बैगा भारत में पाई जाने वाली एक आदिवासी जनजाति है. यह जनजाति भारत के सबसे प्राचीनतम आदिवासी समूहों में से एक है.यह घने जंगलों, पहाड़ी इलाकों और दुर्गम स्थानों पर निवास करने वाली जनजाति है. जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से कृषि और वन संसाधनों पर निर्भर हैं. बैगा जनजाति के लोग पहले जंगलों को काटकर और उसे जलाकर ‘बेवर खेती’ किया करते थे. लेकिन अब यह पहाड़ी ढलानो पर स्थाई खेती करते हैं. यह जंगलों से कंदमूल, तेंदूपत्ता, लाख, गोंद, शहद, लकड़ी आदि इकट्ठा करके स्थानीय बाजारों बेचते हैं. यह बांस की टोकरी और सूप बनाकर भी बेचते हैं. आइए जानते हैं बैगा जनजाति का इतिहास, बैगा शब्द की?
भारत सरकार की सकारात्मक भेदभाव की व्यवस्था आरक्षण के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. घटती आबादी, साक्षरता के निम्न स्तर और विकास की धीमी रफ्तार को देखते हुए सरकार ने इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य में विशेष पिछड़ी जनजाति समूह वर्गीकृत किया है.
बैगा की जनसंख्या, कहां पाए जाते हैं?
यह मध्य भारत में पाए जाते हैं और मुख्य रूप से मध्य प्रदेश राज्य में निवास करते हैं. मध्य प्रदेश के मंडला, डिंडोरी, शहडोल, बालाघाट और जबलपुर और जिलों में इनकी बहुतायत आबादी है. मध्य प्रदेश से सटे राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी इनकी थोड़ी बहुत आबादी है. छत्तीसगढ़ में या मुख्य रूप से कबीरधाम और बिलासपुर जिले में पाए जाते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ में इनकी आबादी 89,784 दर्ज की गई थी.
बैगा धर्म, उप-विभाजन, भाषा
यह हिंदू और स्थानीय है लोक धर्म को मानते हैं. यह हिंदू देवताओं के साथ-साथ, प्रकृति (वृक्ष आदि) और स्थानीय देवताओं जैसे बूढ़ा देव और दूल्हा देव की पूजा करते हैं.
बैगा जनजाति की उपजाति
यह जनजाति कई उप जातियों में विभाजित है, जिनमें कुछ उपजातियां इस प्रकार हैं-नरोतिया, भरोतिया,
बिझवार, राय भैना, काढ भैना और नाहर.
भाषा
मुख्य रूप से हिंदी, छत्तीसगढ़ी और स्थानीय भाषा बोलते हैं
बैगा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
इनकी उत्पत्ति के बारे में ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. इन्हें भुइयां का एक अलग समूह माना जाता है.
एक अन्य किवदंती के अनुसार, सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने दो व्यक्तियों को उत्पन्न किया. एक को ब्रह्मा जी ने “नागर” ( हल) प्रदान किया, जबकि दूसरे को “टंगिया” (कुल्हाड़ी) दिया. नागर हेलो लेकर खेती करने लगा और गोंड कहलाया. टंगिया कुल्हाड़ी लेकर जंगल काटने लगा. क्योंकि उस समय कपड़े नहीं थे, वह नंगा बैगा कहलाया. बैगा जनजाति के लोग इसी नंगा बैगा को अपना पूर्वज मानते हैं.
सारांश
बैगा जनजाति मध्यप्रांत के जनजातियों में विशेष स्थान रखता है। इस जनजाति के विकास स्तर को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने इसे विशेष पिछड़ी जनजाति समूह में रखा है। विशेष पिछड़ी जनजाति होने के कारण बैगा जनजाति को सरकार का सरक्षण प्राप्त है जिसके फलस्वरूप इस जनजाति के लिए अनेक शासकीय योजनाये चलाये जा रहें है। बैगा जनजाति जितनी प्राचीन जनजाति है उतनी ही प्राचीन बैगाओं की संस्कृति भी है। बैगा जनजाति अपने संस्कृति को संजोये हुए है। इनका रहन-सहन, खान-पान अत्यंत सादा होता है। बैगा जनजाति के लोग वृक्ष की पूजा करते है तथा बूढ़ा देव एवं दूल्हा देव को अपना देवता मानते है। बैगा झाड़ फूक एवं जादूटोना में विश्वास करते है। इनकी वेशभूषा अत्यंत अल्प होती है। बैगा पुरुष मुख्य रूप से एक लंगोट तथा सर पे गमछा बांधते है, वहीं बैगा महिलाएं एक साड़ी तथा
पोलखा का प्रयोग करते है। किन्तु वर्तमान समय में मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान युवक शर्ट-पैंट का भी प्रयोग करने लगे है। बैगा जनजाति की महिलाएं आभूषण प्रिय होती हैं। बैगा महिलाएं आभूषण के साथ-साथ गोदना भी गुदवाती है। इनकी संस्कृति में गोदना का अत्यधिक महत्व है। बैगा महिलाएं शरीर के विभिन्न हिस्से में गोदना गुदवाती हैं। बैगा जनजाति का मुख्या व्यवसाय वनोपज संग्रह, पशुपालन, खेती तथा ओझा का कार्य करना है। आधुनिकता के दौर में बैगा जनजाति की संस्कृति में भी आधुनिकता का समावेश हो रहा है। बैगा अब सघन वन, कंदराओं तथा शिकार को छोड़ कर मैदानी क्षेत्रों में रहना तथा कृषि कार्य करना प्रारंभ कर रहे है। किन्तु बैगा अपने आप को जंगल का राजा और प्रथम मानव मानते है, इनका मानना है कि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है। बैगाओं के उत्पत्ति के संबंद में अनेक किवदंतियाँ भी विद्मान है, इन किवदंतियों के माध्यम से ये अपने उत्पत्ति संबंधी अवधारणाओं को संजो कर रखे हुवे है। बैगा अपने आप को आदिम पुरुष कहते है, उनका मानना है की वही पृथ्वी का प्रथम मानव है। बैगाओं का ही जन्म सर्वप्रथम हुआ है, वे ही पृथ्वी मे मानव जाति को लाने वाले है उनका सम्बन्ध प्रथम मानव से है। इस प्रकार इस शोध पत्र के माध्यम से बैगाओं के उत्पत्ति संबाधित अवधारणाओं का ऐतिहासिक विश्लेषण किया किया गया है।शब्दकुंजी - गमछा, पोलखा, गोदना, ओझा, बेवर, कंदरा, कुल्हाड़ी, मंद, पगडण्डी, मीनार, नागा, भुईयां, वैद्य, लंगोट
1. प्रस्तावनाः
बैगा जनजाति द्रविड़ समूह की एक आदिम जनजाति है। यह जनजाति भारत की अत्यंत ही प्राचीन जनजातियों में से एक है। बैगा भारत के आठ राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में निवास करते है। बैगा जनजाति अपनी अनूठी सामजिक व्यवस्था एवं संस्कृति के लिए जानी जाती है। मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के आदिम जनजाति समूहों में से एक जनजाति बैगा है। बैगा जनजाति जितनी प्राचीन जनजाति है उतनी ही प्राचीन बैगाओं की संस्कृति भी है। बैगा जनजाति अपने संस्कृति को संजोये हुए है। इनका रहन-सहन, खान-पान अत्यंत सादा होता है। बैगा जनजाति के लोग वृक्ष की पूजा करते है तथा बूढ़ा देव एवं दूल्हा देव को अपना देवता मानते है। बैगा झाड़-फूक एवं जादू-टोना में विश्वास करते है। इनकी वेश-भूषा अत्यंत अल्प होती है। बैगा पुरुष मुख्य रूप से एक लंगोट