Quote :

सफलता एक योग्य लक्ष्य या आदर्श की प्रगतिशील प्राप्ति है - अर्ल नाइटिंगेल

Editor's Choice

श्रावण सोमवार और मंगला गौरी व्रत आरोग्य और पारिवारिक समरसता के लिये

Date : 05-Aug-2024

श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है । पूरे श्रावण माह में शिव आराधना की जाती है । फिर भी प्रति सोमवार व्रत और पवित्र नदी जल से शिव अभिषेक करने पर बहुत जोर दिया गया है । वहीं श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को महिलाओं द्वारा मंगला गौरी व्रत पूजन करने की परंपरा बनाई गई है । इन दोनों व्रत उपवास पूजन का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि इन दोनों व्रत उपवास पूजन का उद्देश्य आरोग्य और पारिवारिक समरसता है । 

भारतीय वाड्मय के विधान में पूरे श्रावण माह की दिनचर्या में अद्भुत आंतरिक अनुशासन और संयम पर जोर दिया गया है । यदि हम व्यक्ति निर्माण की बात करें तो यह तभी संभव है जब तन, मन, बुद्धि विवेक और स्वास्थ्य में संतुलन हो । शरीर के विभिन्न कोष और भावों में समन्वय अष्टांग योग के आरंभिक चार चरणों से पूरा होता है । जिसमें यम, नियम, संयम और आहार शामिल है। पूरे श्रावण माह में इन चार बातों पर जोर दिया गया है । जो लोग पूरे माह व्रत करते हैं उन्हे यह भी निर्देश है कि वे क्रमशः रस आहार, फल आहार, जल आहार और अन्न आहार में क्या लें और कब लें। पूरे माह व्रत करने वालों से सोमवार के दिन मौन रहने को कहा गया है और सोमवार का व्रत करने वालों को पूजन में एकाग्र और मौन रहने को कहा गया है । पूजन में अधिकांश सामग्री घर में तैयार करने का निर्देश है । अर्थात सामग्री एकत्र करने के लिये श्रम, बुद्धि और विवेक सब का उपयोग किया जाय । पूजन आरती के लिये रुई की बाती स्वयं बनाना, मिट्टी का दिया स्वयं बनाना घर के पिसे आटे से सामग्री प्रसाद तैयार करने की बात नहीं अपितु मिट्टी से शिवलिंग भी घर में ही तैयार करने को कहा गया है, पवित्र नदियों से जल भी स्वयं अपने कंधे पर लाना है । इसी परंपरा के प्रतीक के रूप में काँवड़ यात्राएँ आरंभ हुईं । घर पर  पूजन की तैयारी महिलाएँ करतीं है और पुरुष नदी से जल लाते हैं अर्थात दोनों श्रम करें। इसके साथ सब बोलने, सोचने और संतुलित आहार के साथ बुद्धि की प्रखरता का उपाय भी श्रावण मास और श्रावण सोमवार पूजन में है। श्रावण माह में कब उठना, कब पूजन करना, क्या भोजन में लेना और कब सोने के लिये जाना यह सब विन्दुवार विवरण दिया गया है । पूजन विधान और दिनचर्या कुछ इस प्रकार निर्धारित की गई है कि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, आरोग्य प्राप्त होगा । रोग के आने पर उसका उपचार करना तो महत्वपूर्ण है ही । पर स्वयं को इतना सक्षम बनाना अधिक महत्वपूर्ण है कि कोई रोग समीप न आ सके । इसी अवस्था को आरोग्य कहते हैं। इन दिनों भारत के वैंग्लौर आदि नगरों में आरोग्य के लिये महंगे मंहगे संस्थान खुल गये हैं। उनके एक सप्ताह से लेकर बीस पच्चीस दिन के कैंप होते हैं जिन में प्रातः उठने से लेकर सोने तक की समय सारिणी होती है । उसमें भारी भुगतान करके शरीर तो ठीक हो जाता है । पर उनमें मन बुद्धि विवेक जाग्रति के कार्य नहीं होते । भारतीय परंपरा में श्रावण मास की दिन चर्या शरीर के साथ मन और बुद्धि काविकास अभ्यास भी  है । 
यह श्रावण मास के प्रत्येक मंगल वार को होता है । श्रावण मास में प्रति सोमवार को यदि शिव पूजन होता है तो प्रति मंगलवार को गौरी पूजन होता है । इसमें पूजन की विधि लगभग समान है। पर सामग्री में थोड़ा अंतर है । किंतु इस व्रत पूजन में भी तैयारी  घर पर ही करनी है । जिस प्रकार सोमवार को स्वयं अपने हाथ से मिट्टी से शिवलिंग बनाया जाता है तो मंगलवार को स्वयं ही मिट्टी से पार्वती जी की प्रतीक प्रतिमा बनाना होता है । सोमवार पूजन में सामग्री पाँच प्रकार की लगती है तो मंगला गौरी पूजन में सोलह प्रकार की । सोलह की यह संख्या स्त्री के सोलह श्रृंगार से जोड़ा गया है । इसमें भी अधिकांश सामग्री भी घर में तैयार होती है । घर का अन्न और घर के फल। घर का अन्न फल फूल कौन जुटा पाता है वही तो जो फूल और फलदार वृक्ष लगायेगा । जो स्वयं खेती करेगा उसी के यहाँ तो यह सब वस्तुएँ होंगी । मंगला गौरी व्रत की एक विशैषता यह है कि पूजन के बाद महिला को सबसे पहले सास और ननद को प्रसाद देना है, फिर सास और ननद को पहले भोजन कराना है और फिर स्वयं करना है। यह निर्देश परिवार की एक जुटता को ध्यान रखकर ही दिया गया होगा । जिस घर में बहू पूजन के बाद सबसे पहले सास को  प्रणाम करे ननद और सास को पहले भोजन कराये उस घर की एकजुटता को कौन तोड़ सकता है । कहने के लिये हम प्रगति कर रहे हैं। भव्य भवन निर्माण हो रहे पर कितने भवनों में पूरा परिवार एक साथ रह रहा है । वृद्ध सास और ननद की कुछ घरों में क्या स्थिति है । यह किसी से छिपी नहीं है । भविष्य में क्या घटेगा इसका अनुमान भारतीय मनीषियों को  शताब्दियों पहले ही हो गया होगा। इसलिए समय रहते वे पूजन परंपरा में परिवार की एक जुटता को पूजन के माध्यम से अनिवार्य बना गये । इस प्रकार श्रावण मास में पूजन विधि के स्वरूप में व्यक्ति निर्माण और परिवार की एकजुटता का संदेश है ।
 
लेखक - रमेश शर्मा

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement