मधुबनी चित्रकला बिहार राज्य की लोककला है | जिसे मिथिला चित्रकारी भी कहते हैं |बिहार में एक जिला है, मधुबन जिसका अर्थ है शहद का जंगल | यह चित्रकारी मधुबनी जिले का स्थानीय कला है |
यह चित्रकला प्राकृतिक रंगों से की जाती है | इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले रंग आमतौर पर चावल के पाउडर, हल्दी, चंदन, पराग, वर्णक, पौधों, गाय का गोबर, मिट्टी और अन्य प्राकृतिक स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं, जो चित्रकार खुद बनाता है | ये रंग अक्सर चमकदार होते हैं | दीपक और कालिख और मिट्टी जैसे रंग द्रव्य क्रमश: काले और भूरे रंग के बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं |
आधुनिक ब्रश के बजाये, चित्र बनाने के लिए पतली टहनी, माचिस, अंगुलियों और परंपरागत वस्तुओं का उपयोग किया जाता है |
इस चित्रकला की 5 शैलियां हैं- भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना, और कोहबर | हालांकि मुख्य रूप से मधुबनी चित्रकला 2 तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन | भित्ति चित्र विशेष रूप से घरों में तीन स्थानों पर मिट्टी से बनी दीवारों पर की जाती है जिसमें कुलदेवता, लोकदेवता, नए विवाहित जोड़े के कमरे और रेखाचित्र कक्ष में की जाती है| अरिपन अर्थात अक्पना या मांडन को चित्रित करने के लिए आंगन या फर्श पर लाईन खींचकर सुंदर रंगोली जैसी बनाई जाती है | अरिपन कुछ पूजा-समारोहों जैसे पूजा, वृत्त और संस्कार आदि अवसरों पर की जाती है |
इस चित्रकला में पौराणिक घटनाओं के वर्णन के साथ ही ज्यामितिक आकार भी इस चित्रकारी में देखने को मिलती है | चित्र के खाली स्थानों को अधिकतर समय फुल-पत्तों और बेलबूटों से भर दिया जाता है | इन चित्र में कमल के फूल, बांस, चिड़ियाँ, सांप आदि कलाकृतियां भी होती है |
इसका दृष्टांत खासतौर पर रामायण, महाभारत और पौराणिक ग्रंथों कथाओं के साथ ही हिन्दू उत्सव, 16 संस्कार, राज दरबार और विवाह जैसे सामाजिक कार्यक्रम के इर्द-गिर्द ही रहती है |
मधुबनी चित्रकला रामायण काल में भी होती थी, क्योंकि वाल्मीकि रामायण अनुसार सीता के पिता राजा जनक ने अपने चित्रकारों से अपनी बेटी की शादी के लिए मधुबनी चित्र बनाने के लिए कहा था |
इस पारंपरिक कला को पहले बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाएं ही किया करती थीं | लेकिन आज, यह शैली भारत के लोगों के साथ-साथ अन्य देशों के लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो चली हैं | अब इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग है |
इस चित्रकला को अब दीवार, आंगन, पेड़ या मंदिर पर ही नहीं बल्कि साड़ी, कुशन, परदे, दोरमेट, मूर्ति, चूड़ियाँ, बर्तन, कपड़े, पर भी चित्रित कर रहे हैं |
इस चित्रकला में माँ दुर्गा, काली, सीता-राम राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार को भी दिखाया जाता है |
मधुबनी शहर में एक स्वतंत्र कला विद्यालय मिथिला कला संस्थान (एमएआई) की स्थापना जनवरी 2003 में ईएएफ द्वारा की गई थी, जो मधुबनी चित्रों के विकास और युवा कलाकारों का प्रशिक्षण के लिए है और ‘मिथिला संग्रहालय’, जापान के निगाटा प्रान्त में तोकामाची पहाड़ियों में स्थित एक टोकियो हसेगावा की दिमागी उपज है, जिसमें 15,000 अति सुंदर, अद्वितीय और दुर्लभ मधुबनी
चित्रों के खजाने में रखा गया है | दरभंगा में कलाकृति, मधुबानी में वैधी, मधुबनी जिले के बेनिपट्टी
और रंती में ग्राम विकास परिषद, मधुबनी चित्रकला के कुछ प्रमुख केंद्र हैं, जिन्होंने इस प्राचीन कला को जीवित रखा है |