दश के सभी हिन्दू तीर्थों के भांजे के रूप में मान्यता। अब्दाल शाह बाबा के सालाना उर्स में शिरकत। और गुरुद्वारा शेर शिकार दाताबन्दी छोड़ में हाजिरी। राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित मचकुंड सरोवर का वार्षिक मेला कौमी एकता की नायाब मिसाल के रूप में देश और प्रदेश में अपनी एक विशेष पहचान रखता है। भाद्र माह की छठ के मौके पर आयोजित होने वाले दो दिवसीय लक्खी मेले में राजस्थान के साथ-साथ मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत अन्य शहरों के श्रद्धालु अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं।
धौलपुर जिला मुख्यालय से करीब दो किलोमीटर दूर अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच स्थित मचकुंड सरोवर राजस्थान के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शुमार है। मचकुंड सरोवर के चारों 108 हिंदू मंदिर हैं। जिनमें प्राचीन लाडली जगमोहन मंदिर, मदन मोहन मंदिर, भगवान जगन्नाथ मंदिर तथा भूतेश्वर महादेव मंदिर सहित अन्य प्रमुख हैं। धौलपुर में स्थित तीर्थराज मचकुंड सरोवर को सभी तीर्थ का भांजा होने का गौरव प्राप्त है। मान्यता ऐसी है कि सभी तीर्थ का स्नान करने के बाद मचकुंड सरोवर में स्नान करके ही पूरी धार्मिक यात्रा को पूर्ण माना जाता है।
तीर्थराज मचकुंड सरोवर के पौराणिक महत्व के बारे में जिले के शिक्षाविद् एवं वरिष्ठ इतिहासकार अरविंद शर्मा बताते हैं कि श्रीमद भागवत के 10 वें स्कन्ध के 51वें अध्याय के 14 वें श्लोक पर मुचुकुन्द् महाराज की गुफा का उल्लेख है। जिसमें महाराज मुचकुंद सोये हुये थे। कालयवन श्री कृष्ण का पीछा करता हुआ आ रहा था, तब श्री कृष्ण ने अपना पीताम्बर वस्त्र गुफा मेंं सो रहे मुचुकुन्द महाराज पर डाल दिया। कालयवन राक्षस ने पीताम्बर वस्त्र ओढे हुए मुचुकन्द महाराज को श्री कृष्ण समझकर लात मार कर उनकी निंद्रा भंग कर दी। उनकी नींद खुली और देवताओं द्वारा दिये वरदान के कारण मुचुकुन्द महाराज के क्रोध से कालयवन भस्म हो गया। तब श्री कृष्ण ने महाराज मुचुकुन्द के नेतृत्व में एक यज्ञ कराया। उस विशाल यज्ञ कुण्ड ही आज मचकुंड सरोवर के रूप में धौलपुर में स्थित है।
धौलपुर के मचकुंड सरोवर पर आयोजित होने वाले वार्षिक लकी मेले का आगाज रविवार आठ सितम्बर को प्रातः संतो के शाही स्नान से होगा। मचकुंड सरोवर क्षेत्र स्थित प्राचीन मंगलवार की हनुमान मंदिर से शाही स्नान के लिए संत पूरे दल-बल और वैदिक रीति के साथ कूच करेंगे। इसके बाद मचकुंड सरोवर में संतों का शाही स्नान होगा। कुंभ मेले की तर्ज पर होने वाले शाही स्नान के बाद संत और महंत अपने गुरुजनों का पूजन अर्चन भी करेंगे। ऋषि पंचमी के पर्व पर श्रद्धालु महिलाएं पौराणिक कथा सुनकर संतों को भोजन करा मंदिरों पर दान पुण्य करेंगी।
मचकुंड के वार्षिक लक्खी मेले के दूसरे दिन बलदेव छठ के मौके पर मचकुंड सरोवर पर पर्व स्नान कर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाएंगे। सरोवर में पर्व स्नान के बाद श्रद्धालु वैवाहिक रस्म के दौरान सिर पर पहने जाने वाले वर-वधु के मोहर एवं मोहरियों को सरोवर के पवित्र जल में विसर्जित कर उनके सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करेंगे। इस मौके पर मचकुंड महाराज समेत अन्य मंदिरों पर विशेष पूजा का आयोजन भी होगा।
मचकुंड मेले के दौरान श्रद्धालु मचकुंड सरोवर क्षेत्र में बने प्राचीन गुरुद्वारा शेर शिकार दाताबंदी छोड़ में अपनी हाजिरी लगाते हैं और लंगर चखते हैं। इस गुरुद्वारे में सालाना जोड़ मेला प्रतिवर्ष सिक्खों के छठवें गुरु हरगोविंद साहेब महाराज की मचकुंड यात्रा के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है। गुरुद्वारे के प्रमुख संत ठाकुर सिंह घोड़े वाले ने बताया कि गुरु हरगोविंद साहेब महाराज 4 मार्च 1612 को मचकुंड आए थे। उन्होंने 5 मार्च को मचकुंड में शेर का शिकार किया था। इसलिए गुरुद्वारे का नाम शेर शिकार गुरुद्वारा है।
तीर्थराज मचकुंड सरोवर पर आयोजित होने वाले मेले के दौरान ही शाह अब्दाल शाह बाबा का सालाना उर्स भी आयोजित होता है। दो दिन तक चलने वाले सालाना उर्स मौके पर शाह अब्दाल शाह बाबा की दरगाह पर चादरपोशी, मुशायरा, कव्वाली तथा कुल की रस्म जैसे आयोजन होते हैं। सालाना उर्स में देश के विभिन्न शहरों से बड़ी संख्या में जायरीन शिरकत करते हैं। मचकुंड सरोवर में स्थान गुरुद्वारा में हाजिरी तथा दरगाह पर जियारत के बाद कौमी एकता का यह पूरा चक्र संपन्न होता है।