तथा सर पे गमछा बांधते है, वहीं बैगा महिलाएं एक साड़ी तथा पोलखा का प्रयोग करते है। किन्तु वर्तमान समय में मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान युवक शर्ट-पैंट का भी प्रयोग करने लगे है। बैगा जनजाति की महिलाएं आभूषण प्रिय होती हैं। बैगा महिलाएं आभूषण के साथ-साथ गोदना भी गुदवाती है। इनकी संस्कृति में गोदना का अत्यधिक महत्व है। बैगा महिलाएं शरीर के विभिन्न हिस्से में गोदना गुदवाती हैं। बैगा जनजाति का मुख्या व्यवसाय वनोपज संग्रह, पशुपालन, खेती तथा ओझा का कार्य करना है। आधुनिकता के दौर में बैगा जनजाति की संस्कृति में भी आधुनिकता का समावेश हो रहा है। बैगा अब सघन वन, कंदराओं तथा शिकार को छोड़ कर मैदानी क्षेत्रों में रहना तथा कृषि कार्य करना प्रारंभ कर रहे है। किन्तु बैगा अपने आप को जंगल का राजा और प्रथम मानव मानते है, इनका मानना है कि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है।
बैगा जनजाति का ऐतिहासिक अवलोकन
बैगा जनजाति के सम्बन्ध में सर्वप्रथम 1778 ई० में ब्लूम फील्ड ने निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है-
1. बैगा जंगल काटकर बेवर खेती करते है।
2. ये ओझा का कार्य करते है और जंगली जड़ी-बूटी से रोगों का उपचार करते है।
3. ये लोग बांस से चटाई और अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते है।
4. साथ ही साथ जंगलों से शहद, कंदमूल और हर्रा इकट्ठा करते है तथा शिकार करना और मछली पकड़ने का कार्य करते है
इसी प्रकार 1867 ई० में कैप्टन थामस ने बैगा जनजाति के बारे में लिखा है कि बैगा जनजाति बहुत ही पिछड़ी अवस्था में है और सभ्य मनुष्य के संपर्क में आने से डरती है। कर्नल वार्ड की मंडला सेटलमेंट रिपोर्ट (1870 ई०) से जानकारी मिलती है कि ये जनजाति जंगली अवस्था में रहते है और अपने समूह के साथ स्वतंत्र रूप से रहना पसंद करते है।
1872 ई० में कैप्टन जे० फोरसिथ द्वारा लिखित पुस्तक ‘द हाइलैंड आफ सेन्ट्रल इंडिया’ में बैगा जनजाति के बारे में उल्लेख किया गया है कि ये जनजाति दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते है। इस जनजाति के पुरुष केवल एक लम्बा लंगोट धारण करते है, इसके बाल कोयले की तरह काले होते है। इनके कंधो पर तीर-कमान व कुल्हाड़ी टंगे होते है।
सन 1916 ई० में प्रकाशित ‘द ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द सेन्ट्रल प्रोविन्स ऑफ इंडिया’ में रसेल एवं हीरालाल ने बैगा जनजाति के बारे में काफी वर्णन किया है। इनके अनुसार बैगा आदिम द्रविड़ समूह की जनजाति है, जो मध्य भारत के मंडला, बालाघाट एवं बिलासपुर जिले के सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में निवास करती है तथा इनके निवास स्थान ऊँचे तथा घने जंगलों में होते है जहाँ पहुँचने के लिए एक मात्र पगडण्डी दिखाई देती है। इस कारण से ये कभी-कभी दिखाई देते है जब उन्हें बनिए से या मंद विक्रेता से काम होता है।
सन 1931 ई० में डब्लू०एच० शूबर्ट ने ‘सुपरिटेंडेंट ऑफ सेन्सस ऑपरेशन, सेन्ट्रल प्रोविसन एंड बरार’ में बैगा जनजाति के सम्बन्ध में उल्लेख किया है कि बैगा अब केवल लंगोट न पहनकर कुछ कपड़ों का भी प्रयोग करने लगे है और धीरे-धीरे इनके जीवन शैली में परिवर्तन दिखाई दे रहा है।
सन 1939 ई० में वेरियर एल्विन की पुस्तक ‘द बैगा’ में बैगा जनजाति के बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। इस पुस्तक में बैगा जनजाति के जीवन से संबंधित प्रत्येक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है इसके अनुसार बैगा जनजाति आदिम जनजाति है और यह जनजाति एकांत जीवन निर्वाह करना पसंद करती है।
इसी प्रकार बैगा जनजाति के आर्थिक पहलुओं का विवरण डी०एस० नाग ने सन 1958 ई० में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘ट्राइबल इकोनामी (ए स्टडी ऑफ द बैगा)’ में किया है। इस प्रकार ऐतिहासिक अवलोकन से ज्ञात होता है कि बैगा जनजाति एक आदिम जनजाति है। बैगाओं की उत्पत्ति को इतिहास के तथ्यों द्वारा प्रमाणित करना संभव नहीं है, केवल बैगा जनजाति में उत्पत्ति सम्बंधित प्रचलित लोक कथाओं के आधार पर इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि बैगा जनजाति की उत्पत्ति।
बैगा जनजाति के उत्पत्ति संबंधित किवदंतियाँ एवं अवधारणायेंः
बैगा जनजाति में उनकी उत्पत्ति सम्बंधी अनेक किवदंतियाँ विद्यमान है जैसे-‘प्राम्भ में भगवान ने नागा बैगा और नागी बैगिन को बनाया, नागा बैगा और नागी बैगिन जंगल में रहने चले गये। कुछ समय पश्चात दोनों की दो संताने हुई। पहला संतान बैगा और दूसरा संतान गोंड़। दोनों संतानों ने अपने बहनों से विवाह कर लिया। आगे चलकर मनुष्य जाति की उत्पत्ति इन्ही दोनों दम्पत्तियों से हुई। पहले दंपत्ति से बैगा हुए और दूसरे दंपत्ति से गोंड़ उत्पन्न हुए। बैगा जनजाति अपने आदि पुरुष नागा बैगा को मानते है किन्तु ऐतिहासिक तथ्यों के अभाव होने के कारण नागा बैगा के निवास एवं उत्पत्ति को प्रमाणित करना अत्यंत मुश्किल है। एक बैगा किवदन्ती के अनुसार बैगा जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में यह भी मान्यता है कि - प्रारंभ में पानी ही पानी था भगवान पत्ते में बैठे थे। एक बार भगवान धरती ढूंढे लेकिन धरती मिली नहीं तब ब्रम्हा जी ने अपने छाती के मैल से कौआ का निर्माण किया और कौंवे से बोले कि जाओ और धरती का पता लगाओ। और कौआ उड़ गया। उड़ते-उड़ते उसे केकड़ा दिखा, कौआ केकड़ा के पास गया और बोला झूठ मत बोलना और मुझे धरती की मिट्टी दो। केकड़ा कौआ को दबा कर पाताल लोक ले गया और वहां के राजा ने कौआ को मिट्टी दिया। केकड़ा कौआ को लेकर पाताल लोक से बाहर निकले और कौआ भगवान के पास गया और मिट्टी दे दिया। भगवान मिट्टी को चारो तरफ बिखेर दिए और वही धरती बन गई। भगवान धरती को देखने के लिए गए तब धरती हिलने लगी। फिर भगवान ने अगरिया बनाया, अगरिया ने लोहे की कीलें बनाई और उसे चारो कोने में ठोकने के लिए भगवान ने नागा बैगा बनाया। इसी नागा बैगा ने धरती के चारो तरफ कील ठोक दिया। तभी से बैगा धरती की रक्षा कर रहे है। इस किवदंती के अनुसार ब्रम्हा जी ने नागा बैगा बनाया था जो धरती की रक्षा करे।
इसी प्रकार बैगा निवास क्षेत्रों में उनके उत्पत्ति सम्बन्धी एक और लोक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है- बहुत समय पहले चारो ओर पानी ही पानी था। पानी में केवल एक कमल का फूल और कुछ पत्ते थे। पत्तों पर देवता बैठा करते थे। एक बार काफी तेज हवा चली जिससे पत्तों पर पानी भर गया और देवता भीग गए। देवता क्रोधित हुए। उन्होंने इसका उपाय करने के लिए विचार किया और पानी पर धरती की खोज करने के लिए सोचा, किन्तु उन्हें धरती का पता नहीं मिला। एक दिन धरती की खोज करते हुए उन्हें एक द्वीप मिला जहाँ नागा बैगा निवास करते थे। नागा