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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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शिक्षाप्रद कहानी- स्वर्ग के हाथी की पूंछ

Date : 10-Feb-2024

 

एक किसान था | वह अपने खेत में खड़ी फसल काट रहा था| इस वर्ष उसकी फसल पिछले वर्ष की अपेक्षा बहुत अच्छी हुई थी | बीज तो अच्छा था ही, खेत पर उसने परिश्रम भी कम नहीं किया था | उसने खेत में गहराई तक हल चलाया | मिट्टी में खाद मिलाई | बीजों को उचित गहराई तक दबाया | समय पर खेत में पानी की सिंचाई की और जब बीजों से पौधे निकल आए तब उनकी  देखभाल की | उन्हें कीड़ों से, पशु-पक्षियों से बचाया | आज उसे उस खेत को देखकर अपने परिश्रम पर गर्व हो रहा था | परिश्रम से मिला धन बिना परिश्रम से मिले धन से अधिक मूल्यवान होता है | परिश्रम से प्राप्त फल में मनुष्य संतोष और गर्व दोनों प्राप्त करता है |
किसान राजा से कुछ पूछना चाहता था, पर नहीं पूछ सका | राजा हाथी की ओर बढ़ने लगा | किसान सोचने लगा | भला बिना परोपकार के आदमी स्वर्ग में कैसे पहुंच सकता है | उसने देखा कि वजीर चला आ रहा है | वजीर भी आगे बढ़ गया | अरे! यह क्या! किसान ने देखा कि राजा की तरह स्वर्ग जाने के लिए एक के बाद एक लोग चले आ रहे हैं | इनमें वैद्य, सेठ, सेनापति और कुछ साधु भी सी स्वर्ग की दौड़ में शामिल हैं | 
राजा के पैर पकड़कर वजीर भी लटका है | यह तो पंक्ति ही बन गई है | वजीर के पैर पकड़कर सेठ, सेठ के पैर पकड़कर वैद्य, वैद्य के पैर पकड़कर सेनापति और सेनापति के बाद अनेक लोग एक के बाद एक लटके हैं | यह तो पतंग की पूंछ बन गई  है | लगता है पूरा राज्य ही बिना परिश्रम के स्वर्ग जा रहा है | जाने दो, जाने दो, मैं अपना परिश्रम नहीं छोडूंगा | मेरा स्वर्ग तो यहीं है | मेरा काम ही मेरे लिए स्वर्ग है | 
 
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