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मंदिर श्रृंखला:- मां चंद्रहासिनी

Date : 09-Dec-2024

 छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक, शक्ति जिले के चन्द्रपुर गाँव की छोटी सी पहाड़ी पर  स्थित है| चंद्रपुर में पौराणिक धार्मिक कथाओं की सुंदर झाकियां, लगभग 100 फीट विशालकाय महादेव और पार्वती की मूर्ति, लगभग इसी आकार में हनुमान जी की प्रतिमा ,समुद्र मंथन को दर्शाती हुई मूर्तियाँ , आदि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के मन को आकर्षित करती है|

चारों ओर से प्राकृतिक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की खूबसूरती मनमोहक है | यहाँ दो नदियों का प्रवाह है महानदी माण्ड नदी के बीच बसे चंद्रपुर में मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक है| पहले यहां बलि प्रथा का प्रचलन था लेकिन समय के साथ इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है|

मां चंद्रहासिनी मंदिर का इतिहास

चंद्रमा के आकार की विशेषताओं के कारण उन्हें चंद्रहासिनी मां के नाम से जाना जाता है| बताया जाता है कि चंद्रसेनी देवी ने सरगुजा को छोड़ दिया और उदयपुर और रायगढ़ होते हुए महानदी के किनारे चंद्रपुर के लिए निकल गई | महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता रानी विश्राम करने इस स्थान पर रुक गईं | तत्पश्चात  उनको नींद गई  मान्यतानुसार, वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली| एक बार संबलपुर के राजा चंद्रसेन की सवारी यहां से गुजर रही थी तभी देवी पर गलती से उनका पैर लग जाने से माता जाग उठीं | फिर एक दिन देवी ने राजा को  सपने में दर्शन दिए और उन्हें एक मंदिर बनाने और मूर्ति स्थापित करने के लिए कहा| उस समय से निर्मित मंदिर समय के साथ और भी सुसज्जित होती रही है | हर साल चैत्र नवरात्रि के अवसर पर छत्तीसगढ़ की सिद्ध शक्तिपीठ मां चंद्रहासिनी देवी मंदिर में 108 दीपों के साथ महाआरती की जाती है|

कहा जाता है कि मंदिर निर्माण से पहले चंद्रपुर गाँव का नाम डोंगरी हुआ करता था | माता के  निर्देशानुसार राजा चंद्रसेन द्वारा मंदिर निर्माण करवाने के बाद उनके (राजा) ही नाम पर मंदिर का नाम चंद्रसेनी और गाँव का नाम चन्द्रपुर पड़ा |

108 दीपों के साथ महाआरती

कहा जाता है कि नवरात्रि पर्व के दौरान 108 दीपों के साथ महाआरती में शामिल होने वाले भक्त मां के अनुपम आशीर्वाद का हिस्सा बनते हैं| सर्वसिद्धि की दाता मां चंद्रहासिनी की पूजा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं| नवरात्र उत्सव के दौरान भक्त नंगे पांव मां के दरबार में पहुंचते हैं और कर नापकर मां की विशेष कृपा अर्जित करते हैं|

 
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