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बागपत का पुरामहादेव मंदिर: जहां महर्षि परशुराम के तप से प्रकट हुए भोलेनाथ

Date : 01-Aug-2025

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हिंडन (हरनंदी) नदी के तट पर स्थित पुरामहादेव मंदिर न केवल भव्यता में अद्वितीय है, बल्कि यह सनातन धर्म की आस्था का एक अत्यंत पवित्र केंद्र भी है। सावन मास के दौरान यहां लाखों श्रद्धालु दूर-दराज से आकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं और अपने जीवन को धन्य मानते हैं।

यह स्थान पौराणिक मान्यताओं और ऐतिहासिक प्रमाणों दोनों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि इसी क्षेत्र में महर्षि जमदग्नि—जो परशुराम के पिता थे—का आश्रम था। उन्होंने यहीं पर गहन तपस्या की थी, और यही स्थान आगे चलकर "खेड़ा" के नाम से जाना गया। प्राचीन ग्रंथों और लोककथाओं में इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है।

महर्षि परशुराम ने भी यहीं पर अपना गुरुकुल स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है कि भीष्म पितामह और दानवीर कर्ण जैसे महान योद्धाओं ने भी इस गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की थी। खेड़ा से कुछ ही दूरी पर, हिंडन नदी के तट पर, परशुराम जी ने कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए। परशुराम जी ने शिव से विनती की कि वे लोक कल्याण के लिए यहीं पिंडी रूप में विराजमान हों। भगवान शिव ने "तथास्तु" कहकर वहां पिंडी के रूप में अपनी स्थायी उपस्थिति स्थापित कर दी।

इसी कारण यह स्थान परशुरामेश्वर महादेव या पुरामहादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मान्यता है कि इस स्थान पर जलाभिषेक और पूजा-अर्चना करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

मंदिर का भौगोलिक विवरण:

  • यह स्थल करीब 28 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है।

  • बागपत से दूरी: 20 किमी

  • मेरठ से दूरी: 25 किमी

  • बालैनी से दूरी: 3 किमी

  • परशुराम खेड़ा धाम से मंदिर की दूरी: 250 मीटर

मंदिर की विशेषताएं:

  • मंदिर की ऊंचाई: 111 फुट

  • चौड़ाई: 101 फुट

ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण:
गाजियाबाद के मोदीनगर स्थित मुल्तानी मल मोदी कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कृष्णकांत शर्मा ने इस क्षेत्र में पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था। उन्हें यहां चित्रित धूसर मृद्भांड (Painted Grey Ware) मिले, जो इस स्थल की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि यह क्षेत्र वैदिक काल से जुड़ा हुआ है।

मंदिर निर्माण और विकास:
पिछले 15 वर्षों से सूरज मुनि महाराज और देवमुनि महाराज के नेतृत्व में भक्तों के सहयोग से इस मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। शुरुआत में आसपास के 80–85 गांवों से प्रत्येक घर से 2 ईंटें और 30 रुपये एकत्रित किए गए थे। खेड़ा के स्थानीय लोगों ने भी बढ़-चढ़कर सहयोग किया।

अब दिल्ली, हरियाणा और अन्य राज्यों के श्रद्धालु भी इस धार्मिक कार्य में सहयोग दे रहे हैं। मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से आर्थिक सहायता भी प्राप्त हो रही है।

अन्य विशेषताएं:
परशुराम मंदिर खेड़ा में उनकी माता रेणुका द्वारा बनाए गए घड़े के अवशेष भी पाए गए हैं, जो अब मंदिर परिसर के बेसमेंट में संरक्षित हैं। यहां भगवान परशुराम, उनकी माता-पिता और बहन की मूर्तियां स्थापित हैं। इस स्थल पर 24 जनवरी 2013 से अखंड ज्योति प्रज्वलित है। इसी दिन से मंदिर निर्माण का कार्य भी आरंभ हुआ था।

पुरामहादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक है। यह स्थल श्रद्धालुओं के लिए शांति, ऊर्जा और दिव्यता का अनुभव कराने वाला एक अनोखा तीर्थ बन चुका है।

 
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