बैगा के पास देवता गए और नागा बैगा से धरती खोजने का वचन लिया। और देवता अपने स्थान वापस लौट गए। नागा बैगा धरती के बारे में कुछ नहीं जानते थे। नागा बैगा ने कौआ का स्मरण किया और कौआ कुछ ही क्षण में उपस्थित हो गया। नागा बैगा ने कौआ को धरती को ढूंढ लाने को कहा। कौआ ने अपना रूप विशाल किया और उड़ गया। जब उड़ा तो उसके पंख से पूरा पानी बादल से ढकने जैसा ढक गया इसी प्रकार कौआ कई वर्षों तक उड़ते रहा। उसे विश्राम के लिए एक मीनार जैसा टीला दिखा और उसपर कौआ बैठ गया। वह मीनार केकड़े का था। केकड़ा उस समय सूर्य की आराधना कर रहा था। कौआ के बोझ से केकड़े का जबड़ा टूट गया। क्रोधित केकड़े ने अपने दूसरे जबड़े से कौआ का गला दबोच लिया। कौआ ने अपनी पूरी व्यथा बताई। व्यथा सुन कर केकड़ा कौवे की मदद करने के लिए तैयार हो गया। कौआ केकड़े पर सवार होकर आगे बढ़ा और कुछ समय पश्चात उन दोनों की मुलाकात हाड़न राजा से हु। वहीं एक नाग कन्या दिखी, उसे ये दोनों धरती समझ रहे थे। केकड़े ने उसे फुसलाने का प्रयत्न किया और कामयाब हो गया और कन्या को लेकर आगे चल पड़े। रास्ते में केचुआ नामक दानव मिला, उसने अपनी माया से कन्या को निगल लिया। केकड़ा और कौआ कन्या को अपने साथ न पाकर चिंतित होकर इधर-उधर देखने लगे, तभी उसी समय एक गिलहरी मौसी ने उस दानव की तरफ इशारा कर दिया। केकड़े ने केचुवे के पेट में अपना जबड़ा चुभा दिया और केचुवे ने कन्या को छोड़ दिया। कन्या को वापस पाकर दोनों पुनः आगे बढ़ने लगे। केकड़ा और कौआ कन्या को लेकर देवताओं के पास गए देवताओं ने कौआ और केकड़े का स्वागत किया। पानी के उपर देवताओं ने कन्या का स्वयंवर रचाया। कन्या ने किसी देवता को नहीं चुना। सभी देवता आश्चर्य में पड़ गए और नागा बैगा को आदर के साथ बुलाया गया। नागा बैगा साधू थे, वे शरीर में भस्म लगाये हुए थे। नाग कन्या ने नागा बैगा के गले में वरमाला डाल दी। इस बात से नागा बैगा क्रोधित हो गया। उसने कहा कि मै इसे पुत्री मान लिया हूँ, इसने ऐसा पाप क्यूँ किया। और नागा बैगा ने फरसे से नाग कन्या के दो टुकड़े कर दिए। कन्या का खून सारे पानी में फैल गया और फैले खून को बैगा तथा देवताओं ने थपथपाया और वह कुछ समय बाद जम गया। वही धरती की सतह बन गई। ऊँचे स्थान पहाड़ और नीचे स्थान समुद्र तथा झील बन गए। नागा बैगा ने भूमि का निर्माण किया इसलिए वह भूमिया कहलाया। धरती नागा बैगा की बेटी है, इसी कारण बैगा धरती के छाती में हल नहीं चलाते। अब धरती के विवाह का समय आ गया धरती के लिए बादल को वर चुना गया। बादल सज-धज के आने लगा उसी समय जोर की हवा चली और बादल को उड़ा ले गई। तब बादल को लाने के लिए पहाड़ी को भेजा। तब से पहाड़ी बादल को रोकती है और बरसात कराती है और धरती फलती-फूलती है।
इस प्रकार के अनेक मिथक बैगा जनजाति में प्रचलित है जिससे यह स्पष्ट होता है की बैगाओं का धरती से सम्बंध काफी लम्बे समय से है।
मानव विज्ञान की दृष्टि से जिस आदिम जनजाति का सबसे अधिक उल्लेख हुआ है, वह मध्यप्रदेश में मैकल पर्वत की कंदराओं एवं घने साल वृक्ष के शीतल सुरम्य वन स्थल में स्थित एक हजार से दो हजार मीटर के मध्य ऊँची पर्वत श्रेणियों पर नर्मदा नदी किनारे बसी बैगा जनजाति है।
साथ ही साथ एक किवदंती के अनुसार बैगा जनजाति के अकबर के दरबार की बैठक में सम्मिलित होने की भी जानकारी प्राप्त होती है।
