Quote :

जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

Editor's Choice

निस्वार्थ सेवा और धार्मिकता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक देवी अहिल्याबाई

Date : 30-May-2024

देवी अहिल्याबाई का जीवन निस्वार्थ सेवा और धार्मिकता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। एक ग्रामीण लड़की के रूप में उनकी विनम्र शुरुआत से लेकर एक सम्मानित शासक के रूप में उभरने तक, उनकी यात्रा लचीलेपन और अखंडता की शक्ति का एक प्रमाण है। उन्होंने करुणा और दूरदर्शिता के साथ प्रशासन करते हुए "शंकर अजनेवरुण" की दिव्य मुहर के तहत शासन किया | 

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी नामक गाँव में मनकोजी शिंदे के घर 31 मई 1725 में हुआ था। वह एक सामान्य से किसान की पुत्री थी। उनके पिता मान्कोजी शिन्दे के एक सामान्य किसान थे। सादगी और घनिष्ठता के साथ जीवन व्यतीत करने वाले मनकोजी की अहिल्याबाई एकमात्र अर्थात इकलौती पुत्री थी। अहिल्याबाई बचपन के समय में सीधी साधी और सरल ग्रामीण कन्या थी। 
अहिल्याबाई होलकर की शिक्षा उस वक्त महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था, लेकिन मल्हारराव एक दूरदर्शी सेनानी थे, उन्होंने और उनकी पत्नी गौतमाबाई ने अहिल्याबाई पर ऐसा कोई भी बंधन नहीं लगाते हुए उनको पढ़ाया, लिखाया और एक योद्धा के रूप में उनको दुनिया के सामने लाए। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपने पति खंडेराव का युद्धों में साथ दिया। 
जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया अहिल्याबाई का संघर्ष भी बढ़ता गया। कूंभेर किले की लड़ाई में वर्ष 1754 में खंडेराव की तोप का गोला लगने के कारण मौत हो गई थी। यह किला उस समय हरियाणा के महाराज सूरजमल जाट के अधिकार क्षेत्र में था। यह तो बस उनके संघर्षों की शुरुआत मात्र थी। खंडेराव की मृत्यु का उन्हें बहुत दुख हुआ, क्योंकि विधवा महिलाओं को कैसा जीवन जीना पड़ता था, यह वह जानती थी। वह खंडेराव की मृत्यु के बाद सती हो जाना चाहती थी, लेकिन मल्हारराव होलकर ने उन्हें ऐसा करने से रोका, क्योंकि वह अहिल्याबाई की राज्य के मामलों को संभालने की क्षमता से बहुत अच्छी तरह से अवगत थे। खंडेराव की मृत्यु के बाद उनके बेटे मालेराव उनके अगले उत्तराधिकारी बने, लेकिन मालेराव राज्य संभालने में बिल्कुल असमर्थ थे। जब तक वह जीवित रहे तब तक उन्होंने भोग विलास में और राज्य का खजाना खत्म करने में वक्त बिताया। खंडेराव और मल्हारराव की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपने एकमात्र बेटे मालेराव को भी खो दिया।
अहिल्याबाई अपने ससुर, पति और अपने बेटे की मृत्यु से अत्यंत दुखी थी। महेश्वर राज्य का उत्तराधिकारी कौन बनेगा यह प्रश्न सामने खड़ा हो गया था ? इस बात का फायदा राज्य के अंदर के विद्रोही तत्वों ने लिया जिनमें से एक थे गंगोबा तात्या।गंगोबा तात्या ने पेशवा माधवराव के चाचा रघुनाथराव को महेश्वर पर आक्रमण करके उनको महेश्वर जीतने में मदद के लिए बुलाया, लेकिन गंगोबा और रघुनाथ राव उनकी इस चेष्टा से बिल्कुल अनजान थे,और जैसे ही अहिल्याबाई को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने होलकरों के विश्वासी सरदार महादजी शिंदे और तुकोजी होलकर को मदद के लिए पत्र भेजा। महादजी और तुकोजी ने बिना समय नष्ट किए अपनी सेनाएं महेश्वर की तरफ मोड़ दीं और महेश्वर पहुंच गए।इस दौरान अहिल्याबाई ने भी रघुनाथराव को पत्र लिखकर कहा कि वह उनके राज्य से महिलाओं की ऐसी सेना तैयार करेंगी जो आखिरी सांस तक अपने राज्य की रक्षा के लिए तैयार रहेगी। ऐसी सेना से अगर आप हार गए तो वह आपके लिए सबसे लज्जास्पद बात होगी, बावजूद इसके रघुनाथराव महेश्वर पर आक्रमण करने के लिए क्षिप्रा नदी के किनारे आ पहुंचे। इस बीच उन्हें तुकोजी होलकर से एक पत्र मिला जिसमें उन्होंने रघुनाथराव को युद्ध के गंभीर परिणाम परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने के लिए बोला। रघुनाथराव इस एकता को देखकर घबरा गए और उन्होंने महेश्वर पर आक्रमण नहीं करने का फैसला लिया। यह अहिल्यादेवी की कूटनीति से बिना युद्ध किए रघुनाथराव वापस लौट गए और इसके साथ अहिल्याबाई का कद और बढ़ा। 
अपने जीवन में इतनी चुनौतियों का सामना करने के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी प्रजा को सुख-समृद्धि से भरा जीवन देने में हमेशा लगी रहीं। उन्होंने अपनी प्रजा के हर वर्ग की प्रगति, समृद्धि पर अपना ध्यान केंद्रित रखा। उनके 30 वर्षों के शासन के दौरान सभी जातियों, लिंग और धर्मों समेत समाज के हर वर्ग ने सुरक्षित महसूस किया। मल्हारराव द्वारा सौंपे गए राज्य का उन्होंने अपने बेटे जैसा पालन किया, उन्होंने पूरे भारत में यात्रियों के लिए कुएं और विश्राम गृहों का निर्माण करवाया।उन्होंने ना सिर्फ अपने राज्य की प्रजा के लिए काम किया बल्कि बाकी राज्यों की प्रजा के लिए भी काम किया। उनके द्वारा बनवाए गए कुछ कुएं और विश्रामगृह अभी भी प्रयोग हो रहे हैं। हम जानते हैं कि उन्होंने काशी विश्वेश्वर के मंदिर का पुनर्निर्माण कैसे करवाया था। इसके साथ ही उन्होंने पूरे देश के मंदिरों का निर्माण और बहुत सारे मंदिरों का पुनर्निर्माण भी करवाया था।उन्होंने 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में तीर्थयात्रियों के लिए विश्रामगृह बनवाया था। अयोध्या और नासिक में भगवान राम के मंदिर का निर्माण करवाया, उज्जयिनी में चिंतामणि गणपति मंदिर का निर्माण करवाया, सोमनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया जिसे 1024 में गजनी के महमूद ने नष्ट कर दिया था, जगन्नाथपुरी मंदिर को दान दिया। उन्होंने आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम और महाराष्ट्र में परली वैजनाथ के ज्योतिर्लिंगों का भी कायाकल्प करवाया था। मंदिरों का जीर्णोद्धार करने के अलावा, उन्होंने हंडिया, पैठण और कई अन्य तीर्थस्थलों पर सराय का निर्माण किया। समकालीन स्रोत भी उनके शासनकाल के दौरान राज्य की समृद्धि का उल्लेख करने से नहीं चूके।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement