संत गहिरा गुरु: एक युगद्रष्टा जिन्होंने आदिवासी समाज को आत्मगौरव दिया | The Voice TV

Quote :

बड़ा बनना है तो दूसरों को उठाना सीखो, गिराना नहीं - अज्ञात

Editor's Choice

संत गहिरा गुरु: एक युगद्रष्टा जिन्होंने आदिवासी समाज को आत्मगौरव दिया

Date : 24-Jul-2025

संत गहिरा गुरु, जिनका मूल नाम रामेश्वर कंवर था, छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव गहिरा में जन्मे एक महान संत, समाज-सुधारक और जनजागरण के अग्रदूत थे। उनका पूरा जीवन सेवा, सादगी और सामाजिक बदलाव के लिए समर्पित रहा, खासकर आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए।

उन्होंने 1943 में "सनातन धर्म संत समाज" की स्थापना की, जो आदिवासी क्षेत्रों में धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बना। उनका उद्देश्य था कि आदिवासी समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को पहचाने और आत्मगौरव के साथ जीवन जिए। उन्होंने वैदिक परंपराओं, संस्कृत शिक्षा और स्वच्छता के महत्व को समझाया और इसका प्रचार-प्रसार किया।

संत गहिरा गुरु ने रामचरितमानस के सामूहिक पाठ, पारंपरिक मेलों के आयोजन और छः-शः संस्कारों के प्रचार जैसे माध्यमों से समाज को सनातन धर्म से जोड़ा। उनका विश्वास था कि हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश होता है और सही दिशा, शिक्षा और प्रेरणा मिलने पर समाज में चमत्कारी परिवर्तन संभव है।

उन्होंने विशेष रूप से उरांव आदिवासी समुदाय को यह कहकर प्रेरित किया कि वे महाभारत के वीर घटोत्कच के वंशज हैं, जिससे उनमें गर्व और आत्मसम्मान की भावना जगी। उनके इस दृष्टिकोण ने आदिवासी समाज में नई चेतना और आत्मबल का संचार किया।

संत गहिरा गुरु का जीवन अत्यंत सरल, सात्विक और अनुकरणीय था। वे दिखावे से दूर रहते हुए ग्रामीण और वनवासी समुदायों के बीच रहकर, उन्हीं की भाषा में संवाद करते हुए उन्हें शिक्षित और जागरूक करते रहे। उनके लिए अध्यात्म का अर्थ केवल साधना नहीं, बल्कि समाज सेवा और नैतिक मूल्यों के पालन का मार्ग था।

उनकी शिक्षाओं और जीवनशैली ने हजारों लोगों को नई दिशा दी। छत्तीसगढ़ सहित आसपास के क्षेत्रों में आज भी उन्हें भगवान का अवतार माना जाता है। वे एक ऐसे युगद्रष्टा संत थे जिन्होंने अध्यात्म और जनसेवा को एक सूत्र में बांधकर समाज में चेतना और बदलाव की मिसाल कायम की।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement