छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के रामानुजगंज स्थानीय बस स्टैंड से मात्र दो सौ मीटर की दूरी पर कन्हर नदी के तट पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर नगरवासियों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर आजादी से पूर्व निर्मित है और अपनी ऐतिहासिकता व धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। सावन माह में प्रतिदिन सैकड़ों भक्त यहां पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। विशेषकर सावन के सोमवार को सुबह 4 बजे से ही भक्तों का तांता लग जाता है।
महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना के साथ भव्य शिव बारात निकाली जाती है, जो पूरे शहर का भ्रमण करते हुए मां महामाया मंदिर पहुंचकर शिव-पार्वती के विवाह के साथ समाप्त होती है। इस दिन मंदिर प्रांगण में विशाल मेला भी आयोजित होता है, जिसमें शहरवासियों के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों से भी हजारों लोग शामिल होते हैं।
बाबा प्रयाग दास की कुटिया और चमत्कारिक गाय
मंदिर के इतिहास में सिद्ध बाबा प्रयाग दास का विशेष महत्व है। उनकी कुटिया मंदिर के सामने थी, जहां वे हमेशा ध्यानमग्न रहते थे। स्थानीय लोगों के अनुसार, बाबा के पास एक गाय थी, जिसे कामधेनु के नाम से जाना जाता था। इस गाय के दूध से बना भोजन कभी कम नहीं पड़ता था, चाहे कितने ही लोग क्यों न आ जाएं। पूर्व में मंदिर परिसर में अखाड़ा, भजन-कीर्तन और भंडारे का आयोजन नियमित रूप से होता था, जिसमें साधु-संतों का जमावड़ा रहता था।
बताया जाता है कि बाबा प्रयाग दास सरगुजा के महराज के किसी टिप्पणी से नाराज होकर अपनी कुटिया छोड़कर अन्यत्र चले गए थे। उनकी कुटिया को बाद में पूर्व जज चंद्र साहब के सहयोग से पक्के भूमिगत कक्ष में परिवर्तित किया गया, जहां आज भी विशेष अवसरों पर भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
मंदिर का जीर्णोद्धार और वर्तमान स्वरूप
मंदिर का जीर्णोद्धार समय-समय पर समाजसेवियों और स्थानीय निवासियों के सहयोग से किया गया है, जिससे यह आज भव्य स्वरूप में है। मंदिर के प्रथम पुजारी स्वर्गीय नर्मदा प्रसाद पांडे थे और वर्तमान में लक्ष्मीकांत पांडे पुजारी के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं। यह प्राचीन शिव मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी रामानुजगंज का गौरव है। स्थानीय निवासियों के लिए यह एक रमणीय और पवित्र स्थल है, जो उनकी आस्था और परंपराओं को जीवंत रखता है।