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चाणक्य नीति:- निर्धनता अभिशाप है

Date : 28-Aug-2024

अपुत्रष्य गृहं शून्यं दिश: शून्यास्त्व्बंधवा: |

मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्यं दरिद्रता ||

निर्धनता को अभिशाप मानते हुए आचार्य चाणक्य यहां इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि पुत्रहीन के लिए घर सूना हो जाता है, जिसके भाई न हों उसके लिए दिशाएँ सूनी हो जाती हैं, मूर्ख का ह्रदय सूना होता है, किन्तु निर्धन का सब कुछ सूना हो जाता है | अर्थात्  

जिस व्यक्ति का एक भी पुत्र न हो, उसे अपना घर एकदम सूना लगता है | जिसका कोई भाई न हो उसे सारी दिशाएं सूनी लगती हैं | मूर्ख व्यक्ति को भले-बूरे का कोई ज्ञान नहीं होता, उसके पास हृदय नाम कि कोई चीज नहीं होती | किन्तु एक गरीब के लिए तो घर, दिशाएं हृदय, सारा संसार ही सूना हो जाता है | गरीबी एक अभिशाप है |

 
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