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खूबसूरती से भरा हिमाचल प्रदेश, जानें यहां की कला संस्कृति

Date : 16-Nov-2022

हिमाचल प्रदेश, हिमालय के दक्षिण एवं उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी दो राजधानियां हैं पहली राजधानी शिमला है जिसे ग्रीष्मकालीन राजधानी कहा जाता है और दूसरी राजधानी धर्मशाला है जिसे शीतकालीन राजधानी कहा जाता है। यह 56019 किमी क्षेत्र में फ़ैला हुआ है। हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थबर्फ़ीले पहाड़ों का प्रांतहै। हिमाचल प्रदेश कोदेव भूमिभी कहा जाता है। इस क्षेत्र में आर्यों का प्रभाव ऋग्वेद से भी पुराना है। आंग्ल-गोरखा युद्ध के बाद, यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकारके हाथ में गया था। तो चलिए आपको बताते हैं हिमाचल प्रदेश की संस्कृति,परंपरा, इतिहास और भाषा।

हिमाचल प्रदेश का इतिहास

देव भूमि हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। इतिहासकारों के अनुसार हिमाचल प्रदेश का इतिहास सिन्धु घाटी सभ्यता के समय से प्रारम्भ होता है। वैदिक काल में, जनपद के नाम से जाना जाने वाला यह एक छोटा गणराज्य था, जिस पर बाद में गुप्त साम्राज्य के शासकों ने कब्ज़ा कर लिया था। इस समय इस क्षेत्र में कोइली, हाली, दागी, धौग्री, दसा, खासा, किन्नर, किरात इत्यादि जैसे समुदाय के लोग निवास कर रहे थे। राजा हरिशचंद्र ने अपना प्रभुत्व इस क्षेत्र पर एक लंबे समय तक बनाये रखा। बाद के समय में दिल्ली सल्तनत ने इस राज्य पर आक्रमण किया लेकिन उन्हें कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी। इनके बाद सरदारों और राजपूतो की अगुवाई में इस क्षेत्र को छोटे-छोटे भागो में विभाजित कर दिया गया।

आज़ादी के बाद जनवरी 1948 . में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन सम्मेलन सोलन में हुआ। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई थी। जब 26 जनवरी 1951 को भारतीय संविधान लागू हुआ और लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति की गई तब हिमाचल प्रदेश को पार्ट सी राज्य का दर्जा दिया गया। इसके बाद 01 नवम्बर 1956 को हिमाचल प्रदेश को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। 01 नवम्बर 1966 को पंजाब पुनर्निर्माण एक्ट, 1966 के तहत पंजाब राज्य के कुछ भाग को हिमाचल प्रदेश में शामिल किया गया। 18 दिसम्बर 1970 को संसद ने हिमाचल प्रदेश एक्ट पास कर दिया। 25 जनवरी 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने शिमला आकर ऐतिहासिक रिज मैदान पर भारी बर्फबारी के बीच हिमाचल वासियों के समक्ष हिमाचल प्रदेश को 18वें राज्य के रूप में दर्जा दे दिया। शिमला को हिमाचल प्रदेश राज्य की राजधानी बनाया गया। डॉ. यशवंत सिंह परमार राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति

हिमाचल प्रदेश की संस्कृतिक कला और हस्तशिल्प के लिए विशेष सराहना की जाती है। हिमाचल प्रदेश ने बढ़ते हुए आधुनिकीकरण के बावजूद अपनी समृद्ध पारंपरिक संस्कृति को कायम रखा है। इस क्षेत्र के पहाड़ और घाटियाँ यहाँ के नृत्य रूपों में दिखाई देते हैं। यहाँ की संस्कृति केवल हिमाचलवासियों के भौतिक दृष्टिकोणों में बल्कि उनके त्योहारों में संगीत, नृत्य और सरल जीवन शैली भी दिखाई देती है।

हिमाचल प्रदेश के त्यौहार

त्यौहार और मेले हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये त्यौहार धार्मिक संस्कारों और सांस्कृतिक प्रथाओं से भरे हुए हैं। सभी भारतीय त्योहारों को मनाने के अलावा, कुछ स्थानीय त्योहारों को भी काफी उत्सुकता के साथ यहाँ के लोग मनाते हैं। यहां की कुल्लू घाटी देवताओं की घाटी के रूप में जानी जाती है। इसके चीड़ और देवदार के जंगल, फूलों से लदे हरे-भरे मैदान और फलों के बगीचे प्रत्येक शरद ऋतु में होने वाले दशहरा महोत्सव के लिए माहौल तैयार कर देते हैं। इस मौक़े पर मन्दिरों के देवताओं को सजी हुई पालकियों में गाजे-बाजे के साथ और नाचते हुए भव्य यात्रा निकली जाती है।

