प्रत्येक माह पूर्णिमा की रात इस शिव मंदिर की शिखा पर लगे त्रिशूल की दिशा बदल जाती है। इस करामात को देखने के लिए कई बार लोगों ने प्रयास किया लेकिन सामने कुछ नहीं दिखा। सुबह होने पर त्रिशूल की दिशा बदली हुई मिली। त्रिशूल की दिशा बदलना इस मंदिर की महिमा है, जो लोगों को दूर-दूर से अपनी ओर आकर्षित करती है। जी हां, यह विशेषता है यमुनापार में स्थित सोमेश्वरनाथ मंदिर की। हम तो आपसे कहेंगे कि यहां एक बार जरूर जाकर दर्शन और पूजन करें।
शिव के धाम, जहां चढ़ते हैं निशान
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शहर और ग्रामीण अंचल में शिवरात्रि की तैयारी जोरों पर है। शिव मंदिरों और शिवालयों में रंग-रोगन के साथ ही फूलों से सजाया जा रहा है। इसी में से एक प्राचीन, पौराणिक और आस्था के साथ विश्वास का केंद्र यमुना पार में अरैल गंगा तट पर स्थित सोमेश्वर नाथ मंदिर। इन मंदिरों में शिवलिंग स्थापना की अपनी पौराणिक मान्यता, उसी अनुसार महत्व और निशान चढ़ाने की परंपरा भी है। यही ऐसे शिवालय हैं जहां महाशिवरात्रि पर निशान के रूप में ध्वज लेकर लोग दूर-दूर से नाचते गाते हुए आते हैं। यहां शिवलिंग में भक्त शिवजी के मानों साक्षात दर्शन पाते हों।
पौराणिक मान्यता कि चंद्र देव ने की थी सोमेश्वर महादेव की स्थापना
तीर्थराज प्रयाग के अरैल नैनी में सोमेश्वर महादेव मंदिर अनादिकाल से और काफी सिद्ध शिवालय है। पौराणिक गाथा है कि इसकी स्थापना स्वयं चंद्र देव ने क्षयरोग के श्राप से मुक्त होने के लिए की थी। शिवलिंग की स्थापना कर चंद्र देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। भगवान शिव जब प्रगट हुए तो उनके वरदान से चंद्र देव राजा दक्ष के श्राप से मुक्त हुए थे।
आखिर क्यों चंद्र देव को दक्ष ने दिया था श्राप
पुराणों में उल्लिखित है कि राजा दक्ष की 60 बेटियां थी। सभी का चंद्र देव से विवाह हुआ था। चंद्र देव राजा दक्ष की सबसे छोटी बेटी रोहणी पर मोहित हो गए। वे उसके अलावा अन्य को समय नहीं देते थे, जिससे दक्ष की अन्य बेटियां काफी व्यथित हो गई। वे जब मायके गईं तो मां ने उसका कारण पूछा। बेटियों ने सब कुछ साफ-साफ बता दिया। इसकी जानकारी राजा दक्ष को हुई तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने चंद्र देव को क्षयरोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया। श्राप से चंद्र देव घबरा गया।
प्रयागराज में शिवलिंग की स्थापना व शिव तपस्या से मिलेगी श्राप से मुक्ति
श्राप से मुक्त करने के लिए अन्य देवताओं ने राजा दक्ष से गुहार लगाई। राजा दक्ष ने कहा कि चंद्र देव प्रयागराज में शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की तपस्या करेंगे, तो श्राप से मुक्ति मिल सकती है। चंद्र देव ने प्रयाग के अलर्कपुरी (वर्तमान में अरैल) गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर घोर तपस्या की, तब भगवान शिव प्रसन्न हुए थे। वह स्थान बाद में सोमेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
निशान चढ़ाकर जताते हैं खुशी
सोमेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर निशान भी चढ़ाने पहुंचते हैं। इनमें कोई लाल रंग तो कोई पीले रंग की ध्वजा लेकर नाचते गाते आते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां बड़े अनुष्ठान भी होते हैं। दूध दही और गंगा जल से अभिषेक होता है तथा भंडारे के आयोजन भी होते हैं।