हल्द्वानी, 6 अप्रैल । देवभूमि उत्तराखंड में भगवान राम के प्रसिद्ध 18 मंदिर हैं। जिसमें से 08 मंदिर कुमाऊं मंडल में हैं। इनमें से अल्मोड़ा में स्थित रामशिला मंदिर में तो भगवान राम की चरण पादुका तक हैं।
कुमाऊं में भगवान राम के 8मंदिर स्थित हैं। इनमें नैनीताल जिले में ही 3राम मंदिर हैं, जिसमें से एक हल्द्वानी, एक रामनगर और एक गर्मपानी में स्थित है। वहीं अल्मोड़ा में चंद्र राजाओं द्वारा स्थापित किया गया राम मंदिर है, जहां भगवान राम की चरण पादुकाएं हैं। चंपावत में 2राम मंदिर हैं। बागेश्वर जिले के ठाकुरद्वारा और पिथौरागढ़ के गंगोली में भी भगवान राम का मंदिर मौजूद है।
रामशिला मंदिर : यहां मौजूद हैं भगवान राम के शिला रूपी चरण
अल्मोड़ा में स्थित रामशिला मंदिर में भगवान राम की चरण पादुकाएं मौजूद हैं। यहां भगवान राम के शिला रूपी चरण दिखते हैं। इस मंदिर की स्थापना राजा रुद्रचन्द ने साल 1588 में अल्मोड़ा के मल्ला महल में करवाई थी। मंदिर का इतिहास 400 साल से भी ज्यादा पुराना है। तभी से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है।
दरअसल अल्मोड़ा जिला मुख्यालय स्थित यह एतिहासिक मंदिर समूह उत्तर मध्यकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर समूह के केंद्रीय कक्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के युगलचरण अंकित हैं। इन्हें भगवान श्रीराम का पद चिह्न् माना जाता है। मंदिर के दीवारों में उकेरी गई देव प्रतिमाएं व शिला चित्रांकन इसकी पुष्टि करते है।
इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर गजलक्ष्मी की मूर्ति उकेरी गई है, साथ ही बाह्य भित्तियों पर 12 राशियों का सुंदर चित्रांकन है। मंदिर में ब्रह्मा, गणेश व नवदुर्गा की सुंदर प्रतिमाओं को भी उकेरा गया हैं। यह मंदिर लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है। हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पूजा अर्चना के लिए यहां अनेक श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर कुमाऊं की पाषाण कला में उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
नंदा देवी मंदिर, अल्मोड़ा के पूजारी हरीश जोशी का कहना है कि उत्तराखंड में 18 भगवान श्रीराम के प्रसिद्ध मंदिर हैं। ये सभी बेहद खास हैं। जहां तक अल्मोड़ा के रामशिला मंदिर की बात है तो भगवान श्रीराम का पद चिह्न् यहां साफ तौर से देखने को मिलता है। इसके अलावा गढ़वाल के देवप्रयाग में अलकनंदा-भागीरथी नदी के संगम पर मौजूद रघुनाथ मंदिर भी अत्यंत विशेष है, यहीं भगवान श्रीराम ने तपस्या की थी।
कुमाऊं में बनी है देश की पहली रामायण वाटिका
इसके साथ ही वन अनुसंधान केंद्र की ओर से हल्द्वानीमें प्रभु श्री राम की जीवनी दर्शाते हुए देश की पहली रामायण वाटिका की स्थापना करीब 5 साल पहले की जा चुकी है। वाटिका की विशेष बात ये है कि यहां वनस्पतियों के माध्यम से भगवान रामचंद्र की जीवनी को दर्शाया गया है। वन अनुसंधान केंद्र के अनुसार रामायण वाटिका की खास बात ये है कि वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित 140 प्रजातियों में मुख्य रूप से 40 प्रजातियों को अनुसंधान केंद्र में संरक्षित करने का काम किया है। इसमें महत्वपूर्ण पेड़, जड़ी-बूटियों और झाड़ियों की प्रजातियों का रोपण किया गया है।