यहाँ के उत्सव में दुनिया भर के पर्यटक भाग लेते हैं। प्रत्येक साल अंतर्राष्ट्रीय हिमालयी उत्सव का आयोजन धर्मशाला में दिसंबर के दूसरे सप्ताह में आयोजित किया जाता है। सतलज नदी के तट पर तीन दिनों तक लवी मेला का आयोजन होता है जो हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध मेलों में से एक है। लाहौल में चेशु त्योहार मनाया जाता है। लाहौल महोत्सव कीलोंग में आयोजित किया जाता है। हरियाली हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र और सिरमौर में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है। श्रावण संक्रांति जुलाई में नाहन में होती है। बिलासपुर में प्रसिद्ध नैना देवी मेला अगस्त महीने में होता है।

कांगड़ा घाटी चित्रकला शैली

हिमाचल प्रदेश अपनी कांगड़ा घाटी चित्रकला शैली के लिए भी जाना जाता है। भारतीय चित्रकला के इतिहास के मध्ययुग में विकसित पहाड़ी शैली के अंतर्गत कांगड़ा शैली का विशेष स्थान है। इसका विकास कचोट राजवंश के राजा संसार चन्द्र के समय में हुआ था। यह चित्रकला पहाड़ी चित्रकला का एक भाग है। इस चित्रकला का मुख्य विषय श्रृंगार है। इसकी विशेषता नारी-सौन्दर्य के प्रति अत्यधिक झुकाव है। पौराणिक कथाओं और रीतिकालीन नायक-नायिकाओं के चित्रों की प्रधानता तथा गौण रूप में व्यक्ति चित्रों को भी स्थान दिया गया है। इसके अलावा प्राकृतिक, विशेषकर पर्वतीय दृश्यों का भी चित्रण किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश का संगीत और डांस

यहाँ के निवासी नृत्य और संगीत के काफी शौकीन हैं। ये हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का प्रमुख भाग हैं। नृत्य और संगीत का मुख्य रूप से उत्सव के दौरान देवी-देवताओं के आह्वान में किया जाता है। यहाँ की प्रसिद्ध नृत्य शैलियाँ हैं- नाटी, खराईत, उज्गाजमा और चड्ढेब्रीकर (कुल्लू), शुंतो (लाहौल और स्पीति) और डांगी (चंबा)

नाटी नृत्य – यह इस राज्य का सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है। राज्य के कुल्लू, सिरमौर, मण्डी, किन्नौर, शिमला इत्यादि जनपदों में नाटी नृत्य मुख्य रूप से किया जाता है। यह संगीतकारों के साथ लोगों के एक समूह द्वारा किया जाता है। इस समूह में पुरुष और महिला दोनों भाग लेते हैं। इसमें संगीतकारों को टूनिस कहा जाता है और प्रदर्शन के दौरान बाँसुरी, ढोल, नगाड़ा, नरसिंघा, करनाल और सनई वाद्ययंत्र का उपयोग किया जाता हैं। नाटी प्रदर्शन के अंत में नर्तकों द्वारा देवी और देवताओं को श्रद्धांजलि देने के लिए यज्ञ का आयोजन किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश का भोजन 

उत्तर भारतीय लोगों के द्वारा जो भोजन किया जाता है वही भोजन हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से प्रचलन में हैं। दाल-चवाल और सब्ज़ी-रोटी को एक बड़ी आबादी द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। हिमाचल प्रदेश के लोग मांसाहारी व्यंजन भी पसंद करते हैं। किसी भी अन्य उत्तर भारतीय खाद्य पदार्थों की तरह, अचार और चटनी भी लोगों को काफी पसंद हैं।

हिमाचल प्रदेश का भाषा और साहित्य

भाषा 

हिमाचल प्रदेश एक बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राज्य है। यहाँ मुख्य रूप से हिन्दी, काँगड़ी, पहाड़ी, पंजाबी तथा डोगरी भाषाऐं बोली जाती है। सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से कुछ हिंदी और पहाड़ी हैं। राज्य में हिंदी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है तथा अंग्रेजी भाषा को अतिरिक्त आधिकारिक भाषा के रूप में माना जाता है। अंग्रेज भाषाविद्वान जी ग्रिएर्सन ने हिमाचली भाषाओं का पश्चिमी पहाड़ी भाषाओं के रूप में सर्वेक्षण किया। यहाँ की पहाड़ी भाषा का अपभ्रश शौरसैनी है। पहाड़ी भाषा की लिपि टांकरी है।

हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषा  बोलियां बोली जाती हैं

चंबा चंबा जिले में चंम्बयाली भाषा बोली जाती है। चंबा जिले में स्थानीय बोलियां भी बोली जाती हैं जिनमें भटियाली,चुराही,पंगवाली और भरमौरी हैं।

बिलासपुरबिलासपुर जिले में मुख्य भाषा कहलूरी बोली जाती है। कहलूरी को बिलासपुरी भाषा भी कहा जाता है।

सिरमौर सिरमौर जिले में सिरमौरी भाषा बोली जाती है। यहां की प्रमुख स्थानीय बोलियां बिशवाई और धारटी है।

मंडी मंडी जिले में मण्डयाली, सरघाटी , सुकेती और बालडी भाषा बोली जाती है। यह बोलियां सुंदरनगर मंडी बल्ह और सरकाघाट के क्षेत्रों में बोली जाती है।

