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छत्तीसगढ़ जनजातियों के युवागृह

Date : 28-Sep-2022
जनजातियां अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत के कारण छत्तीसगढ़ ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत में विशिष्ट पहचान रखती है |   जनजातियां मेहनत पसंद एवं प्रकृति से लगाव रखती हैं , जनजातीय समाज में अपनी सांस्कृतिक विरासत के हस्तांतरण को विशेष महत्व दिया जाता है। जनजाति युवागृह एक प्रशिक्षण केंद्र है जहां से धार्मिक तथा सामाजिक शिक्षा प्राप्त कर व्यक्ति एक अच्छा सामाजिक जीवन जीने योग्य बनता है। युवागृह में बच्चे अपने रीति रिवाज ,संस्कृति गीत लोकगीत लोक नृत्य आस्था विश्वास से परिचित होते हैं।                                        
जनजातियों को सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता है किंतु आश्चर्य की बात है कि इनके युवागृह जनजातियों के वैचारिक खुले पन को दर्शाता है। युवागृह में युवक युवतियों को अपने जीवनसाथी के चयन में स्वतंत्रता दी गई है।  युवागृह में बच्चे अपने रीति रिवाज ,संस्कृति गीत लोकगीत लोक नृत्य आस्था विश्वास से परिचित होते हैं। युवागृह में सदस्य तथा समूह , आयु तथा लिंग के आधार पर चुना जाता है क्योंकि समान आयु तथा लिंग के विचार आपस में मिलते जुलते हैं । एक निश्चित आयु के बाद लड़के लड़कियों को युवागृह जाना अनिवार्य होता है । प्रत्येक सदस्य विवाह होने तक युवागृह का सदस्य बना रहता है तथा उसे समस्त नियमों को पालन करना पड़ता है, यदि कोई नियमों की अवहेलना करता है अथवा अनुपस्थित होता है तो उसे दंड भी दिया जा सकता है।
युवागृह सामान्यता गांव के बाहर जंगल के मध्य एक विशेष प्रकार का भवन होता है , जिसमें एक मामुली दरवाजा और निचली छत होती है। भवन को बाहरी तौर पर विशिष्ट दिखाने के लिए हर संभव कोशिश की जाती है , भवन की दीवारों को चित्रित किया जाता है। भवन के बाहर एक खुला आंगन भी होता है। युवागृह के अंदर आग जलाकर उसे प्रकाशित और गर्म रखा जाता है। वरिष्ठ सदस्य अपने से छोटों को कला तथा कार्य सिखाने का काम करते हैं। युवागृह के अंदर जो भी कार्य होता है उसे गोपनीय रखा जाता है।
छत्तीसगढ़ जनजातियों के मुख्य युवागृह इस प्रकार है ; मुड़िया माडिया जनजाति के युवागृह को घोटूल कहा जाता है । यहां के पुरुष सदस्यों को चेलिक तथा महिला सदस्यों को मुटियारीन कहा जाता है । पुरुष सदस्य प्रमुख को सिरेदार तथा महिला सदस्य प्रमुख को बेलोसा कहा जाता है। घोटूल में रेला गीत गाया जाता है तथा लिंगोपेन देवता की पूजा की जाती है। उरांव जनजाति के युवागृह को घुमकुरिया कहा जाता है, इसमें युवक को धांगर तथा युवा मुखिया को धांगर महतो कहते हैं , युवती को धांगरीन तथा युवती मुखिया को बारकिन धांगरीन कहते हैं। 13 वर्ष से कम आयु के सदस्य को पुना जोरावर कहते हैं तथा 13 से 18 वर्ष के सदस्यों को मथजूरिया जोरावर कहते हैं।  बिरहोर जनजाति के युवागृह को गीतीओना , भरिया जनजाति के युवागृह को रंगबंग , भुईया जनजाति के युवागृह को घसरवासा , परजा जनजाति के युवागृह को घांगाबक्सर कहा जाता है। जनजातियों के युवागृह और परंपराओं में स्थानों के हिसाब से भिन्नता पाई जाती है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि युवागृह एक विद्यालय की तरह कार्य करता है जहां पर युवाओं को सभी प्रकार शिक्षा प्रदान की जाती है जो उनके सामाजिक जीवन को मजबूत आधार प्रदान करता है। 
 
 
लेखक - सुमित कुमार श्रीवास्तव 
 
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