रायपुर, (हि.स.)। विभिन्न संस्कृतियों का केंद्र रहा छत्तीसगढ़ आज भी अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। प्राचीन भारत के दौर से ही भारत को गौरवान्वित करने के बाद आज भी छत्तीसगढ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। एक नवंबर, 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया था। इसका पौराणिक नाम कौशल राज्य (भगवान श्रीराम की ननिहाल) है। गोंड जनजाति के शासनकाल के दौरान लगभग 300 साल पहले से इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ रहा है।
छत्तीसगढ़ भारत का एकमात्र राज्य है, जिसे ‘महतारी’ (मां) का दर्जा प्राप्त है। छत्तीसगढ़ वैदिक एवं पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केंद्र रहा है। यहां के प्राचीन मंदिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहां पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। विभिन्न संस्कृतियों का केंद्र रहा छत्तीसगढ़ आज भी अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। प्राचीन भारत के दौर से ही भारत को गौरवान्वित करने के बाद आज भी छत्तीसगढ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया था, साल 2000 में जुलाई में लोकसभा एवं अगस्त में राज्यसभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी। इसके बाद 4 सितंबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26वें राज्य के रूप में दर्ज हो गया। इस इलाके की भाषा को छत्तीसगढ़ी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ी के अलावा भी राज्य में माढ़िया, हल्बी, गोंडी जैसी भाषा बोली जाती हैं।
छत्तीसगढ़ नाम के इर्द-गिर्द कई कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि करीब 300 साल पूर्व गोंड जनजाति के शासनकाल में यहां गोंड राजाओं के 36 किले थे, जिनके आधार पर इसे छत्तीसगढ़ नाम दिया गया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कल्चुरी राजाओं द्वारा 36 किलों (शिवनाथ नदी के उत्तर में कलचुरियों की रतनपुर शाखा के 18 गढ़ और दक्षिण में रायपुर शाखा के 18 गढ़) को मिलाकर इसे छत्तीसगढ़ नाम दिया गया था। इससे पूर्व इस पूरे क्षेत्र को कौशल राज के नाम से जाना जाता था। ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि कल्चुरी राजाओं द्वारा 36 किले या कई गांवों को मिलाकर गढ़ बनाए गए थे। इस इलाके को कोसल या दक्षिण कोसल के तौर पर जाना जाता था। ये उस समय की बात है जब रामायण काल से 17वीं शताब्दी का दौर चल रहा था। ध्यान देने वाली बात ये है कि राजाओं के समय में छत्तीसगढ़ की राजधानी बिलासपुर के पास स्थित शहर रतनपुर, कल्चुरी हुआ करती थी।
अधिकांश इतिहास कारों का मत है कल्चुरी राजाओं ने 36 किले बनाए। कुछ का कहना है कि कई गांवों को मिलाकर 36 गढ़ बनाए गए थे। वर्तमान समय में चैतुरगढ़, रतनपुर में किलों के साक्ष्य मौजूद हैं। इतिहासकार रमेंद्र नाथ रायपुर शहर के बूढ़ापारा इलाके में किला होने का दावा करते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार बसंत तिवारी की किताब में इतिहासकार कनिंघम की बातों का जिक्र मिलता है। इसके मुताबिक कलचुरी वंश के चेदीराजा यहां के मूल निवासी थे। इस क्षेत्र का नाम चेदिदेश हुआ करता था।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों में रतनपुर, विजयपुर, पंडर भट्टा, पेंड्रा, केन्दा, बिलासपुर, खरौद, मदनपुर (चांपा), कोटगढ़, कोसगई (छुरी), लाफागढ़ (चैतुरगढ़), उपरोड़ागढ़, मातिनगढ़, करकट्टी-कंड्री, मारो, नवागढ़, सेमरिया, रायपुर, सिमगा, ओमेरा, राजिम, फिंगेश्वर, लवन, पाटन, दुर्ग, सारधा, सिरसा, अकलबाड़ा, मोहंदी, खल्लारी, सिरपुर, सुअरमार, सिंगारपुर, टैंगनागढ़, सिंघनगढ़ शामिल थे।
छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विरासत में समृद्ध है। राज्य में एक बहुत ही अद्वितीय और जीवंत संस्कृति है। इस क्षेत्र में 35 से अधिक बड़ी और छोटी रंगो से भरपूर जनजातियां फैली हुई हैं। उनके लयबद्ध लोक संगीत, नृत्य और नाटक देखना एक आनंददायक अनुभव है जो राज्य की संस्कृति में अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है।
छत्तीसगढ़ की वर्तमान भौगौलिक सीमा सरगुजा से लेकर बस्तर तक शिवोपासना के प्राचीन अवशेष प्राप्त होते हैं। सरगुजा संभाग के पुरातात्विक स्थल डीपाडीह से लेकर बस्तर के बारसूर तक शिवालयों की एक लंबी शृंखला दिखाई देती है। सिरपुर के पाण्डुवंशी शासक पूर्व में वैष्णव थे, फ़िर महाशिवगुप्त बालार्जुन ने परम महेश्वर की उपाधि धारण की, पूर्व के राजा परम भागवत उपाधि धारण करते थे।
छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक समय तक कल्चुरि राजवंश ने शासन किया। इस काल मे शैवधर्म को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। वे शिव भक्त थे। अनुमानित तथ्यों के अनुसार कल्चुरि शासकों ने अपने इष्ट देव शिव के लिए कई शिवालयों का निर्माण कराया। इन्होंने शिव के चंद्रशेखर, उमामहेश्वर, नटराज, त्रिपुरांतक, नीलकंठ आदि रुपों का शिल्पांकन करवाया।
वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहां पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहां के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बनाकर निवास करते थे। अपने वनवास की अवधि में राम यहां आये थे। इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन् 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी।
महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ की मौजूदा राजधानी रायपुर का इतिहास हजारों साल पुराना है। रायपुर आज दुनिया में आकर्षण का केंद्र बन गया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद इसकी राजधानी को लेकर काफी चर्चा हुई थी। पहले बिलासपुर को राजधानी माना जाता था, क्योंकि उस समय बिलासपुर वर्तमान राजधानी की तुलना में अधिक विकसित था, लेकिन फिर काफी विचार-विमर्श के बाद रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी घोषित किया गया।जब राज्य का निर्माण हुआ था, उस वक्त यहां महज एक मेडिकल कॉलेज हुआ करता था। लेकिन आज इसकी संख्या बढ़कर आधे दर्जन से भी अधिक हो गई है। प्रदेश में आईआईएम , आईआईटी, ट्रिपल आईटी , एनआईटी , एम्स, लॉ यूनिवर्सिटी जैसी कई बड़ी संस्थाएं खुल गई हैं. इसके अलावा स्कूली शिक्षा में भी काफी विकास हुआ है।
छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस एक नवम्बर को मनाया जाता है। इस दिन राज्योत्सव के साथ ही आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। राज्य में राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का यह तीसरा आयोजन है। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के लिए देश के सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के साथ ही 9 देशों के 1500 आदिवासी कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। इन कलाकारों में देश के 1400 और विदेशों के 100 प्रतिभागी शामिल होंगे।
हिन्दुस्थान समाचार/ केशव शर्मा