कांगड़ा कांगड़ा जिले में कांगड़ी भाषा बोली जाती है। यहां की स्थानीय बोलियां पालमपुर और शिवालिक बोलियां हैं।

कुल्लू कुल्लू की स्थानीय भाषा सीराजी और सैजी है। कुल्लू जिले में कुल्लवी भाषा बोली जाती है।

ऊना और हमीरपुर इन जिलो मे कांगड़ी भाषा बोली जाती है।

किन्नौर किन्नौर जिले मे किन्नौरी भाषा बोली जाती है। इसकी प्रमुख बोलियां छितकुलीहोमस्कंदशुम्को और सुनामी है।

सोलन सोलन में महासुवी उपभाषा बोली जाती है। यहां की स्थानीय बोलियां भगाटी, हांडूरी और क्योंथली है।

लाहौलस्पीति – लाहौल में लाहौली भाषा बोली जाती है। गेहरी, गारा, चागसा रंगलोई, मनचाटी यहां की प्रमुख बोलियां हैं। स्पीति मे भाषा तिब्बती बोली जाती है।

हिमाचल प्रदेश का साहित्य

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति पर हिंदी में सर्वाधिक लिखने वाले पहले लेखक महापंडित राहुल सांकृत्यायन हैं। यायावर राहुलजी ने हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों सहित विभिन्न भागों में भ्रमण किया।

हिमाचल प्रदेश की वेशभूषा

हिमाचल प्रदेश का पहनावा अपने आप में बहुत विशिस्ट है। हिमाचल के हर जिले का अपना पहनावा, अपने वस्त्र विशेष के कारण उनकी अलग पहचान की जा सकती है। यहाँ के पुरुष और महिलायें दोनों के पहनावे अलगअलग हैं। पुरुषो के परिधान में सबसे विशिस्ट गद्दियों का बना हुआ एक चोला होता है जिसे चोला-डोरा, या फिरचोलूभी कहते हैं। चोला मुख्यता एक लंबे कोट की भांति होता है, जो पूर्णतयाः देशी ऊन का बना होता है। यह महिलाओ पर बहुत सुन्दर लगती हैं।

पुरुषों द्वारा पहनी जानी वाली कुल्लू टोपी भी बहुत प्रसिद्ध है। कोटगढ़ और आसपास के क्षेत्र में महिलाओं द्वारारेजटापहना जाता है।रेजटालंबा, बंद कोटनुमा पहनावा है, जो कंधों से पैरों तक शरीर को ढांकता है। शिमला जिला के लोगबुशैहरी टोपीऔर कोटनुमालोइयापहनते हैं।

किन्नौर का परिधान विश्वभर में प्रसिद्ध है। फिर चाहे किन्नौरी टोपी हो, किन्नौरी शॉल या किन्नौरी सदरी, हरकोई किन्नौरी वेशभूषा को देख आकर्षित हो जाता है। कहा जाता है कि किन्नौरी दुल्हन का श्रृंगार कम से कम 40 से 50 किलोग्राम की वेशभूषा से होता है।

हिमाचल प्रदेश राज्य के कुल्लू और मध्य भाग्य के क्षेत्र में पुरुष दोहड़ू पहनते हैं। यह भेड़ की ऊन से बनी हुई विशेष तरीके का एक चादर होता है। इसे पुरुष कमर के नीचे पहनते हैं। ढियाडू एक सुन्दर सूती का बना हुआ कपड़ा होता है जो स्त्रिया अपने सर पर बांधती हैं।

हिमाचल प्रदेश में कृषि 

हिमाचल प्रदेश के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। यह राज् की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह कामकाजी आबादी को सीधा रोज़गार मुहैया कराती है। किसान इंद्र देवता पर निर्भर रहते हैं।

बागवानीप्रकृति ने हिमाचल प्रदेश को व्यापक कृषि जलवायु परिस्थितियां प्रदान की हैं जिसकी वजह से किसानों को विविध फल उगाने में सहायता मिली है। बागवानी के अंतर्गत आने वाले प्रमुख फल हैंसेब, नाशपाती, आडू, बेर, खूमानी, गुठली वाले फल, नींबू प्रजाति के फल, आम, लीची, अमरूद, झरबेरी आदि।

हिमाचल प्रदेश की कला और शिल्प

हिमाचल प्रदेश की कला और शिल्प के उदाहरण हैकालीन, चमड़े का काम, शॉल, पेंटिंग, मेटलवेयर और लकडी की पेंटिंग आदि। पश्मीना शाल एक ऐसा उत्पाद है जो अत्यधिक मांग में है। उत्कृष्ट शैली में बनी किन्नौर शॉलें, कुल्लू की विशिष्ट ऊनी टोपियाँ, पश्मीना शॉल, रंग-बिरंगे टोपी और चंबा के क़सीदाकारी किये हुए रूमाल। लकड़ी के शिल्प के लिए प्रसिद्ध स्थान चंबा, टिज़ा, कल्प, किन्नौर जिले और कुल्लू हैं। 

 
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