विक्रम संवत् 2082 श्रावण कृष्ण पक्ष की उदया तिथि अमावस्या तदनुसार 24 जुलाई को गुरुवार का दिन है, जो सनातन में हरियाली अमावस्या के नाम से शिरोधार्य है।हरियाली अमावस्या को जहाँ विविध धार्मिक प्रयोजनों के लिए अतीव कल्याणकारी है तो वहीं दूसरी ओर भारतीय पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण दिवस के नाम से प्रसिद्ध है।
सच तो यह है कि 5 जून को भारत में विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का कोई औचित्य समझ नहीं आता है क्योंकि 5 जून को भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है इसलिए पौधारोपण और अन्य प्रयोजनों के लिए अनुकूल वातावरण ही नहीं होता है। अतः हम सभी भारतीयों के लिए हरियाली अमावस्या ही विश्व पर्यावरण दिवस होना चाहिए।
वस्तुतः हरियाली अमावस्या का आध्यात्मिक रुप से महादेव के "शिव शंकरी(उमा शंकरी)" स्वरुप से गहरा संबंध है। शैवोपासक शाक्त परंपरा में तो शिव शंकरी संप्रदाय भी है।उत्तराखंड चमोली में कर्ण प्रयाग में उमा शंकरी का मंदिर,कैलहट में शिव शंकरी धाम, तथा भेड़ाघाट जबलपुर में मंदिर भी हैं। जबलपुर में तो कलचुरि वंश के राजाओं ने हरियाली अमावस्या पर उमा महेश्वर की प्रतिमाओं की स्थापना और सिक्के भी जारी किए थे।
श्रीलंका में 'शांति के स्वर्ग' के नाम शिव शंकरी स्वरूप का मंदिर है। ऐंसी मान्यता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना स्वयं रावण ने की थी। यहां भगवान शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का महत्व शिव और शक्ति, दोनों की पूजा में है। दरअसल, इस भव्य मंदिर को 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था, जिसके बाद इसके एकमात्र स्तंभ के अलावा यहां कुछ भी नहीं था।
स्थानीय लोगों के अनुसार, दक्षिण भारत के तमिल चोल राजा कुलाकोट्टन ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तो 1952 में श्रीलंका में रहने वाले तमिल हिंदुओं ने इसे वर्तमान स्वरूप दिया। आदिशक्ति यहां शंकरी के रूप में स्थित हैं जो शिव की अर्धांगिनी हैं। खड़ी मुद्रा में स्थित इस प्रतिमा के 4 हाथ हैं। उनके चरणों के समीप ताम्बे का दो आयामी श्री चक्र रखा हुआ है। वहीं उनकी प्रतिमा के समक्ष तीन आयामी श्री चक्र खड़ा है।पंच ईश्वरम् अर्थात 5 प्रमुख शिव मंदिरों में से एक कोनेश्वरम मंदिर भी निकट ही स्थित है। थिरुकोनेश्वरम के नाम से भी जाना जाता यह मंदिर त्रिंकोमाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह कम से कम रामायण के युग से अस्तित्व में है क्योंकि रावण एवं उसके इस मंदिर से सम्बन्ध की कई कथाएं सुनी गई हैं।
एक कथानुसार रावण का अनुग्रह स्वीकार करते हुए पार्वती शंकरी देवी के रूप में यहीं स्थिर हो गईं। भगवान शिव उनके संग यहां कोनेश्वर अर्थात पर्वतों के देव के रूप में निवास करते हैं। कुछ लोग थिरुकोनेश्वर का अर्थ ‘त्रिकोण + ईश्वर’ अर्थात ‘तीन पर्वतों के ईश्वर’ भी मानते हैं।
हमारे शास्त्रों में शिव शंकरी - उमा शंकरी के प्राकट्य का अत्यंत सुंदर वर्णन है। जब शिव पार्वती के स्वरुप में अभिव्यक्त होते हैं।
यह रहस्योद्घाटन बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यम् के इस मंत्र का सार है और प्रजापति की इच्छा का प्राकट्य है -" स वै नैव रेमे तस्मादेकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत् स हैतावानास यथा स्त्रीपुमांसौ सम्परिष्वक्तौ स इममेवात्मानं द्वेधाऽपातयत् ततः पतिश्च पत्नी चाभवतां तस्मादिदमर्धबृगलमिव स्व इति ह स्माह याज्ञवल्क्यस्तस्मादयमाकाशः स्त्रिया पूर्यत एव तां समभवत् ततो मनुष्या अजायन्त ॥ ३ ॥"
"महाप्रलय के उपरांत एकाकी शिव ने पार्वती के स्वरुप में अभिव्यक्त कर अद्वैत को द्वैत किया परंतु वास्तव में वह अद्वैत है। ब्रह्म के साधारण अर्थ में शिव ही पार्वती हैं और पार्वती ही शिव जैंसे दूध और उसकी सफेदी, अग्नि और दाहिका, शब्द और अर्थ, कस्तूरी और सुगंध, कपूर और सुगंध आदि।
हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना है, साथ ही इस दिन पौधारोपण और प्रकृति संरक्षण को प्रोत्साहित किया जाता है। हरियाली अमावस्या का धार्मिक महत्व अनेक पुराणों और शास्त्रों में वर्णित है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का श्रेष्ठ समय माना जाता है।
हरियाली अमावस्या के दिन पौधारोपण का विशेष महत्व है। इस दिन पेड़-पौधे लगाने से पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ धार्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है। यह मान्यता है कि इस दिन पौधारोपण करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और घर-परिवार में शांति बनी रहती है। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। अन्न, वस्त्र, और धन का दान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। निर्धनों और असहायों को भोजन कराना और उन्हें वस्त्र
दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
लेखक - डॉ. आनंद सिंह राणा,