राहुल बाबा की चक्रव्यूह रचना | The Voice TV

Quote :

धर्म और नीति के अनुसार शासन करना ही सच्चा राजधर्म है - अहिल्याबाई होलक

Editor's Choice

राहुल बाबा की चक्रव्यूह रचना

Date : 02-Aug-2024

यह समझना मुश्किल है कि कांग्रेस की विरासत ही कांग्रेस के विपरीत है या राहुल गांधी का फोकस कहीं और है। वैसे तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को संसद में बजट पर बोलना था, लेकिन उन्होंने महाभारत कालीन चक्रव्यूह का नया रूपक ही गढ़ दिया। हजारों साल पुराने चक्रव्यूह में अभिमन्यु को घेर कर मार दिया गया था। उसका नियंत्रण द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, कृतवर्मा, अश्वत्थामा और शकुनि के हाथों में था। राहुल गांधी के मुताबिक आज का चक्रव्यूह भी प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, सरसंघचालक मोहन भागवत, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल आदि आठ हाथों में है। दो शेष नाम देश के बड़े उद्योगपतियों के हैं, जिनका नाम सदन में नहीं लिया जा सकता था। स्पीकर ओम बिरला ने भी नियमों का हवाला दिया, लेकिन राहुल गांधी उनका एक बार नाम ले चुके थे। फिर उन्हें ए-1, ए-2 नामकरण दिया।

सवाल यह है कि राहुल गांधी ने यह रूपक क्यों गढ़ा? क्या आज का चक्रव्यूह भी किसी को हताहत करने को रचा गया है? संसद में ऐसी हिंसकवादी राजनीति के कोई मायने नहीं हैं, लिहाजा स्पीकर नेता प्रतिपक्ष को बार-बार सलाह देते रहे कि एक बार और सदन के नियमों को नेता प्रतिपक्ष पढ़ लें। जाहिर है कि राहुल गांधी बार-बार नियमों का उल्लंघन करते रहे हैं। बहरहाल नए चक्रव्यूह के संदर्भ में जवाब राहुल ही देंगे, लेकिन उनकी राजनीति समझ में जरूर आती है कि 2024 के आम चुनाव की तरह वह अब भी एक नेरेटिव देश में फैलाना चाहते हैं। वह नेरेटिव भाजपा के हिंदुत्व और सवर्णवाद की काट साबित हो सकता है, ऐसी राहुल गांधी की उम्मीद है। उनकी राजनीति जातीय जनगणना की है, जबकि कांग्रेस में उनके पुरखे ऐसे जातिवाद के खिलाफ थे और ऐसी जनगणना को कभी भी लागू नहीं किया।

उन्होंने अपने 46 मिनट के भाषण का सारांश यह रखा कि गरीब, पिछड़े, दलित, युवा, किसान समेत पूरा देश भय के चक्रव्यूह में है। अग्निवीरों को भी चक्रव्यूह में फंसाया गया है। प्रधानमंत्री जिस कमल के फूल (भाजपा का चुनाव चिह्न) को लहराते रहते हैं, उसी के आकार वाला चक्रव्यूह है। यहां नेता प्रतिपक्ष ने अपनी सियासत के मुताबिक हिंदू धर्म का अपमान किया है। भाजपा ने यूं पलटवार करते हुए कहा है कि जिस फूल को ब्रह्मा जी,देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती ने अपना आसन बनाया, पवित्रता के प्रतीक उसी फूल को राहुल गांधी ने ‘हिंसक’ करार दिया। यह धार्मिक अपमान राहुल की राजनीति के मुताबिक है।


नेता प्रतिपक्ष ने बजट पर संभवत: 2.5 प्रतिशत ही बोला। सिर्फ शिक्षा का आवंटन ही उन्हें याद रहा। बजट की ‘हलवा सेरेमनी’ में भी उन्होंने जातिवाद को घुसेड़ कर कहा कि जो 20 अधिकारी देश का बजट तैयार करते हैं, उनमें कोई भी ओबीसी, दलित या आदिवासी अफसर नहीं है,जबकि इन समुदायों की आबादी देश की 73 प्रतिशत है। सिर्फ 2-3 प्रतिशत लोग ही ‘हलवा’ बनाते हैं, वे ही बांटते हैं और वे ही खा जाते हैं। देश की 73 प्रतिशत आबादी को ‘हलवा’ नहीं मिल रहा है। राहुल का कथन देश के संसाधनों और शक्तियों की व्याख्या कर रहा है। उनका जातिवाद भी इसी आधार पर टिका है कि जो देश में बहुसंख्यक हैं, वे ही वंचित और विपन्न हैं। शायद राहुल गांधी को यह याद नहीं रहा कि बजट से जुड़ा ‘राजनीतिक हलवा’ तो बीते 70 सालों से अधिक समय से बांटा जा रहा है। इस दौरान सर्वाधिक सरकारें कांग्रेस की रही हैं।

कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान 2011 की जनगणना के साथ जातीय जनगणना भी कराई गई थी। उसके आंकड़े सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए? कर्नाटक में जब सिद्धारमैया पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने जातीय जनगणना कराई थी। आज भी वह मुख्यमंत्री हैं, लेकिन जातीय जनगणना के आंकड़े आज तक भी जारी नहीं किए गए। कांग्रेस या राहुल गांधी स्पष्ट कर सकते हैं कि उनके जातिवाद का यथार्थ क्या है? राहुल गांधी ने यह भी दावा किया है कि जो मध्यवर्ग प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति का समर्थक था, आज वह ‘इंडिया’ की तरफ आ रहा है, क्योंकि मध्यवर्ग की पीठ और छाती में छुरा घोंपा गया है। सरोकार राहुल के चक्रव्यूह से है कि उसके मायने क्या हैं?

लेखक:- राकेश दुबे

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement