विजया एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। विजया एकादशी अपने नामानुसार विजय प्रादन करने वाली है। भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता रखता है।
विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु श्रीराम ने भी इस व्रत को धारण करके अपनी विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देती हैं।
विजया एकादशी व्रत एवं पूजन विधि
विजया एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु के पूजन का विधान हैं। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार से हैं
- फाल्गुन मास की विजया एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और संयमित आचरण करना चाहिये।
- विजया एकादशी के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान पर भगवान का ध्यान करके विजया एकादशी के व्रत का संकल्पि लें।
- पूजास्थान पर एक वेदी का निर्माण करें और उस पर उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें। इस व्रत की पूजा में सप्त धान की वेदी या सप्त धान से घट स्थापना की जाती हैं।
- फिर एक कलश में जल भरकर वेदी पर रखें। उस कलश में आम या अशोक के वृक्ष के 5 पत्ते लगायें।
- तत्पश्चात् वेदी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
- धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उनके सिंदूर लगायें, रोली-चावल से तिलक करें, फल-फूल व दूर्वा चढ़ायें। जनेऊ चढ़ाये और भोग लगायें।
- तत्पश्चात् भगवान विष्णुर की पूजा करें। उनको पंचामृत से अभिषेक करायें, रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगायें, पीले रंग के फल-फूल अर्पित करें, तुलसी दल चढ़ाये और भोग लगायें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- इसके बाद विजया एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
- इसके बाद धूप-दीप से भगवान विष्णु की आरती करें।
- संध्या पूजन के समय भगवान विष्णुभ की आरती करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
- इस व्रत में अन्न का सेवन नही करें। सिर्फ फलाहार करें।
- व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
- व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
- इसके बाद व्रत का पारण करे और स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत के नियम
- इस व्रत के दिन सभी व्यसनों से दूर रहें। इस व्रत में जुआ खेलना, मदिरा पीना, आदि निषेध है।
- इस व्रत में रात्रि जागरण अवश्य करें और रातभर भगवान का भजन-कीर्तन करें।
- एकादशी व्रत करने वाले को झूठ नही बोलना चाहिये, किसी पराई वस्तु को नही लेना चाहिये, चोरी नहीं करनी चाहिए, परनिन्दा से बचना चाहिये।
- संयमित आचरण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
- किसी को कटु शब्द नही बोलने चाहिये और क्रोध नही करना चाहिये।
- व्रत करने वाली स्त्री को सिर से स्नान नही करना चाहिये।
जौ-चावल न खाएं
विजया एकादशी के दिन चावल या जौ का सेवन वर्जित हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार माँ कालका के क्रोध से बचने के लिए ऋषि मेधा ने शरीर का त्याग कर धरती के अन्दर समाहित हो गए थे. जिस दिन ऋषि मेधा ने शरीर का त्याग किया वह एकादशी का ही दिन था. जिसके बाद वह चावल और जौ से रूप में पुनः उत्पन्न होते हैं. इसी कारण इस दिन चावल और जौ को जीव का अवतार माना जाता हैं.
ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन चावल का सेवन करना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है. इसी वजह से एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन करना वर्जित माना गया हैं.विजया एकादशी व्रत कथा
एक समय धर्मराज युधिष्ठर ने श्रीकृष्ण से कहा- "हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। श्री भगवान बोले "हे राजन- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम 'विजया एकादशी' है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं।
एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत पिता ब्रह्मा से कहा "महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधान कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे लक्ष्मण तथा सीता सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया, तब इस समाचार से रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमान ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमान ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे। रामचंद्र ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मण से कहा कि "इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।"
लक्ष्मण ने कहा "हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।" लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि "हे राम! आपका आना कैसे हुआ?" रामचंद्रजी कहने लगे कि "हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।" वकदालभ्य ऋषि बोले कि "हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
व्रत के प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में मददगार बना। तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान आज भी सर्वमान्य रहा है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है।
