को मनाया जाता है जिसमे किसान लौह उपकरण की पूजा करते है। अक्षय तृतीय बैषाख षुक्ल पक्ष तृतीय को मनाया जाता है जिसमे पुतरा पुतरी का विवाह किया जाता है। हल शश्ठी भाद्र पद कृश्णपक्ष शश्ठी को मनाया जाता है जिसमे माताएं अपने पुत्र को लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। पोला पर्व भाद्रपद अमावस्या को मनाया जाता है जिसमे मिट्टी के बैलों की पूजा की जाती है। हरित तालिका भाद्रपद षुक्लपक्ष तृतीय को मनाया जाता है जिसमे विवाहित महिलाएं अपने मायके जाकर अपने पति के लिए व्रत रखती है। देवउठनी एकादर्षी कार्तिक षुक्लपक्ष एकादर्षी को मनाया जाता है जिसमे तुलसी विवाह किया जाता है। तुलसी विवाह के बाद में सभी षुभ कार्य प्रारंभ हो जाते है। इस प्रकार हम देखते है की जनजातीय समाज ने अपनी को बखूबी संजोया है। जनजातीय त्यौहार उनके प्रकृति प्रेम और सामाजिक एकता को एक सूत्र में बांध कर उनके वनांचल जीवन को उत्साह प्रदान करता है।
Author: Mr. Sumit Kumar Shrivastav
M.Tech,PGDCA