इस जनजाति के उत्पत्ति के सम्बंध में अनेक मिथक प्रचलित है जो अपने उत्पत्ति के सम्बंध में अनेक प्रमाण प्रस्तुत करते है, किन्तु इसके ऐतिहासिक प्रमाण प्राप्त नहीं होते। विभिन्न विद्वानों के ग्रंथों के अध्यन से कुछ जानकारी प्राप्त होती है- जैसे रसेल एवं हीरालाल के अनुसार बैगा जनजाति छोटा नागपुर की आदिम जनजाति भुईयां का एक अंश है जिसे बाद में बैगा कहा जाने लगा। भुईयां धरती का समानार्थी शब्द है, भुईयां धरती से सम्बन्ध रखने के कारण इस क्षेत्र के जनजातियों में प्रारंभ से ही बैगाओं का महत्वपूर्ण स्थान है।
बैगा किवदंतियों के अनुसार बैगाओं को रामायण काल में मध्य क्षेत्र की स्वास्थ सुरक्षा का भार सौंपा गया था। इसी कारण इन लोगों को ‘वैद्य’ कहा जाता था, किन्तु ‘वैद्य’ शब्द अपभ्रंश होकर कालांतर में ‘बैगा’ में परिवर्तित हो गया।
वर्तमान समय में बैगा जनजाति के निवास क्षेत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आज भी अधिकतर बैगा पारंपरिक रोगोपचार कार्य से जुड़े हुए है। यह कार्य बैगाओं को विरासत में प्राप्त हुआ है। बैगा औषधि ज्ञान को किताबों से नहीं पाते बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी अपने वंशजों से प्राप्त करते है। बैगा अपने औषधि ज्ञान को गुरु शिष्य परंपरा के द्वारा नई पीढ़ी को प्रदान करते है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
एक मान्यता के अनुसार जब ‘लक्ष्मण जी’ युद्ध में घायल हो गये थे तब “सुषेण” नामक बैगा (वैद्य) ने उनका उपचार किया था। बैगा सुषेण को अपना पूर्वज मानते है।
निष्कर्ष स्वरूप हम देखते है, कि जिस प्रकार हिन्दू धर्म में मनु और शतरूपा को प्रथम मानव माना जाता है जिसे ब्रम्हा ने उत्पन्न किया ठीक उसी प्रकार बैगा जनजाति के लोग नागा बैगा और नागी बैगिन को प्रथाम मानव मानते है इनके मान्यता के अनुसार इन्हें उत्पन्न करने वाला ब्रम्हा जी ही थे। बैगा जनजाति में अपने उत्त्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक किवदंतियाँ प्रस्तुत करते है, किन्तु इन सभी किवदंतियों से यह ज्ञात होता है कि बैगा आदिम (प्राचीन) जनजाति है। उपरोक्त किवदंतियों के आधार पर कहा जा सकता है कि बैगा जनजाति स्वयं को एक उदार आदिपुरुष की संतान मानते है और इसी कारण बैगा जनजाति में बैगा होने का गौरव भाव परिलक्षित होता है।
बैगा जनजाति मध्य प्रदेश की आदिम जनजातियों में से एक है। यह मध्य प्रदेश की तीसरी बड़ी जनजाति है। इस जनजाति की उपजातियों में 'नरोतिया', 'भरोतिया', 'रायमैना', 'कंठमैना' और 'रेमैना' आदि प्रमुख हैं। बैगा लोगों में संयुक्त परिवार की प्रथा पायी जाती है। इनमें मुकद्दम गाँव का मुखिया होता है।
'बैगा' का अर्थ होता है- "ओझा या शमन"। इस जाति के लोग झाड़-फूँक और अंध विश्वास जैसी परम्पराओं में विश्वास करते हैं।
इस जाति का मुख्य व्यवसाय झूम खेती एवं शिकार करना है।
बैगा लोग डिंडोरी (बैगाचक) मण्डला, बालाघाट, शहडोल में निवास करते है।
दीमक, चीटीं, चूहा और कंदमूल आदि का ये लोग सेवन करते है। इनके प्रमुख देवी-देवता बूड़ादेव, दूल्हादेव और भवानी माता आदि हैं।
इस जाति के लोग शेर को अपना अनुज मानते हैं।
इनमें सेवा विवाह की 'लामझेना', 'लामिया' और 'लमसेना' प्रथा प्रचलित है।
बैगा जनजाति के लोग पीतल, तांबे और एल्यूमीनियम के आभूषण पहनते हैं।
इस जाति में ददरिया प्रेम पर आधारित नृत्य दशहरे पर एवं परधौनी लोक नृत्य विवाह के अवसर पर होता है।